सोमवार, 14 नवंबर 2022

सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी जी का एक गीत और परिचय

सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी जी का
एक गीत और परिचय


                 देह सो गयी है
               (बाल-दिवस पर)

        हामी भर-भरकर
        उसकी आवाज़ खो गयी है।

               बोलेगा तो शब्द नहीं
               विनती ही बोलेगा।
               मालिक के उढ़के किवाड़
               डर-डरकर खोलेगा।

        नस-नस में किसकी दहाड़
        कँपकँपी बो गयी है?

               परी नहीं, उसके सपनों में
               थाली आती है।
               वह जूठन को नहीं, उसे ख़ुद
               जूठन खाती है।

        रगड़-रगड़कर फ़र्श
        हथेली सुर्ख़ हो गयी है।

               रातों में अक्सर थकान से
               वह कराहता है।
               कभी-कभी चुपके से कोई
               गेंद चाहता है।

        कोसों दूर नींद है,
        लेकिन देह सो गयी है।

                              सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी

कवि परिचय

परिचय
———
नाम : सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी
जन्म : 21 नवम्बर,1954 को आगरा में।
शिक्षा : क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर से वर्ष 1975 में अंग्रेज़ी में एम.ए.।
सेवायोजन : नवम्बर, 2014 में आई. ए. एस. अधिकारी के रूप में उ. प्र. शासन के गृह सचिव के पद से सेवानिवृत्त। पुनर्नियोजन के फलस्वरूप तत्पश्चात् भी फ़रवरी, 2017 तक सचिव के पद पर कार्यरत। मार्च, 2017 से 20 नवम्बर, 2019 तक उ. प्र. राज्य लोक सेवा अधिकरण में सदस्य (प्रशासकीय) के पद पर कार्य किया।
रचनाकर्म : वर्ष 1987 में कविता-संग्रह ‘शब्दों के शीशम पर’ प्रकाशित। दूसरा कविता-संग्रह ‘कितनी दूर और चलने पर’ वर्ष 2016 में प्रकाशित। पिछले चार दशकों में लगभग सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। छह दिसम्बर,1992 पर केंद्रित ‘परिवेश’ के चर्चित विशेषांक का अतिथि संपादन।

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