समूह~।। वागर्थ ।।~में आज
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प्रस्तुत हैं सर्वकालिक नवगीतकार रमेश रंजक जी के पाँच नवगीत। ऐसा नहीं है कि रमेश रंजक जी के समय उठापटक की राजनीति कम थी,पर रमेश रंजक जी की प्रतिभा इस बात का अनुकरणीय उदाहरण है कि यदि आप की बात में दम है,तो लोगों तक पहुँच कर ही दम लेगी।आज भी रमेश रंजक के नवगीतों का कोई सानी नही है।
कॉपी,कट,पेस्ट के इस युग में अब ऐसे नवगीतकार और नवगीत कहाँ?
स्वागत है आपके निर्मल पाठक मन का
प्रस्तुति
मनोज जैन
छन्द की वल्लरी / रमेश रंजक
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एक विश्वास पर ज़िन्दगी
गीत का संकलन हो गई ।
प्यास के पाँव चल-चल थके
अनछुई धूप में, छाँव में
शूल-सी सुधि करकती रही
हर घड़ी दूखते घाव में
वेदना की तहों पर उभर
कल्पना बहुवचन हो गई ।
दृग बहे, स्निग्ध सौगंध की
आस्था डगमगाने लगी
अधजली धूप-सी बेबसी
आरती गुनगुनाने लगी
फैल कर छन्द की वल्लरी
सृष्टि का आयतन हो गई ।
डूब कर बिन्दु के सिन्धु में
बढ़ गई रोशनी की उमर
रश्मियाँ ओढ़ कर लेखनी
कर गई भावना को मुखर
अनकहा जो लिखा ब्याज से
साधना मिश्रधन हो गई ।
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दिन अधमरा देखने / रमेश रंजक
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दिन अधमरा देखने
कितनी भीड़ उतर आई
मुश्किल से साँवली सड़क की
देह नज़र आई ।
कल पर काम धकेल आज की
चिन्ता मुक्त हुई
खुली हवाओं ने सँवार दी
तबियत छुइ-मुई
दिन की बुझी शिराओं में
एक और उमर आई ।
फूट पड़े कहकहे,
चुटकुले बिखरे घुँघराले
पाँव, पंख हो गए
थकन की ज़ंजीरों वाले
गंध पसीने की पथ भर
बतियाती घर आई
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हमारे बन्धु ! / रमेश रंजक
रंगों के झरनों में बह गए हमारे बन्धु !
कहना था और, और कह गए हमारे बन्धु !
चिकने, चालाक, घाघ
लब्ज़ इश्तहारों के
गुलदारी होठों पर
मन्त्र बेसहारों के
गार में इकाई की चर गए हमारे बन्धु !
कैसे-कैसे कमाल कर गए हमारे बन्धु !
खुट्टल हैं, छुट्टल हैं
ताम्बे के सिक्के हैं
बारह में बादशाह
बावन में इक्के हैं
अगर कहीं कीचड़ में सन गए हमारे बन्धु !
कितने-कितने भोले बन गए हमारे बन्धु !
4
जल जहाँ है / रमेश रंजक
रमेश रंजक » धरती का आयतन »
जल जहाँ है !
वहाँ सूखापन कहाँ है ?
ज़िन्दगी ज़िन्दादिली जल बिन नहीं है
यह हक़ीक़त कुछ क़िताबों ने कही है
आदमियत इम्तहाँ-दर-इम्तहाँ है
वहाँ रूखापन कहाँ है ?
इम्तहाँ से ज़िन्दगी उजली बनी है
वह हमेशा कुनकुनी है, बहुगुणी है
बहुगुणी ज़िन्दादिली ही राज़दाँ है
वहाँ भूखापन कहाँ है ?
5
क्राँति की भाषा / रमेश रंजक
रमेश रंजक » मिट्टी बोलती है »
सुनो !
जड़ता तोड़ने के नाम पर तुमने !
एक हरियल रक़म पाई है
कहाँ है जड़ता
सभी चेतन खड़े हैं
एक चुप्पी है
गाज यह उन पर गिरी है
पास जिनके
एक झुग्गी है
नोंच लेंगे वे तुम्हारा हर मुखौटा
थाम कर गंगाजली यह क़सम खाई है
क्रांति करती नहीं भाषा
घरजमाई की
ओढ़ती है छाँह ओछी
रहनुमाई की
क्रांति की भाषा वही आदम गढ़ेगा
हाथ में जिसने नई रेखा बनाई है
रमेश रंजक / परिचय
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रमेश रंजक
हिन्दी के प्रसिद्ध नवगीतकार।
जन्म: 12 सितंबर 1938
जन्म स्थान नदरोई, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत
कृतियाँ किरण के पाँव (1963-65),
गीत विहग उतरा (1966-68),
हरापन नहीं टूटेगा (1969-73),
मिट्टी बोलती है (1974-76),
इतिहास दुबारा लिखो (सभी नवगीत-संग्रह)।
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