लक्ष्य पर ही ध्यान देकर बाण,छोड़ो पार्थ:-राजेंद्रशर्मा अक्षर की एक गीति रचना
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प्रस्तुति
मनोज जैन
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राजेन्द्र शर्मा अक्षर जी की गिनती राजधानी के वरिष्ठ साहित्यकारों में होती हैं।उनके लेखन का एक मात्र उद्देश्य 'स्वान्तःसुखाय' ही रहा।निजी जीवन में लोकेषणा और विज्ञापन वाजी से दूर ही रहे।साहित्य,संगीत,कला और विज्ञान पर अक्षर जी की पकड़ फैवीकौल के मजबूत जोड की तरह है।
अक्षर जी अनेक संस्थाओं में पदाधिकारी रहे हैं।उन्होंने किसी भी संस्था से अन्य सयाने अध्यक्षों की तरह संस्था से कभी कोई लाभ नहीं उठाया बल्कि अपने आपको संस्थागत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन संस्थानों में खुद को झौंक कर होम जरूर कर दिया।
अपनी पारखी दृष्टि से प्रतिभा को पहचानने वाले अक्षर जी के लेखन का फलक बड़ा व्यापक है।यह बात उनकी अभिरुचियों और उनके विपुल साहित्य को पढ़ ,सुन,कर ही लिखी जा सकती है।गद्य और पद्य की लगभग सभी विधाओं में अक्षर जी निष्णात हैं ।
फिर भी,
यह बात भी उतनी ही सही है ,कि अक्षर जी को वह यश नहीं मिला जो उनके हिस्से में आना चाहिए था।
आइये पढ़ते हैं कर्म पथ पर निरन्तर चलते रहने की प्रेरणा प्रदान करने वाले राजेन्द्र शर्मा अक्षर जी के सृजनात्मकत अवदान की एक गीतिरचना !
प्रस्तुति
मनोज जैन
कर्म-पथ
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कर्म पथ पर
ताज भी है,
धूल भी है !!
कभी है सहमति-असहमति
जय-पराजय,
प्रगति-अवनति,
कंटकों से मिलन पल-पल,
संकटों के घोर बादल,
तालियां हैं,गालियां हैं,
फूल भी है,
शूल भी है ।
कर्म पथ पर
ताज भी है,
धूल भी है !!
रोकता भय का महीधर ,
तोड़ता है धैर्य सागर,
डोलती है नाव जर्जर,
हर लहर पर-मन्द,,सत्वर,
और झंझा की दिशा -
अनुकूल भी,
प्रतिकूल भी है !!!
कर्म पथ पर
ताज भी है,धूल भी है!!
लड़ रहा मानव बराबर,
इक महाभारत उमर भर,
इसलिए निष्काम होकर,
लक्ष्य पर ही ध्यान देकर,
बाण छोड़ो,पार्थ !
तरु में-शाख,पंछी,फल,
सुकोमल -पत्र भी है,
फूल भी है ।
कर्म पथ पर
ताज भी है,
धूल भी है ।।
(राजेन्द्र शर्मा 'अक्षर ' )
Rajendra Sharma Akshar
मो.-9893416360
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