मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

ओम निश्चल का एक नवगीत और उस पर चर्चा

-~।।वागर्थ।।~
 में फेसबुक शेयरिंग में प्रस्तुत है सुविख्यात समकालीन वरिष्ठ नवगीतकार एवं समालोचक ओम निश्चल जी का एक बहुत प्यारा नवगीत।ओम निश्चल जी मूलतः नवगीतकार ही हैं।समकालीन समालोचना में निश्चल जी का काम,नई कविता पर ज्यादा दिखाई देता है।खुरदरी अभिव्यक्ति के व्यामोह के चलते समकालीन परिदृश्य के नए और युवा नवगीतकारों में से एकाध दो को छोड़कर, ओम निश्चल जी का परिचय लगभग नहीं के बराबर ही हैं।
    स्वयं की पसंद के सिलेक्टेड से चर्चित नवगीतकारों के नवगीतों को ओम निश्चल जी ने अपना मोहक और खनकदार  स्वर दिया है। जहाँ तक मैंने निश्चल जी की समालोचन के बारे में पड़ताल की तो यही पाया कि आपकी समालोचना सिर्फ क्रीमी लेयर तक सीमित है,या यूँ कहें कि,निश्चल जी का ध्यान सिर्फ क्लास कवियों के इर्द गिर्द घूमने के कारण नवगीत लेखन में तल्लीन नए रचनाकारों पर कभी गया ही नहीं।
                      आइये पढ़ते हैं क्लास विशेष के नवगीत  कवि और समकालीन समालोचक ओम निश्चल जी का एक मनोहारी नवगीत
प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~
समूह

दिन खनकता है . ।
 ओम निश्चल 
• 
दिन खनकता है
सुबह से शाम कंगन-सा।

खुल रहा मौसम
हवा में गुनगुनाहट और नरमी
धूप हल्के पॉंव करती
खिड़कियों पर चहलकदमी

खुशबुओं-सी याद 
ऑंखों में उतरती है
तन महकता है
सुबह से शाम चंदन-सा।

मुँह अँधेरे छोड़ कर 
अपने बसेरे
अब यहॉं तब वहॉं चिड़ियॉं
टहलती हैं दीठ फेरे

तितलियों-से क्षण
पकड़ में पर नहीं आते
मन फुदकता है
सुबह से शाम खंजन-सा।

चुस्कियों में चाय-सा
दिन भी गया है बँट
दोपहर के बाद होती
खतों की आहट

रंग मौसम के सुहाने
लौट आए हैं
लौटता अहसास फिर-फिर 
शोख बचपन-सा।

दिन खनकता है
सुबह से शाम कंगन-सा।

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