राजेन्द्र श्रीवास्तव जी के बाल गीत
1-
माँ देखो! गुब्बारे वाला
देखो! बेच रहा गुब्बारे
रंग-विरंगे कितने प्यारे।
देखो! वह आवाज दे रहा
वह देखो! यशराज ले रहा।
और हरा गुब्बारा लेकर
नाच रही खुश होकर माला।
माँ देखो! गुब्बारे वाला।
देखो! कितना बड़ा फुलाता
देखो! शायद हमें बुलाता।
चलो चलो, हम भी ले लेंगे
उसको एक रुपैया देंगे।
रुपया एक जेब में मेरी-
मैने, अब तक उसे सँभाला।
माँ देखो! गुब्बारे वाला।
माँ तुम हो 'अच्छी माँ' मेरी-
जल्दी चलो, करो मत देरी।
माँ बोली- "तुम न मानोगे
बोलो,भला कौन सा लोगे? "
चिंकू जी बोले खुश होकर-
"सबसे बड़ा, गुलाबी वाला।"
माँ देखो! गुब्बारे वाला।
2-
बच्चो आगे आओ
पूछ रही सूखी नदिया से,
नन्ही मछली रानी
कहाँ गुम हुई रेत तुम्हारी,
कहाँ हुआ गुम पानी
पहले तो सब लोग यहाँ पर,
थाँह नहीं पाते थे,
हाथी भी तट से कुछ आगे,
यहाँ डूब जाते थे
कल की सच्ची बात बनी, क्यों?
केवल कथा-कहानी।
यहाँ-वहाँ जंगल के प्राणी,
भटक रहे बेचारे
ठूँठों में तब्दील हो गये,
आज घने वन सारे
खाने को भोजन, पीने को,
नहीं मिल रहा पानी
जंगल सारे नष्ट हुए , अब-
शेष बची कुछ झाड़ी
इनकी भी दुश्मन बन बैठे,
आरा और कुल्हाड़ी
स्वारथ वश मूरख मानव क्यों,
करता यह नादानी
हौले-हौले हवा कह रही,
सुन लो बहिना-भाई
हवा प्रदूषित कर जीवन से,
ले ली मोल बुराई
प्राण-वायु को अब तरसेगा
धरती का हर प्राणी।
यह धरती-आकाश कह रहे,
बच्चो आगे आओ
और अधिक दूषित होने से,
मिलकर हमें बचाओ
करो प्रदूषण-मुक्त यहाँ की,
हवा, मृदा व पानी।
3- पढ़ना सीखें बढ़ना सीखें
मन ही मन न कुढ़ना सीखें
आपस में न लड़ना सीखें
दुनियाँ सीख रही है हम भी
पढ़ना सीखें, बढ़ना सीखें।
ज्ञान और विज्ञान के युग में-
अक्षर ज्ञान है बहुत जरूरी ,
जन-जन की उन्नति की खातिर
साक्षर बनना बहुत जरूरी ।
आओ सीखें, पुस्तक-पढ़ना
आओ अक्षर गढ़ना सीखें।
हमें निरक्षर मूर्ख मान कर
कोई न उपहास उड़ाए।
अनपढ़,अपढ़,अनाड़ी कहकर
कोई हमें चिढ़ा न पाए।
एक-दूजे की मदद के लिये
अब आपस में जुड़ना सीखें।।
अपने ही अज्ञान के कारण
अक्सर गलती हो जाती है।
और हमारे जीवन में फिर
नयी-नयी बाधा आती है।
अक्षर से अज्ञान मिटाकर-
प्रगति-पथ पर बढ़ना सीखें।
दुनियाँ सीख रही है हम भी
पढ़ना सीखें-बढ़ना सीखें ।
4-- अरे,सुनो..!
अरे,सुनो!यह प्रकृति कुछ हमसे कहती है
सुनो सुनो!यह प्रकृति क्या हमसे कहती है
कल-कल स्वर में नदियाँ कहती
चल-चल तूँ क्यों घबराता।
बाधाओं से लङकर ही तो-
व्यक्ति सफलताएँ पाता।
दुर्गम पथ पर प्रबल वेग से-
निर्मल धारा बहती है।। सुनो सुनो....
कहते हैं यह पुष्प सभी दुख,
हम हँस-हँस कर सह लेते।
भ्रमर छीन लेता पराग,
काँटों में प्रमुदित रह लेते।
उमंग और उल्लास की प्रतिपल-
सुरभि बिखरती रहती है।। सुनो सुनो.. ..
हरे-भरे यह वृक्ष कह रहे
हमने भी पतझङ देखे।
सहे कुठाराघात,दिये फल-
पर पत्थर अपने लेखे।
प्राणवायु अनवरत पत्तियों से-
झर-झर,झर बहती है।। सुनो सुनो...
ऊँचे-ऊँचे पर्वत कहते
हमसे ऊँचा ध्येय बनाओ।
परमार्थी,पुरुषार्थी बनकर-
जीवन में यश-वैभव पाओ।
आत्मोन्नति की अथक चेष्टा -
प्रतिपल चलती रहती है।। सुनो सुनो....
5-जय भारत माता।
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जयति जय जय भारत माता
जयति जय जय भारत माता।
अमर रहे युग युग तक अपना
यह पावन नाता ।।
जय जय भारत माता
उत्तर में गिरिराज हिमालय
आसमान छू ले।
दक्षिण में गहरा सागर
पाताल लोक जाता ।।
जय जय भारत माता...
कल-कल, छल-छल निर्मल जल से
परिपूरित नदियां।
सतलज गोदावरी नर्मदा
जय गंगा माता ।।
जय जय भारत माता..
पानी से सिंचित, खेतों में
फसलें लहराएँ।
उन्नत फसलों से किसान का
दिल खुश हो जाता ।।
जय जय भारत माता...
सीमाओं पर सैनिक अपना
सीना तान खड़े।
दुश्मन का हर वार यहाँ पर
निष्फल हो जाता ।।
जय जय भारत माता...
सब भारतवासी आपस में,
हैं भाई - भाई।
हम सब हैं संतान तुम्हारी,
तुम सबकी माता ।।
जय जय भारत माता....
6- तारों से आकाश खिला है।
कुछ छोटे कुछ बड़े सितारे
टिम टिम चमक रहे हैं सारे।
अडिग और स्थिर बैठे सब-
जिनको जो स्थान मिला है। तारों से....
ओर-छोर कोई न पाये
इस कारण अनंत कहलाये।
दूर क्षितिज पर लगता, जैसे -
धरती से आकाश मिला है। तारों से....
रात चंद्रमा, सूरज दिन में
विचरण करते मुक्त गगन में।
जग को आलोकित करने का-
एक अहम् दायित्व मिला है। तारों से...
साथ हवा का जब पा जाते
बादल भी नभ में उड़ जाते।
रह रह चमक दामिनी जाती-
टकराती जब मेघ-शिला है। तारों से....
ग्रह - उपग्रह और पुच्छल तारे
तारा मण्डल विविध न्यारे।
मन्दाकिनी सरीखी अनगिन
बहती "तारों की सलिला" है।
यह मन भी आकाश सरीखा
कुछ दीखा और कुछ अनदीखा।
नीरव और निरभ्र कभी, तो -
कभी, धुंध से ढंका मिला है । तारों से....
7- सात बर्ष की गुड़िया छोटी
सेंक रही चूल्हे पर रोटी।
आटा गूँथा लोई बनाई
लेकिन एक समस्या आई
बेचारी के पास नहीं हैं
घर में बेलन और चकोटी।
हाथों पर ही लोई दबाकर
गोल-गोल फिर उसे घुमाकर
रोटी बना रही रुचि लेकर
गोल-गोल कुछ पतली-मोटी।
घोर गरीबी में भी पढ़ कर
सारी बाधाओं से लड़ कर
छू ही लेगी धीरे-धीरे
सुखद सफलताओं की चोटी।
8-सोचें-समझें चलो, काम कुछ
अच्छा-भला करें।
माना अभी उम्र में छोटे
अक्ल नहीं ज्यादा
लेकिन हम अच्छा बनने का-
करते हैं वादा।
जागें सूर्योदय से पहले
यह हौसला करें।। नये साल में चलो....
अच्छा सुनो, लगेगी तुमको
अच्छी यह चर्चा।
कम कर सकते हैं हम घर की
बिजली का खर्चा।
बेमतलब न बल्ब जलें, न -
पंखे चला करें।। नये साल में चलो...
उत्तम स्वास्थ्य और भोजन की
बाते बतलाएँ।
ज्यादा तला, चटपटा, मीठा,
अधिक नहीं खाएँ।
रोज नहाते समय रगड़ कर,
तन को मला करें।। नये साल में चलो....
9-
नील गगन पर बादल छाए
जाने कहाँ-कहाँ से आए।
मिलकर हुए घने व काले
भारी गर्जन करने वाले
लगी चमकने बिजली चंचल
पल-पल चकाचौंध कर जाए
बादल गरजे दूर गगन में
मोर नृत्य करते उपवन में
टिप-टिप बूँदें लगीं बरसने
मेंढक टर्र-टर्र टर्राए।
यहाँ-वहाँ से बादल आकर
चले गये पानी बरसा कर
पानी बंद हुआ तब देखा
इंद्रधनुष ने रंग विखराए।
10-नाच रहे हैं मोर
***
ऊँची-नीची पर्वत श्रेणी
उथली-गहरी घाटी
हरी दूब से ढँकी हुई है
काली-काली माटी
हरे-भरे वृक्षों की आभा
लुभा रही चहुँ-ओर।
गहरी शांत झील में निर्मल
शीतल-गहरा पानी
छोटी-बड़ी मछलियाँ करतीं
पानी में मनमानी
पल-पल बनती और बिगड़ती
जल में नई हिलोर।
इस सुरम्य निर्जन घाटी में
अक्सर साँझ-सवेरे
पा एकांत इकठ्ठा होते
पशु-पक्षी बहुतेरे
देखो तो उस ओर, मगनमन
नाच रहे कुछ मोर।
11- हम महनत से मुँह न मोड़ें
सतत प्रयास कभी न छोड़ें।
अकर्मण्यता की जंजीरे -
अपने पुरुषारथ से तोड़ें ।
सरिताएँ ज्यों आगे बढ़तीं
चट्टानों से डटकर लड़तीं ।
देख अडिगता चट्टानों की-
स्वयं दिशा कुछ अपनी मोड़ें।
लक्ष्य चुने फिर पथ पहिचानें
बाधाओं से हार न माने ।
देश-प्रेम, व प्रगति, एकता
जन को जन गण मन से जोड़ें
यह आलस्य , हीनता छोड़ें
साथ समय के भागें-दौड़ें ।
अप्रिय ठीकरा असफलता का-
किसी और के सिर न फोड़ें ।।
राजेंद्र श्रीवास्तव
परिचय
नाम:- राजेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव
(सेवा निवृत्त प्राचार्य)
जन्म तिथि 04/06/1954
पिता - स्व. जगन्नाथ प्रसाद श्रीवास्तव
माता - स्व. गोपी देवी श्रीवास्तव
जन्म स्थान:- ग्राम - काँकर
तहसील- कुरवाई,
जिला- विदिशा म.प्र.
शिक्षा:- एम.एस सी (प्राणी शास्त्र ) बी.एड.
गीत नवगीत कविता कहानी लेखन
दूरदर्शन भोपाल एवं आकाशवाणी भोपाल, इन्दौर व जगदलपुर से चिंतन, बाल कहानी, बाल कविता, गीत/नवगीत, कहानी व नाटिकाओं का प्रसारण।
प्रकाशित कृतियाँ
बाल कविता संग्रह 1- मछली रानी
2 - मेरा मन बहलाए गिलहरी
बाल कहानी संग्रह 1- जैसा खोया वैसा पाया
ईमेल :- rpshrivds78@gmail.com
मो:- 9753748806
संपर्क हेतु पता:-
राजेन्द्र श्रीवास्तव श्री साईं सदन
आर एम पी नगर फेज -1
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