शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

कृति धूपभर कर मुठ्ठियों में : टिप्पणीकार डॉ जगदीश व्योम जी

वरेण्य नवगीतकार डॉ जगदीश व्योम जी का
कृतज्ञ मन से मेरी कृति
"धूप भरकर मुठ्ठियों में"
पर उनकी महत्वपूर्ण
प्रतिक्रिया के लिए आभार

          वर्तमान समय में नवगीत के सशक्त रचनाकार मनोज जैन जी का नवगीत-संग्रह "धूप भरकर मुट्ठियों में" की प्रति डाक से प्राप्त हुई.  2021 में प्रकाशित 120 पृष्ठ के इस नवगीत संग्रह में मनोज जैन की 80 गीत/नवगीत रचनाएँ हैं. 
मनोज जैन के नवगीत सहज ग्रहणीय होते हैं और उनके अधिकांश नवगीत जनसाधारण के पक्ष में खड़े प्रतीत होते हैं, शोषण के विरुद्ध स्वर मनोज जी के गीतों का मुख्य स्वर रहता है.
जनसाधारण या आम आदमी की विनम्रता यूँ तो उसकी पहचान सी बन गई है परन्तु उसकी विनम्रता को जब उसकी कमजोरी समझ लिया जाता है तो वह इसका प्रतिरोध करना भी जानता है-

"हम धनुष-से झुक रहे हैं
तीर-से तुम तन रहे हो
हैं मनुज हम, तुम भला फिर
क्यों अपरिचत बन रहे हो"

दुनिया में जो कुछ विकास का उजियारा है, सब जानते हैं कि वह किसान और मजदूर के ही श्रम का प्रतिफल है लेकिन इनका श्रेय उसे नहीं दिया जाता, यह विडम्बना ही तो है, श्रमजीवी के इसी मूकभाव को मनोज जैन का नवगीत 
मुँहतोड़ जवाब देता हुआ दिखाई देता है-

"उजियारा तुमने फैलाया
तोड़े हमने सन्नाटे हैं
प्रतिमान गढ़े हैं तुमने तो
हमने भी पर्वत काटे हैं"

नवगीत संग्रह के प्रकाशन पर मनोज जैन को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ. 

-डा० जगदीश व्योम

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