सोमवार, 12 फ़रवरी 2024

अनामिका सिंह के चार प्रेम गीत

अनामिका सिंह के चार नवगीत
     प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~


एक

साथी तुमको प्यार
_______________

तेरे आने से मन महका
महक हुआ गुलज़ार 
साथी तुझको प्यार

जुड़े डोर बिन,मन जा पहुँचे
मीलों नंगे पैर 
चुभे न कोई काँटा-वांटा
रोज़ मनाऊँ ख़ैर

रेशम सा यह नाता चाहे 
नाज़ुक साज-संभार
साथी तुझको प्यार ।

संवादों के पल ले आये
हमको बहुत क़रीब
अब अमीर हैं ,बने रहें 
कुछ ऐसी हो तरकीब ।

और अमीरी पर दिन -दूना 
आता रहे निखार
साथी तुझको प्यार ।

सरलमना है नेह हमारा 
सीधी हर तक़रीर ,
इन तक़रीरों संग खिंचनी है 
लम्बी प्रेम लकीर ।

नेह-छोह के और अधिक हों
ऊँचे ये मे’यार ।
साथी तुझको प्यार ।

    दो

तुम बिन यह मन रहे अनमना
छाई रहे उदासी 
जल बिन मीन पियासी ‌।

दो नयनों  में 
बिना तुम्हारे
आ धमका चौमासा ।
रेज़ा - रेज़ा 
मन घुलता 
ज्यों पानी घुले बताशा ।

ढीली कर दी 
अनुपस्थिति ने 
तबियत अच्छी-खासी ।

जोड़ हथेली 
दुख भर लाया 
प्रेम साथ कुछ अपने ,
खुले नयन से 
देखे थे जो
चुए  पलक  से  सपने ।

पक्की थी 
चाहत की सीवन 
बेजा रोज़ उकासी ।

भादों आँखें,
जेठ हुआ मन
आस अमावस ठहरी 
कहाँ लिखाऊँ 
प्रेम मुकदमा
जाऊँ कौन कचहरी ।

काँच नगरिया हम ,
बैठे तुम 
दूर कोस चौरासी ।

जल बिन मीन पियासी ।

तीन

मन  हारिल  ने  उम्मीदों  के 
कितने   दीप   जलाये ,
मनमीत   नहीं  आये ।

पावस   बीता  बिना  तुम्हारे ,
आशाओं का  काजल  पारे 
नयन नेह का  सूद  भर  रहे ,
उलट हृदय पर अश्रु झर रहे ।
पश्मीने सी  छुअन   तुम्हारी ,
अब  तक  जेहन में  है तारी ।
रुक -रुक  कटें अलोनी रातें ,
सुधियाँ  सूत विगत का कातें।

मेरे   प्यारे   बिना    तुम्हारे 
जीवन  कुम्हलाये ,
मनमीत      नहीं       आये ।

तुलसी   चौरे   तले   अँधेरा ,
बँजारों सा   दिल  का  डेरा ।
रीते  -बीते    फागुन  पावस ,
जीवन पर  ठहरी है  मावस ।
मुझ पर  मोहक मंतर   मारे ,
मुमकिन उनके  नहीं उतारे ।
पल में रत्ती  पल  में  माशा ,
धड़कन दिल की करे तमाशा।

श्वास -श्वास रुक -रुक रूदाली   
शोक  गीत   गाये ,
मनमीत नहीं   आये ।

उगे   सूर्य फिर भी अँधियारा ,
गुमसुम   अँगनाई  ओसारा ।
कटखन्नी   हर  चाँद कला है ,
जुन्हाई  में   हृदय   जला  है ।
अरमानों  पर  झरी  ओस है ,
यही   प्रेम  का  पारितोष  है ।
रही  अबाँची   नेहिल   पाती ,
उस  पर   गिरे अश्रु ओलाती ।

सिर्फ़ चाह थी अमिट रहे , वो
लिपि  धुलती    जाये ,
मनमीत  नहीं   आये ।

चार

फागुन का गुन
___________
फागुन का गुन 
सिर चढ़ बोले
रिलमिल रंग चढ़ा।

ऐसे रंग में रँगना जोगी
कभी नहीं छूटे ।
नेहिल थाप न टूटे,बेशक
जीवन लय टूटे ।

मन का प्रेम 
बरोठा हो बस 
तेरे रंग मढ़ा।
रिलमिल रंग चढ़ा ।

इस फागुन से उस फागुन तक
हों छापे गहरे ।
रंग चढ़ाना ऐसा जोगी
जनम-जनम ठहरे ।

शोख रंग में रंग वफा का 
थोड़ा और बढ़ा ।
रिलमिल रंग चढ़ा ।

किस्सागो लें नाम हमारा 
रँगरेजा सुन ले ।
मीत-जुलाहे एक चदरिया 
झीनी-सी बुन ले ।

ओर - छोर हो
जिसके,तेरा-मेरा 
नाम कढ़ा।
रिलमिल रंग चढ़ा ।

                - अनामिका सिंह

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