क्षितिज जैन गुलाबी नगरी जयपुर से आता है और उम्र में सबसे छोटा रचनाकार है। वह पूरी निष्ठा से नवगीत लिखना सीख रहा है और खूब पढ़ता है। समूह में वरिष्ठ नवगीतकारों की प्रस्तुतियों पर अच्छी टिप्पणियाँ जोड़ता है। इस युवा कवि को प्रोत्साहन देने के लिए समूह वागर्थ इस बालक का एक नवगीत प्रस्तुत करता है।
प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल
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युग निरंकुश गति से
बढ़ चला-
और हम शोध करते रह गए.
हत्यारे समय ने-
घाव दिए कितने-
किसे गिनाएं?
करतीं रहीं पीड़ित
मुंह चिढाकर- ये
विडंबनाएँ.
प्रतिकार का सोचा
पर हम-
बस कृत्रिम क्रोध करते रहे गए .
सुन हमारी बातें
हँसता रहा यह-
क्रूर ज़माना
विनाश की राह चुन
किया सदा अपना
हर मनमाना.
जो घर घर में ही
पैठ गया-
उसका विरोध करते रह गए.
हम पीठ पर खंजर
घोंप, यूं किसीको
छल नहीं सके
लेकर लिटमस टेस्ट
निज रंग बदलकर
चल नहीं सके
स्वच्छंद जगत में
रहकर भी-
सत्य का बोध करते रह गए.
क्षितिज जैन ‘अनघ’
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