आदरणीय मनोज जी, सप्रेम नमस्ते 🙏
इन दोहों पर आपकी समीक्षक दृष्टि चाहता हूँ, साथ ही यदि वागर्थ पेज के अनुरूप हो तो कृपया अवसर दीजिए ।
1- नीति-रीति की बात को, कहिए सीना तान।
राजनीति कहते नहीं, इसको चतुर सुजान।।
2- दिन को दिन बतलाइए, कहें रात को रात।
हित-अनहित मत सोचिए, कहिए सच्ची बात।।
3- जीवन के मैदान में, हार मिले या जीत।
होठों पर मुस्कान हो, मन में सच्ची प्रीत।।
4- आता है चुपचाप वह, जाता है चुपचाप।
बुरा कहो अथवा भला, समय की न पदचाप।।
5- मर जाते मानव यदपि, जीवित रहती आह।
कुरुक्षेत्र में आज भी, सुनने मिली कराह।।
6- जन-हित के अनुरूप यदि,नहीं रहा जनतंत्र
तो पनपेंगे तंत्र में, स्वार्थ और षडयंत्र।।
7- एक बोलता जा रहा, दूजा है चुपचाप।
होना तो संवाद था, होता एकालाप।।
8- दर्पण तो है काँच का, रहता है चुपचाप।
मन-दर्पण में झाँकिए, साहस करके आप।।
9-लोप हुई आकाश में, या पैठी पाताल।
'राहत' लाख-करोड़ की,खोज रहे कंगाल।।
10- अगर असंभव लग रहा,अन्न, वस्त्र,धन दान
तो हर्षित मन बाँटिए, कपट रहित मुस्कान ।।
11- नहीं समाहित सृजन में, मूल्य और आदर्श।
वह लेखन किस काम का,जिसमें नहीं विमर्श।।
12- बन जाते घोड़ा कभी, या बन जाते रेल।
दादा जी को सुख अमित, पोते को है खेल।।
13- सारी रैना चाँद को, तकता रहा चकोर।
हाथ पकड़कर चाँद का, साथ ले गयी भोर।।
14- -उनका दोहरा आचरण, देख उपजती खीज
बात करें पुरुषार्थ की,पहिन गले ताबीज।।
15- भेड़ों की अनुगामिनी, भाग रही है भेड़।
जब मन चाहा हाँक लीं,या फिर दिया खदेड़।।
राजेंद्र श्रीवास्तव विदिशा म.प्र
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