बुधवार, 17 जुलाई 2024

मीनाक्षी ठाकुर का एक नवगीत



मीनाक्षी ठाकुर जी का एक नवगीत
प्रस्तुति
वागर्थ


मधुर गीत -नवगीत आपके, 
शब्द अनूठे, बिंब हज़ार। 


कभी धूप भर कर मुट्ठी में, 
पाना  ये चाहें  सूरज। 
कभी बुद्ध के आदर्शों की, 
माथे पर सज जाती रज। 


कभी भाव की एक बूँद से
 भर जाता स्वप्निल संसार। 


मधुर गीत -नवगीत आपके, 
शब्द अनूठे, बिंब हज़ार। 
कसे शिल्प में  बँधे छंद हैं, 
कविताओं में उजलापन।
तीखी-पैनी धार कलम की, 
लिखते केवल जन का मन। 


सदा झूठ की बाँह मरोडी, 
और किया सच का सत्कार। 


मधुर गीत -नवगीत आपके, 
शब्द अनूठे, बिंब हज़ार। 
पर -पीड़ा से रहे उपजते, 
मन में  जितने प्रश्न तमाम। 
नयी सोच ने लिख डाले हैं, 
उत्तर अगणित तभी ललाम। 


स्वागत करने मचल रहा है, 
आज आपको हरसिंगार। 

मधुर गीत -नवगीत आपके, 

शब्द अनूठे, बिंब हज़ार। 


मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें