वागर्थ प्रस्तुत करता है चर्चित और वरेण्य कवि गुलाब सिंह जी के दो नवगीत
मैं चंदन हूँ
____________
मैं चंदन हूँ
मुझे घिसोगे तो महकूँगा
घिसते ही रह गए अगर तो
अंगारे बनकर दहकूँगा।
मैं विष को शीतल करता हूँ
मलयानिल होकर बहता हूँ
कविता के भीतर सुगंध हूँ
आदिम शाश्वत नवल छंद हूँ
कोई बंद न मेरी सीमा—
किसी मोड़ पर मैं न रुकूँगा।
मैं चंदन हूँ।
बातों की पर्तें खोलूँगा
भाषा बनकर के बोलूँगा
शब्दों में जो छिपी आग है
वह चंदन का अग्निराग है
गूंजेगी अभिव्यक्ति हमारी—
अवरोधों से मैं न झुकूँगा।
मैं चंदन हूँ।
जब तक मन में चंदन वन है
कविता के आयाम सघन हैं
तब तक ही तो मृग अनुपम है
जब तक कस्तूरी का धन है
कविता में चंदन, चंदन में—
कविता का अधिवास रचूँगा।
मैं चंदन हूँ।
2
गीतों का होना
________________
गीत न होंगे
क्या गाओगे ?
हँस-हँस
रोते रो-रो गाते
आँसू-हँसी राग-ध्वनि-रंजित
हर पल को संगीत बनाते
लय-विहीन हो गए अगर
तो कैसे फिर
सम पर आओगे
तन में
कण्ठ कण्ठ में स्वर है
स्वर शब्दों की तरल धार ले
देह नदी हर साँस लहर है
धारा को अनुकूल
किए बिन
दिशाहीन बहते जाओगे
स्वर
अनुभावन भाव विभावन
ऋतु वैभव विन्यास पाठ विधि
रचनाओं के फागुन-सावन
मुक्त-प्रबंध
काव्य कौशल से
धवल नवल रचते जाओगे
परिचय
गुलाब सिंह
जन्म- ५ जनवरी १९४४ को इलाहाबाद के ग्राम बिगहनी में।
कार्यक्षेत्र- अध्यापन एवं लेखन
प्रकाशित कृतियाँ-
नवगीत संग्रह- धूल भरे पाँव, बाँस-वन और बाँसुरी, जड़ों से जुड़े हुए
उपन्यास- पानी के फेरे
शंभु नाथ सिंह द्वारा संपादित नवगीत दशक और नवगीत अर्धशती में रचनाएँ संकलित।
संप्रति- राजकीय इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हो चुकने के बाद स्वतंत्र लेखन।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२७-०१ -२०२२ ) को
'गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ....'(चर्चा-अंक-४३२३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जब तक मन में चंदन वन है
जवाब देंहटाएंकविता के आयाम सघन हैं
तब तक ही तो मृग अनुपम है
जब तक कस्तूरी का धन है
कविता में चंदन, चंदन में—
कविता का अधिवास रचूँगा।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
मैं चंदन हूँ
जवाब देंहटाएंमुझे घिसोगे तो महकूँगा
घिसते ही रह गए अगर तो
अंगारे बनकर दहकूँगा।
मैं विष को शीतल करता हूँ
मलयानिल होकर बहता हूँ
कविता के भीतर सुगंध हूँ
आदिम शाश्वत नवल छंद हूँ
क्या बात है सर आपने एकदम सटीक👍
बहुत ही शानदार सृजन..
किसी भी चीज़ को हद से अधिक समय तक दबाना चाहो तो ज्वालामुखी का रूप धारण कर लेती है!
बहुत ही सुंदर सारगर्भित नवगीत ।पढ़कर एक सार्थक और सुखद अनुभूति हुई । आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹👏
जवाब देंहटाएंआपका कृतज्ञ मन से आभार!
हटाएंचन्दन सम सुगंधित सृजन। अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंअति सारगर्भित,सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं