बुधवार, 12 जनवरी 2022

शान्ति सुमन जी के 7 नवगीत

 


1
 इन्तजार आँखों का 
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आपसदारी , रिश्ते-नाते
                 कहाँ   गये
समझौते  केवल समझौते
                  नये--नये
इन्तजार आँखों का
काला  हिरन   हुआ
खोजे जंगल में जल
प्यासा   कंठ  सुआ


बोल  सहज मीठे-मीठे से
                  कहाँ   गये
अब आएगी   आँधी
कहकर  गयी  हवा
रंग  बचाती   अपना
टहनी  ओट   जवा

परस मुलायम  हाथोंवाले
                    कहाँ   गये
सपनों  में  नींदभरी
अब  केवल   सपने
झीलों की लहरों में
सुरवाले      गहने

लेकर  नाम पुकारे जो दिन
                  कहाँ   .गये
समझौते  केवल समझौते
                   नये--नये ।

2

        मन  के  पन्ने
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पाल रही अपने सुख-दुख को/
अपने ही मन में
नदी, तुम्हारे मन के कितने
               पन्ने नहीं खुले

कितना लिया उधार धूप से
बाकी है अब वर्षा का
कब-कब सूरज की देहरी पर / 
जाकर माथा टेका   

कहने को तो कितने ही थे
तेरे दर्पण में
नदी,तुम्हारे सुख के कपड़े
अब तक नहीं सिले

होती कास-पटेर कहो तो
होता अच्छा  कितना
गुलाबखासों के रस जैसा
  मीठा  सचमुच   उतना

तेरा वश सरबस जैसा ही
         रहा  लगता  सबको
नदी, तुम्हारे मन के  मरहम
         अब तक नहीं  मिले
डूबता नहीं जबतक सूरज
      तुम मंत्रों सी  जगती
मन के कितने ही बंधन पर
     शंखों सी  हो  दिपती

तुमने चाहा नहींंइसी से
        मन --अंचल  सूखा
नदी , तुम्हारे मन के  सपने
         हरदम  धुले--धुले ।
        
3

           नदी के गाँव से
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आँखें तुम्हारी नींद में गाती हुई/
  तुम हँसी के गाँव सेआई हुई लगती

बारिश का पहला सोंधापन
भींगी  खुशबू खेतों की
पैरों के नीचे की मिट्टी
पीड़ा कहती रेतों की
हथेली की लकीरों से बाँधती हुई/ 
 तुम खुशी के गाँव से आई हुई लगती

कोई बड़ा सुकून बाँधकर
घर ले आती रोज  बया
यादों में खो जाती  तितली
दिन हो जाता कहीं  नया
हवा छतों की लगती गुनगुनाती हुयी /
तुम नदी के गाँव से आई हुई लगती

पहचान कभी बन जाते वे
कितने ही पहर सुखों के
ऐसा  होता जब आते दिन
सयाने  उतने  दुखों के

फूल-पातों की शिंजिनी बजाती हुई  /
तुम इमन के गाँव से आई हुई लगती  ।
       कुछ  सगुन  सा

एक बोल मीठा जो तुमने कहा /
टेसू के फूलों में
               रंग आ  गये

लोट-लोट जाती हैं
धानों की बालियाँ
उतरे हैं झूले हवाओं के
पहनकर  मंगटीका
नाची  हरियालियाँ
मुसकियाँ भरे मुख दिशाओं
 के

पोर-पोर विंधते जो मन ने सहा /
पलकों के झालर में गीत  आ गये

साँसों को रोक उड़ा
हवाओं में  तिनका
लगती रिश्तों की गंध उतरने
शाखों में धूपों के
कुछ सगुन सा खनका
मन मैं लगती यादें गमकने

धूप -दिन  आँखों में भींगकर बहा/
खेतों के मेड़ों में  जल समा गये

पीड़ा के जो माने
जानते   वर्षों   से
सावन ने बहुत उसको गाया
सूखे से मौसम में
डहकते  हंसों से
मारूविहाग किसने सुनाया

अपने सपनों की नींदों में नहा/
दिन कल अधजागे से 
             पल थमा गये ।

गाँव गयी तुम हो
     वहाँ से मौसम ले आना

छान धूप को लेती होगी
पैड़ों  की डाली
गाती होगी बड़े यतन से
लहरें   'भटियाली''

सखी की हँसी के
उजलाए  पारिजात लाना

किरन पहले ही रंग देगी
घर के सब  कोने
ओसों की फुहार देखेंगे
चिड़िया के छौने

सूरज उगने के
समय के  हरसिंगार लाना

पके हुए धानों की बाली
कुछ कहती होगी
सुनना गीत हवा के जब भी
वह बहती होगी

घर की नींद--हँसी ,
सुख--सपने  लाना ।

       4
नदियाँ  इंगुर की
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इतनी सर्द हवाओं  मे भी
खुशबू    का   अहसास
अपना कोई प्यारा  जैसे
इस    पल  अपने  पास

इंंगुर की नदियाँ बहती हों
मन    में , आँखों    में
प्यार  बाँधकर उड़ती चिड़िया/
नीली   पाँखों    में

हरियाली   के  दर्पण दीखा
'आनन   ओप    उजास '

इतने  यतन जुगाये तब से
       भीतर के अंकुर  को
छाया वह छतनार समेटेगी
        पीले    पतझड़   को

मैले  कभी न  होंगे वन के
रंगारंग         पलास             .

5
लड़की पहली बार
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दिन डूबे आँखों में सपनों
की दुनिया  जगती है
लड़की पहली बार बया के
पंख   पकड़ती  है

होते साँझ सुरंग अँधेरों
की   बनने  लगती
आते-जाते  पाँवों  की
आवाज  पहनने  लगती

बहनेवाली  हवा दुखों के
संग   सुलगती  है
  अपने   सम्बंधों    के
  ताने-बाने   बुनती   है

मन के भीतर भी होती हैं
मरुथल की जगहें
ईंट  पकाती  आगोंवाली
धधक रही   सतहें

कैसी-कैसी  स्मृतियों  की
कीलें    गड़ती    हैं
चुप्पी में भी  बात  पहाड़ी
झरनों सी   झरती   है

कोई  हँसी ,  हवा  का रेला
याद    दिला    देता  
परिचित सा एक रंग,रंग में
गंध    मिला    देता  

खुशियाँ  बीज कहाँ छीटें
अब आगे   परती    है
छोटी एक  प्रार्थना  रचती
बहुत बड़ी    धरती   है।

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