शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

धूप भरकर मुट्ठियों में"समीक्षक--डॉ.रंजना शर्मा



"धूप भरकर मुट्ठियों में"
समीक्षक--डॉ.रंजना शर्मा
आवरण पृष्ठ बहुत ही मनमोहक है व नामकरण आकल्पन के लिए आपको बधाई हो।जब भी हम कोई रचना करते हैं तो सर्वप्रथम हमारे भीतर आत्मा का विवेक हो, फिर उपासना और कर्म की साधना हो तभी हम उसके साथ सही न्याय करते हैं।
वाणी वंदना से प्रारंभ होकर माँ से सबका कल्याण के लिए अनुनय विनय और अंत में अंतर्घट भरदो बड़भागी
हैं वे जिन्हें शब्द सत्ता प्राप्त हुई है। नहीं शिकायत कभी उन्हें-नियति से फूल मिला या खार"प्यार के दो बोल बोलें"-शब्द को वश में करें,आखरों की शरण हो लें-और भी मानवता के चरम लक्ष्य को आत्मदर्शी कवि मनोज जी ने जितनी सुंदरता से साझा किया है नितान्त सराहनीय है।आपकी रचनाओं में मुझे सहज सरल किंतु हृदय स्पर्शी भाषा का अनुभव हुआ--"अंजुरी में आस भर लाने लगे दिन"कुछ-कुछ कविताऐं तो प्रीति, स्नेह से ओत-प्रोत और जीवन के सतत प्रवाह की व आत्मीयता की साक्षी हैं यथा-"खुद की किस्मत फोड़ बावरा ठोक रहा ताली"
हम सुआ नहीं पिंजरे के,सिर्फ उस्ताद हैं जमूरे नहीं"हम दासत्व क्यों अपनायें? ऐसी भावनाओं से भरी अन्य भी रचनाऐं हैं। कहीं आपने ज्वलंत रीतियों राजनीतिक कुरीतियों-"आपतो भरते रहे घर हम हुए खाली-उर्वरा भूमि है अंतर की,सुख से रार ठनी मेरी, दुःख से प्रीत घनी है मेरी"
सच कहा जाए तो आपकी कविताओं में विज्ञान सी शोधार्थी परख विद्यमान है।भीमवेटका की कलाकृतियों की 
झलक-को भी आपने समाहित किया है। मापनी में रचना करना सरल नहीं है। कहीं-कहीं गेयता का अभाव भी है, परंतु सुधिजन ही इसपर ध्यान दिला सकते हैं।मुझे किंतु फिरभी आपकी रचनाओं में सत्यता, निष्पक्षता और वास्तविकता का दर्शन हुआ। मानव-मन को पढ़ लेना और उन्हें काव्यात्मक रूप में संजोना,उसे यथावत काव्यधारा में प्रवाहित करना निश्चय ही एक श्रेयस्कर कार्य है। भविष्य में पुनः आपसे ऐसी ही आशा बनी रहेगी। बधाई आपको--
                                रंजना शर्मा

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