एक
दो मुँहे साये
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जिंदगी
अपनी कटी
अक्सर तनावों में ।
एक प्रतिभा की
वजह
सारा शहर नाराज
हर समय
हम से रहा -
हम पर गिराई गाज
दूब भी
बनकर गड़ी है
कील पाँवों में ।
दोस्ती के
नाम पर कुछ
दो -मुँहे साये
हर समय
मन की मुँडेरों पर
रहे छाये
श्वांस तक
लेना हुआ
दूभर अभावों में।
दो
होंठ तक पथरा गये
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प्यास के मारे
नदी के
होंठ तक पत्र आ गए
मेघदूतों की
प्रतीक्षा में
थकी आँखें
धूप सहते
स्याह -नीली पड़
गयी शाखें
ज्वार
खुशबू के चढ़े थे
स्वतः उतरा गये
फूल से
दिखते नहीं दिन
कहकहों वाले
तितलियों के
पंख तक में
पड़ गये छाले
स्वप्न
रतनारे नयन के
टूट कर बिखरा गये
इसाक "अश्क"
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इसाक अश्क / परिचय
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इसाक मौहम्मद
जन्म: 01 जनवरी 1945
उपनाम इसाक अश्क
जन्म स्थान तराना, उज्जैन
कृतियाँ : सूने पड़े सिवान / इसाक अश्क (गीत-संग्रह),फिर गुलाब चटके / इसाक अश्ककाश हम भी पेड़ होते /इसाक अश्कलहरों के सर्पदंश / इसाक अश्क (सभी कविता-संग्रह)विविध ग़ज़लें भी लिखी हैं। ’समांतर’ पत्रिका के सम्पादक।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (०४ -०२ -२०२२ ) को
'कह दो कि इन्द्रियों पर वश नहीं चलता'(चर्चा अंक -४३३१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका कृतज्ञ मन से आभार अनीता सैनी जी
जवाब देंहटाएंजीवन संदर्भ और यथार्थ का चित्रण करते नवगीत । साझा करने के लिए वागर्थ का बहुत आभार ।
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