वागर्थ प्रस्तुत करता है मीनाक्षी ठाकुर के दो नवगीत
मीनाक्षी ठाकुर मुरादाबाद से आती हैं और वहाँ के युवाओं में नवगीत का प्रतिनिधित्व करती हैं।
प्रस्तुति
वागर्थ
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एक
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विस्थापित तिनको ने ढूंढा
विस्थापित तिनको ने ढूंढा
फिर से कोई ठौर,
बीते कल ने जब भी गाये
वही पुराने गीत
मन में दुबकी बूढ़ीं यादें
हुईं विकल,भयभीत
हाथ जोड़कर विनती करतीं
गा लेते कुछ और...!
कहलाता था घर जो सबका
अब बन गया मकान
आपस में ही झगड़ रहे हैं,
दर, चौखट, दालान
पहिये वाली कुरसी पर है
सेवानिवृत्त दौर
ज़िम्मेदारी ने जब भेजा
अल्हड़पन को मेल
भूले छकड़ी याद रहा बस
लकड़ी,नून व तेल
भूखे तन को साध रहे हैं
दो रोटी के कौर..
दो
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...रस्मों वाली थाली
किसने ढक दी थालपोश से
रस्मों वाली थाली
पत्तल को वनवास हो गया
कुल्हड़ हैं बेचारे
मस्त बफे के फैशन में सब
पंगत राह निहारे
खुशियों की शूटिंग तो होती
पर गायब खुशहाली
चैती मेले जाना लगता
शहरों को देहाती
गेहूँ की बाली भी अब तो
बैसाखी कब गाती
विदा करा दी किसने रौनक
चौपालें सब ठाली
ढोलक भी गीतों से गुपचुप
करती कानाफूसी
सोहर, मंगल गाना लगता
अब तो दकियानूसी
डीजे के सम्मुख नतमस्तक
कल्चर भोली-भाली
मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद