शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

ममता सिंह के पाँच नवगीत

समूह वागर्थ नवगीत में रुझान रखने वाले रचनाकारों को प्रोत्साहन देता आया है। इसी क्रम में प्रस्तुत है
ममता सिंह के पाँच नवगीत

1
गीत 
जाने कब हो भोर

मन का पंछी व्याकुल बैठा 
जाने कब हो भोर ।

आशा और निराशा के दो 
पलड़ो में मैं झूलूँ 
पंख कटे हैं फिर भी मन है 
आसमान को छू लूँ। 
कैसे बाँधू गति चिंतन की 
चले न कोई जोर। 

टूट गई मोती की माला 
निकला धागा कच्चा 
इस दुनिया में ढूँढे से भी 
मिला न कोई सच्चा 
कोयल बनकर कौआ बैठा
मचा रहा है शोर। 

सम्बन्धों के मकड़जाल में 
फँस गई अब तो जान 
उस पर रिश्ते गिरगिट जैसे 
होती नहीं पहचान। 
तड़़प रहा है कैदी मनवा 
देखे अब किस ओर। 

2
गीत ----

महँगी है मुस्कान

दर्द यहाँ पर सस्ता यारो।
महँगी है मुस्कान।।

जीवन की आपाधापी में,
संगी साथी छूटे।
मृगतृष्णा से बाहर आकर,
कितनों के दिल टूटे।
कस्तूरी पाने को फिर भी।
भटक रहा इंसान।।

मक्कारी में मिला झूठ ही, 
राज़ दिलों पर करता।
सच की खातिर लड़ने वाला,
चौराहों पर मरता।
मोल चवन्नी के ही देखो।
बिकता है ईमान।।

फुर्सत किसको है जो अपने,
मन के अंदर झांके।
घर में रक्खा आईना भी,
धूल यहाँ पर फांके।
मुश्किल है ऐसे में *ममता*।
खुद की भी पहचान।।

3
डूब रहा संसार

आज रंग में भौतिकता के,
डूब रहा संसार ।

सम्बन्धों में गरमाहट अब,
नज़र नहीं है आती 
आने वालो की छाया भी 
बहुत नहीं है भाती।
चटक रही दीवार प्रेम की, 
गिरने को तैयार।

होता खालीपन का सब कुछ, 
होकर भी आभास।
लगे एक ही छत के नीचे,
कोई नहीं है पास। 
आभासी दुनिया ने बदला,
जीने का ही सार ।

खुले आम सड़कों पर देखो, 
मौत कुलाचें भरती। 
बटुये की कै़दी मानवता, 
कहाँ उफ़्फ भी करती।
खड़ी सियासत सीना ताने,
बनकर पहरेदार। 

4
गीत -----
कठिन बहुत तुरपाई

उलझ न पाएं 'मैं' या 'तुम' में 
सम्बन्धों के तार।।

अपनेपन की चादर ताने,
बैठे कुछ अनजाने।
ऐसे में मुश्किल है कैसे
उनको फिर पहचाने।
बैठ बगल में छुप‌ कर करते,
जो मौके से वार।।

उधड़े रिश्तों की होती है,
कठिन बहुत तुरपाई।
जिसको अब तक समझा अपना
सनम वही हरजाई।
चंदन में लिपटे विषधर से
संभव कैसे प्यार।।

जिस माली ने पाला पोसा
उसने ही है तोड़ा।
साथ सदा देने वालों ने
बीच भंवर में छोड़ा।
ऐसे में निश्चित है अपनी
अपनों से ही हार।।

5
गीत -----
सोचें क्यों अन्जाम

हम वासी आज़ाद वतन के। 
सोचें क्यों अन्जाम।। 

नियम ताक पर रख कर सारे, 
वाहन तेज भगाएं। 
टकराने वाले हमसे फिर, 
अपनी खैर मनायें ।
सही राह दिखलाने की हर, 
कोशिश है नाकाम। 

चोला ओढ़े सच्चाई का, 
साथ झूठ का देते। 
गुपचुप अपनी बंजर जेबें, 
हरी-भरी कर लेते। 
हर मुद्दे का कुछ ही पल में, 
करते काम तमाम। 

सुर्खी में ही लिपटे रहना, 
हमको हरदम भाता। 
भूल गए मेहनत से भी है, 
अपना कोई नाता। 
जिसकी लाठी भैंस उसी की, 
जपते सुबहो-शाम।

प्रो ममता सिंह 
मुरादाबाद



परिचय
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नाम- प्रो ममता सिंह 
निवास-
गौर ग्रेशियस कालोनी 
कांठ रोड ,मुरादाबाद ।
चलभाष -9759636060
शिक्षा- एम ए ,पी़ एच डी ,नेट ,एम बी ए 
सम्प्रति -
प्रोफेसर ,समाजशास्त्र ,के0 जी0 के0  कालेज ,मुरादाबाद 
एसोसिएट एनसीसी आफिसर 
लेखन - ग़ज़ल, गीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु आदि
प्रकाशित कृति: भाव कलश काव्य संग्रह ,काव्य धारा ,ग्लोबल न्यूज ,दैनिक आज , काव्य अमृत, प्रेरणा अंशू, स्वर्णाक्षरा काव्य संग्रह, धरा से गगन तक, नीलाम्बरा आदि काव्य संग्रह और समाचारपत्रों में रचनाएँ प्रकाशित