वागर्थ में आज एक बाल कविता
~~~~~~~~~~~~~~~
"यह डलिया है उड़ने वाली"
____________________
आओ ताई, तुम भी बैठो,
यह डलिया है उड़ने वाली।
डलिया है यह उड़ने वाली।
दूर गगन की, सैर कराती,
दुनिया भर से जुड़ने वाली।
यह डलिया है उड़ने वाली।
छूमंतर,भर कहना हमको,
उड़न खटोला बन जाती है।
पलक झपकते,इसे देखना,
आसमान में तन जाती है।
धक्का प्लेट,मम्मम्ममम्ममम्ममम्मनहीं यह गाड़ी,
ना है पीछे मुड़ने वाली।
यह डलिया है उड़ने वाली।
आओ ताई,
तुम भी बैठो,
यह डलिया है उड़ने वाली।
जगह देखकर,
मत घबराओ,
इसमें हम सब आ जाएंगे।
दिल डलिया का,
दरियादिल है,
इसमें सभी समा जाएंगे।
तनकर खूब,
फैल जाती है,
थोड़ी बहुत सिकुड़ने वाली।
यह डलिया है उड़ने वाली।
मनोज जैन