आज टीम-वागर्थ की नम आँखें प्रस्तुत कर रहीं हैं अभी दो दिन पहले ही मात्र 30 वर्ष 9 माह की अल्पायु में यह नश्वर देह छोड़कर जाने बाले हम सभी के प्रिय एवं नवगीत की अपार संभावनाओं से परिपूरित युवा नवगीतकार कीर्ति-शेष शुभम श्रीवास्तव 'ओम' के पाँच नवगीत एवं उनका संक्षिप्त जीवन परिचय।
विनम्र एवं अश्रुपूरित श्रद्धांजलि सहित ।
~~ टीम-वागर्थ ~~
प्रस्तुति- ईश्वर दयाल गोस्वामी
नवगीत कवि
(1)
:: शब्द हैं साभार ::
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देह की
सहमति नहीं कंकाल से,
लोग नाख़ुश भी नहीं
इस हाल से ।
पक्षधर है
विभ्रमों का, उलझनों का
यह समय केवल
खुले विज्ञापनों का
जन समर्थन
जुट रहा मिसकॉल से ।
पास में
कुछ भी नहीं वैचारिकी
लोग बनने में
लगे हैं पारखी
शब्द हैं साभार
‘उनकी वाल‘ से ।
भीड़ होकर
भीड़ से अनजान हैं
कान में हर वक्त
‘भाईजान‘ हैं
गर्व की अनुभूति
इस्तेमाल से ।
०००
(2)
:: शोकगीतों के समय में ::
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शोकगीतों के समय में
एक उत्सव गीत लिखकर
ख़ुश हुआ मन !
एक अँधियारा हुआ सुख
अजनबीपन
देह पर अपनी
न चाहा स्पर्श-सा कुछ
गीत आदिम चाहता मन
और जीवन
हो रहा मुश्किल
‘कथन-निष्कर्ष’-सा कुछ
प्रश्न गीतों के समय में
एक उत्तर गीत लिखकर
कुछ हुआ मन !
एक सीमा
एक निजता-सामूहिकता
लोग अब ज़्यादा सहज हैं
पक्ष बनकर
हर असहमति के लिए
है प्रति-असहमति
हाथ में लेकर खड़ी
पिस्तौल-पत्थर !
युद्ध गीतों के समय में
एक सहमति गीत लिखकर
चुप हुआ मन !
०००
(3)
:: गीत कोई गुनगुनाना ::
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शब्द थोड़े और चुनकर
गीत कोई गुनगुनाना,
सीखता है एक लड़का
जिस तरह से चहचहाना।
चोंच-पंजे, पंख-तिनके
फूल-ख़ुशबू और काँटे
रेशमी खुलती कढ़ाई
झनझनाते हुए चाँटे
याद करना इक छुअन को
मौन जीकर मुस्कुराना ।
धूप, कोई देह-छाया
मौसमों के रंग गहरे
ताजगी लिखती किरन के
कुछ लिफाफे़ और ठहरे
आँख पर चुपके हथेली
कान में कुछ फुसफुसाना ।
हर तरफ़ छाया हुआ जब
एक-सा मौसम जिरह का
है चुनौती इस समय अब
गीत लिखना उस तरह का
सीखता है एक लड़का
जिस तरह ‘कैंची चलाना‘।
०००
(4)
:: बच्चे का चुप्पा हो जाना ::
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पल-पल के मेमो-रिमाइन्डर
सिर्फ ज़रूरत भर मुस्काना,
प्ले-ग्रुप से डे-बोर्डिंग तक में
बच्चे का चुप्पा हो जाना ।
सुबह बेड-टी और टिफिन में
भरी हुई है जल्दीबाजी
साथ डिनर करने का वादा
वीक-एन्ड मूवी को राजी
एक अदद सन्डे की छुट्टी
ओवरटाईम और बहाना ।
बेडरूम के भीतर रातें
होमवर्क में लीन हुईं फिर
मोटे यूवी लेन्स लगे हैं
आँखें टच-स्क्रीन हुईं फिर
दिनचर्या के गुणा-भाग में
सम्बन्धों का जोड़-घटाना ।
बढ़ती हुई हिचक जीता है
गुमसुम है, शैतान हुआ है
शायद अपने सही समय से
पहले ‘बेबी-प्लान‘ हुआ है
सीधे-सादे सरल प्रश्न के
उत्तर में मिलता हकलाना ।
०००
(5)
:: निर्वासन ::
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लाँघते दहलीज घर की
एक जोड़ी पाँव ।
अर्थ की प्रतिपूर्ति
निर्वासन बनी है
आदमी की आदमी से ही
ठनी है
बढ़ी शहरों की सघनता
हुये खाली गाँव ।
पस्त सड़कें धूप से
पड़ते फफोले
लोग-
चुनने में लगे मंजिल
मँझोले
और सूरज एक उछला
और तड़पी छाँव ।
प्रश्न, चिंतन-मनन
अनुसंधान, आविष्कार
मोड़ अंधे और मुड़ते ही
खड़ी दीवार
ढूँढ ही लेती है
लगती चोट-इक कुठाँव ।
०००
---- शुभम श्रीवास्तव 'ओम'
संक्षिप्त जीवन परिचय
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कवि का नाम - शुभम श्रीवास्तव 'ओम'
जन्म- ३० जुलाई १९९३ को मीरजापुर, उ.प्र., भारत ।
शिक्षा- हिंदी में परास्नातक और इलेक्ट्रानिक्स में डिप्लोमा ।
आप सरकारी सेवा के साथ साथ लेखन के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे हैं, विशेष रूप से नवगीतों की रचना और उनसे संबंधित समीक्षात्मक लेखन में उनका नाम महत्वपूर्ण है ।
आपके नवगीत संग्रह "फिर उठेगा शोर एक दिन"पर आपको अभिव्यक्ति विश्वम का अंतरराष्ट्रीय नवांकुर पुरस्कार (२०१७), उ.प्र. हिंदी संस्थान का हरिवंश राय बच्चन युवा गीतकार सम्मान (२०१७) तथा राज्य कर्माचारी साहित्य संस्थान का फ़िराक़ गोरखपुरी पुरस्कार (२०१९) प्रदान किया गया है ।
प्रकाशित कृतियाँ- "फिर उठेगा शोर एक दिन", "गीत लड़ेंगे अँधियारों से" एवं "शोकगीतों के समय में" (सभी नवगीत संग्रह)
सम्पादित कृतियाँ- 'हम असहमत हैं समय से","त्रिकाल संध्या के गीत" ।