सोमवार, 6 सितंबर 2021

योगेन्द्र वर्मा व्योम जी के नवगीत

 नये नवगीत

नवगीत-1

बेबस प्रश्न तमाम... 

अनसुलझे हैं रोज़गार के
बेबस प्रश्न तमाम

लुभा रहा है बेशक कब से
सपनों का बाज़ार
कामयाब हो लेकिन कैसे 
कर्ज़े से व्यापार
इसी गणित को हल करने में
हुई सुबह से शाम

नौकरियों के आकर्षण का
अपना अलग तिलिस्म
जिसके सम्मुख नतमस्तक है
दिल-दिमाग़ सँग जिस्म
निष्कलंक ही बचे कहाँ अब 
कम्प्टीशन एक्ज़ाम

यह है कोई खेल समय का
या फिर यह प्रारब्ध
खेतों में सपने बो कर भी
हुआ न कुछ उपलब्ध
मंडी में भी उम्मीदों का
मिला न एक छदाम

- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-2

... एक हरापन रोपें भीतर

चलो निराशा के ऊसर में
एक हरापन रोपें भीतर

क्षणिक लाभ के लिए त्यागकर
मानवता, संवेदन सब कुछ
छल-फरेब ने गढ़े स्वार्थ के
कीर्तिमान, सम्मोहन सब कुछ
लुगदी-सी हो चुकी सोच में
एक भलापन रोपें भीतर 

कितना दूर किया आपस में 
सबको दो गज की दूरी ने 
लिखी मार्मिक व्यथा-कथा भी
दो रोटी की मजबूरी ने
अवसादों का व्यूह तोड़कर
एक नयापन रोपें भीतर

तन से तन की भले न हो, पर
रहे निकटता मन से मन की
तब महकेगी खिलकर-खुलकर
मीठी-सी खुशबू जीवन की
हो न दिखावे-भर का ही जो
एक सगापन रोपें भीतर

-योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-3

ज़िन्दा कई सवाल...

भूख मिली थी कल रस्ते में
बता रही थी हाल

पतली-सी रस्सी पर नट के
करतब दिखा रही
पीठ-पेट को ज्यों रोटी का
मतलब सिखा रही
हैं उसकी आँखों में लेकिन
ज़िन्दा कई सवाल

सब्ज़ी के ठेले के सँग-संँग
घूमी भी दिन भर
किन्तु शाम को जला न चूल्हा
गुमसुम सारा घर
चिढ़ा रहा मुँह उम्मीदों को
साँसों का जंजाल

सड़क किनारे बैठ शून्य में
रोज़ ताकती है
हल तलाशती हर उलझन के
तर्क छाँटती है
छोटा-सा दिखता है उसको
इतना गगन विशाल

-योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-4

कुछ तो गड़बड़ है... 

बता रहा है रोज़नामचा 
कुछ तो गड़बड़ है

सूनी आँखों की आशाएँ
लकवाग्रस्त रहीं
तपने से चलकर खपने तक
में ही त्रस्त रहीं
विश्वासों का राजमार्ग भी
ऊबड-खाबड़ है

कहता कुछ है करता कुछ है
भीतर-बाहर भ्रम
खुली नहीं साँकल तो कैसे
भारीपन हो कम
मन का क्या है यह तो हरदम
करता बड़बड़ है

दृश्य बदलने की तैयारी
आनन-फानन में
कैसे संभव नई इबारत
बस परिवर्तन में
ठीक-ठाक है यदि सबकुछ, फिर
कैसी हड़बड़ है

- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-5

...हरेपन की खुशबू में

चिंताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ

अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अंधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ

बिना कहे सूनी आंखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ

धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की खुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ 

-योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-6

...सिर्फ़ नैपकिन हैं

बेबहरी ग़ज़लों जैसे हम
अस्तव्यस्त दिन हैं

उगते हैं सूरज के सँग-सँग
हर दिन नये तनाव
लुप्त हो रहे जिनमें खपकर
हँसी-खुशी के भाव
लदे बोझ कर्तव्यों के भी
सिर पर अनगिन हैं

अर्थ निकालें शब्द-शब्द का
सब अपने अनुसार
बने हुए हैं बीते कल का
हम बासी अख़बार
कभी सुगंधित फूलों-से हैं
कभी डस्टबिन हैं

भाग्य-लेख है कोई या फिर
कर्मों का संयोग
घर-बाहर हर जगह कर रहा
स्वार्थ हमें उपभोग
'यूज़ एंड थ्रो' वाले ही ज्यों
सिर्फ़ नैपकिन हैं

-योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-7

...मरघट वाले मंत्र

तुम्हें पता है? फिर से सच के
साथ हुआ षड्यंत्र

हरे पेड़ की जड़ में हर दिन
मतलब का तेज़ाब
ऐश कर रहा उत्तरदायी
देगा कौन जबाब
होने दिया मौन ने सच का
छिन्न-भिन्न हर तंत्र

चाटुकारिता के टीले पर
है उत्पाती झूठ
लगता जैसे उम्मीदों से
गई ज़िन्दगी रूठ
मनमर्ज़ी की जेलों में हैं
नियम सभी परतंत्र

बस उपदेशों तक ही सीमित
अब सच का अस्तित्व
लगातार हावी हैं सब पर
कुछ दुहरे व्यक्तित्व
पढ़े जा रहे मंदिर-मंदिर
मरघट वाले मंत्र

-योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-8

...मूक-बधिर तहज़ीब

घर की फ़ाइल में रिश्तों के
पन्ने बेतरतीब

सुख-दुख कैसे बँट पायें, जब
बातचीत तक मौन
मोबाइल में बन्द हुए सब
साँकल खोले कौन
दिखता नई सदी में घर-घर
कैसा दृश्य अजीब

मिला मान-मर्यादाओं को
जिस दिन से वनवास
अपनेपन की सेहत में भी
हुआ तभी से ह्रास
किंकर्तव्यविमूढ़ ही रही
मूक-बधिर तहज़ीब

सुबह-शाम दिन-रात यही बस
होता रहा मलाल
सुधर न पाये अनुशासन के
बिगड़े सुर-लय-ताल
काम नहीं आ पायी कुछ भी
अक्षम हर तरकीब

-योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-9

...मन से मन के शब्द

अब संवाद नहीं करते हैं
मन से मन के शब्द

एक समय था, आदर पाते
खूब चहकते थे
जिनकी खुशबू से हम-तुम सब
रोज़ महकते थे
लगता है अब रूठ गए हैं
घर-आँगन के शब्द

हर दिन हर पल परतें पहने
दुहरापन जीते
बाहर से समृद्ध बहुत पर
भीतर से रीते
अपना अर्थ कहीं खो बैठे
अपनेपन के शब्द

आभासी दुनिया में रहते
तनिक न बतियाते
आसपास ही हैं लेकिन अब
नज़र नहीं आते
ख़ुद को ख़ुद ही ढूँढ रहे हैं
अभिवादन के शब्द

-योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-10

सबकुछ जस का तस...

कर्तव्यों के साथ किया है
स्वार्थसिद्धि ने छल

हुआ मोतियाबिंद सोच को
दिखता साफ़ नहीं
लगता तीर निशाने पर ही
नज़रें भले कहीं
बन्द लिफ़ाफ़ों के भीतर है
हर मुश्क़िल का हल

नियम-क़ायदे सब ठेंगे पर
मनमर्ज़ी ही बस
खुला नहीं जब दरवाज़ा तो
सबकुछ जस का तस
पर जूठी मुस्कानों वाले
हैं अभिनय पल-पल

घोर उपेक्षित अनुमानों का
देख हाल बदतर
विश्वासों की देह हो रही
दिन-प्रतिदिन जर्जर
मिलने ही हैं कर्मों के फल
आज नहीं तो कल

- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल- 9412805981



नवगीत-11

... भीतर उलझन है

अब तो डाक-व्यवस्था जैसा
अस्त-व्यस्त मन है

सुख साधारण डाक सरीखे
नहीं मिले अक्सर
मिले हमेशा बस तनाव ही 
पंजीकृत होकर
फिर भी मुख पर खुशियों वाला
इक विज्ञापन है 

गूगल युग में परम्पराएँ
गुम हो गईं कहीं
संस्कार भी पोस्टकार्ड-से
दिखते कहीं नहीं
बीते कल से रोज़ आज की
रहती अनबन है

नई सदी नित नई पौध को
रह-रह भरमाती
बूढ़े पेड़ों की सलाह भी
रास नहीं आती
ऐसे में कैसे सुलझे जो
भीतर उलझन है

 -योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981

नवगीत-12

...उम्मीदों से हारे लोग

लौट रहे हैं घर को वापस
पैदल-पैदल सारे लोग

स्वार्थ और छल भरे समय में
किसका साथ मिला
कड़ी मशक़्क़त पर सोने को
बस फुटपाथ मिला
मदद-दिलासा क्या देते वो
सागर से भी खारे लोग

रोज़ी-रोटी के संकट ने
दारुण कथा लिखी
मौनव्रती मर्यादित आंसू
की ही व्यथा लिखी
किससे कहते मन की पीड़ा
थे किस्मत के मारे लोग

स्वर्ण-सुगंधित सपनों का ज्यों
सूरज अस्त हुआ
शहरों का सम्मोहन सारा
पल में ध्वस्त हुआ
इसीलिए ही चले गाँव को
उम्मीदों से हारे लोग

 -योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-13

...चुप्पी पसरी है

एक अजब-सा डर लिखता है
रोज़ नया अध्याय

जग के सम्मुख खड़ा हुआ है
जीवन का संकट
जिसे देख विकराल हो रही
पल-पल घबराहट
कैसे सुलझे उलझी गुत्थी
सभी विवश असहाय

सड़कों पर, गलियों में, घर में
चुप्पी पसरी है
कौन करे महसूस, सभी की
पीड़ा गहरी है
सूझ रहा है नहीं किसी को
कुछ भी कहीं उपाय

आने वाले कल की चिन्ता
व्याकुल करती है
अनदेखी अनचाही दहशत
मन में भरती है
कौन भला छल भरे समय का
समझ सका अभिप्राय

 -योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981

नवगीत-14

...भीतर प्रश्न तमाम

आज सुबह फिर लिखा भूख ने
ख़त रोटी के नाम

एक महामारी ने आकर
सब कुछ छीन लिया
जीवन की थाली से सुख का
कण-कण बीन लिया
रोज़ स्वयं के लिए स्वयं से
पल-पल है संग्राम 

वर्तमान को लील रहा है
डर का इक दलदल
और अनिश्चय की गिरफ़्त में
आने वाला कल
सन्नाटे का शोर गढ़ रहा
भीतर प्रश्न तमाम

खाली जेब पेट भी खाली
जीना कैसे हो
बेकारी का घुप अंधियारा
झीना कैसे हो
केवल उलझन ही उलझन है
सुबह-दोपहर-शाम

- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981


नवगीत-15

...ये तो नुस्ख़े हैं

बूँदों ने कुछ गीत लिखे हैं
चलो गुनगुनायें

हरी दूब से, मिट्टी से
अपनापन जता रहीं
कई-कई जन्मों का अपना
नाता बता रहीं
सिखा रहीं कैसे पत्तों से
बोलें-बतियायें

धानों के सुख को ही अपना
हर सुख मान रहीं
परहित की ऐसी मिसाल भी
मिलती कहीं नहीं
अवसादों में डूबे हों पर
सदा मुस्कुरायें

गीत नहीं ये तो नुस्ख़े हैं 
जीवन जीने के
खुशहाली के फटे वस्त्र को
फिर से सीने के
मुश्क़िल में भी फूलों जैसे
हँसें-खिलखिलायें

-योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981



साहित्यिक परिचय
नाम ः योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
पिता का नाम ः स्व0 श्री देवराज वर्मा
जन्मतिथि ः 09 सितम्बर, 1970
जन्मस्थान ः सरायतरीन (ज़िला-सम्भल, उ0प्र0)
शिक्षा ः बी.कॉम.
सृजन ः गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे, कहानी, समीक्षा, लघुकथा आदि
कृति ः इस कोलाहल में (काव्य-संग्रह)
बात बोलेगी (साक्षात्कार-संग्रह)
रिश्ते बने रहें (समकालीन गीत-संग्रह) 
प्रकाशन                  : प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं सहित इंटरनेट पर साहित्यिक वेबसाइट्स पर रचनाओं का प्रकाशन
विशेष उपलब्धि             : आकाशवाणी के केन्द्रीय संग्रहालय आर्काइव हेतु सुविख्यात गीतकवि श्री माहेश्वर तिवारी से 3 घंटे की लम्बी अवधि के साक्षात्कार की लाइव रिकार्डिंग
प्रसारण ः आकाशवाणी रामपुर से अनेक बार एकल काव्य-पाठ प्रसारित
सम्प्रति ः शासकीय सेवा
विशेष ः संयोजक - साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ , मुरादाबाद
सम्मान ः राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान लखनऊ द्वारा ‘सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार’, भाऊराव देवरस सेवा न्यास लखनऊ द्वारा ‘पं0 प्रताप नारायण मिश्र स्मृति सम्मान’, सरस्वती साधना परिषद मैनपुरी द्वारा ‘आचार्य नरेन्द्र सिंह शास्त्री सम्मान’, राष्ट्रकवि पं0 बंशीधर शुक्ल स्मारक समिति लखीमपुर खीरी द्वारा ‘राजकवि रामभरोसे लाल पंकज सम्मान’, अंजुमन फरोग़-ए-उर्दू दिल्ली द्वारा ‘आबरू-ए-ग़ज़ल सम्मान’, युवा रचनाकार मंच लखनऊ द्वारा ‘डॉ.हुकुमपाल सिंह विकल स्मृति नवगीत साधक सम्मान’, साहित्यिक संस्था विभावरी सहारनपुर द्वारा ‘साहित्य-सागर नवगीत सृजन सम्मान’, के0बी0 हिन्दी साहित्य समिति बदायूँ द्वारा ‘गंगा देवी स्मृति साहित्य भूषणश्री सम्मान’, संस्था साहित्यिक संघ वाराणसी द्वारा ‘सेवक साहित्यश्री सम्मान-2017’, साहित्यिक संस्था अन्तरा लखनऊ द्वारा ‘प्रो0 महेन्द्र प्रताप स्मृति विशिष्ट साहित्य सम्मान’, अभिनव कला परिषद भोपाल(म0प्र0) द्वारा ‘अभिनव शब्द शिल्पी अलंकरण’, साहित्यिक संस्था नवनिकष तरंग कानपुर द्वारा 'रामचरण सिंह अज्ञात स्मृति नवगीत श्री सम्मान’ सहित अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित। 
साधारण पत्राचार का पता ः पोस्ट बॉक्स नं0- 139,
मुख्य डाकघर,
मुरादाबाद-244001 (उ0प्र0)
स्थायी पता - ए.एल.-49, उमा मेडिकोज़ के पीछे, 
दीनदयाल नगर फेज़-प्रथम्, काँठ रोड,
मुरादाबाद-244105 (उ0प्र0)
ई-मेल ः vyom70@gmail.com  
मोबा0 ः 94128-05981

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