बालगीत
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आसमान से छम-छम करती आई बरखा रानी।
देखो बरस रहा है कित्ता, ठंडा-ठंडा पानी।
ओढ़ चुनरिया धानी सुंदर लगती ये धरती है ।
पर्वत से पानी कि धारा,झर,झर झर झरती है।
काले बादल खूब कर रहे हैं अपनी मनमानी।
रात चमकते जुगनू, झींगुर गाते रहते गाना।
और छेड़ते हैं मेंढक भी, हरदम वही तराना।
ठीक कर रहे मनसुख कक्का छतरी वही पुरानी।
छलक रही हैं सारी नदियाँ, ताल तलैये झीलें।
बूढी काकी सेंक रही है, हम सब भुट्टे छीलें।
बाहर जाना सख्त मना है, कैसे हो शैतानी।
अम्मा ने तल कर रख्खे हैं, गर्मागर्म पकौडे।
चुन्नू, मून्नू, गन्नू आए खाने दौड़े-दौड़े।
खाएँगे हम सब फिर मिल कर, गुड़पट्टी, गुड़धानी।
जोत रहा खुश होकर अपने खेत अन्नदाता है।
सबसे ज्यादा ये मौसम ही तो उसको भाता है।
बिना अन्न के हो जाएगी वर्ना खतम कहानी।
मुझे बताती ही रहती है, मेरी प्यारी नानी।
जीवन तब तक है जब तक है,ये बरखा ये पानी।
इसे व्यर्थ करने से ज्यादा नहीं कोई नादानी।
सत्यप्रसन्न
परिचय-
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नाम- सत्यप्रसन्न
जनक- स्व. प्रभाकर राव
जननी- स्व. पद्मावती
जन्म दिनांक- 3-5-1949
मातृभाषा- तेलगु
शिक्षा- यांत्रिकी में पत्रोपाधि
सेवा क्षेत्र- छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी मर्यादित
संप्रति- उपरोक्त संस्थान से अधीक्षण अभियंता के पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वाध्याय, और लेखन। सामाजिक गतिविधियों में सहभागिता।
अन्य- यदाकदा आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण। एकाधिक बार स्थानीय दूरदर्शन से भी। लगभग दर्जन भर साझा संकलनों में कविताएँ प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
एक एकल संकलन- चातक मन की...।
अधिकतर लेखन स्वांत:सुखाय ही है।
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