लोरी नवगीत
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टिल्लन वर्मा
सो जा-सो जा राजदुलारे, मेरे प्यारे छैया ।
सोजा-सोजा मेरे छौना, मेरे कृष्णकन्हैया ।।
एक परी उड़ आएगी
मीठा - मीठा गायेगी
सिर पर हाथ फिरायेगी
नींद तुझे आ जायेगी
तब मैं तुझे उड़ा दूँगी, मेरे लाल रजैया ।
जिस पल तू सो जायेगा
सपनों में खो जाएगा
दूध-दही,घी-माखन खा
खूब बड़ा हो जाएगा
फिर तू भी कम्पूटर गिटपिट खूब चलाना भैया ।
लोरी तुझे सुनाती हूँ
सीने से चिपकती हूँ
फिर भी सहज तुझे नटखट
सुला नहीं मैं पाती हूँ
बहुत अधिक मत मुझे सता रे, मैं हूँ तेरी मैया ।
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लोरी ■ टिल्लन वर्मा
दिन ढलते ही सभी परिन्दे,
अपने-अपने घर को भागे ।
चील-बाज़ सब भाग रहे हैं
झुण्ड कबूतर के भी भागे
तीतर के पीछे तीतर हैं
तीतर के हैं तीतर आगे
सुबह देर तक जो सोते हैं,
वो हैं सचमुच बड़े अभागे ।
जंगल में सन्नाटा पसरा
सोये शेर गुफ़ा के अंदर
बन्दर सोये, ढूँढ ठिकाने
मुँह ढककर सो गए सिकन्दर
लेकिन उल्लू रात-रातभर,
जानें किस मतलब से जागे ।
चन्दामामा छत पर उतरे
अब तो सोजा मेरे छैया
बहुत रात हो गयी लाड़ले
करे चिरौरी तेरी मैया
सूर्य गया अपनी कक्षा में,
उसने तपिश भरे पल त्यागे ।
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