शुक्रवार, 21 मई 2021

समकालीन दोहा की पाँचवीं कड़ी में डॉ शिवबहादुर सिंह भदौरिया : टिप्पणी मनोज जैन

समकालीन दोहा
          पाँचवी कड़ी
          शिवबहादुर सिंह भदौरिया
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            समकालीन दोहों की पाँचवी कड़ी में प्रस्तुत हैं वाचिक परम्परा के प्रख्यात साहित्यकार डॉ शिवबहादुर सिंह भदौरिया जी के चयनित दस दोहे।
                                    निःसन्देह, वे क्षण मेरे सौभाग्य के अनमोल पल थे, जब विनय भदौरिया जी ने, दूरभाष से, युगपुरुष डॉ शिवबहादुर सिंह भदौरिया जी से वार्ता का, सुअवसर प्रदान कराया था। उन दिनों मैं पत्र पत्रिकाओं में सक्रिय था,और विनय जी से मेरा परिचय प्रिंट मीडिया की सक्रियता के चलते ही हुआ था।
            उनके आशीर्वचन आज भी मेरे साथ हैं इसी सम्बन्ध के नाते, आज मैं उनके परिवार का अभिन्न हिस्सा हूँ। विनय जी से मुझे सदैव बड़े भाई जैसा स्नेह मिलता रहा है।
         मुझे कुछ बातें बार-बार और रह-रह कर याद आतीं हैं। उन दिनों लखनऊ के कवि निर्मल शुक्ल जी, एक अनियतकालीन पत्रिका उत्तरायण निकाला करते थे,और शुक्ल जी नवगीत को लेकर खासी चर्चा में थे।बाद में उनकी पहचान महज एक प्रकाशक होकर रह गई। उत्तरायण की पुस्तकें आज भी कलात्मक दृष्टि से अन्य प्रकाशकों से तुलना करें तो हजार गुनी बेहतर हैं। प्रसंगवश यह भी बता दूँ कि चयनित समकालीन जिन दोहों को आप आज की प्रस्तुति में पढ़ रहे हैं, यह पुस्तक 'राघव रंग' भी उत्तरायण से ही प्रकाशित है।
                             'राघव रंग' भदौरिया पर केन्द्रित आलेखों और उनकी प्रतिनिधि रचनाओं की एक ठोस सजिल्द कृति है, जिसे डॉ शिवबहादुर सिंह भादौरिया जी के सुयोग्य पुत्र विनय जी, जो स्वयं चर्चित कवि हैं, ने अपने पिता की स्मृति में प्रकाशित किया है। समकालीन दोहों की पांचवीं कड़ी को जोड़ने में 'राघव रंग' की महती भूमिका रही। डॉ भदौरिया जी अपनी दोहा पुस्तक 'गहरे पानी पैठ' की भूमिका में दोहों के सन्दर्भ में बहुत ही अनुकरणीय और प्रासंगिक टिप्पणी जोड़ते हैं वह कहते है कि "छान्दसिक आकार लघुता में अर्थ की विराटता को समोने वाला दोहा अपनी सांकेतिकता, सूक्तिमयता, उद्धरणीयता और सहज स्मरणीयता के कारण अन्य छन्दों की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय रहा है।"
                                                    चयनित दोहों में समकालीन दोहाकार ने, निम्म, मध्य वर्गीय, परिवारों के अभाव, विवशता, धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक कुरीतियों के साथ-साथ जनतांत्रिक व्यवस्था पर गहरे कटाक्ष किये हैं। निर्विवाद रूप से प्रस्तुत दोहे समकालीन दोहाकारों का मार्गदर्शन करते हैं।

         टिप्पणी 
        मनोज जैन
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           पढ़े बाइबिल,धर्मपद गीता और कुरान
           धर्म-ध्वजा थामे हुए     लम्पट-बेईमान
         
          सौ-दो सौ पेन्शन गई, वृद्ध देह के पास 
  ओस चाटकर भी 'शिवम' बुझ जाती है प्यास

           हिंसक बोले मंच पर परम अहिंसा धर्म
          भोगी जन निष्काम का समझाते हैं मर्म

         नकली सिक्के हाट में खोज ले गये ठाँव
      असली सिक्कों के शिवम लगे काँपने पाँव

         धर्मपीठ वर्चस्व-हित यन्त्र तन्त्र औ' मन्त्र
               मठाधीश करवा रहे हत्यायें षड़यन्त्र

        अगर सफल होता गया दाँव पेंच का दौर
           सर्कस के बौने शिवम अभी बढ़ेंगे और

            न्यायालय में न्याय भी होता है नीलाम
          उसी पक्ष में फैसला जिसके अच्छे दाम

       चाहे जितना जगत में हो तिकड़म का दौर
     प्रतिभा के मार्तण्ड का प्रखर तेज कुछ और

           श्रेष्ठ सर्जना हाट में खड़ी काढ़ती खीस
      बहुत बहुत महँगे बिके कविता के कटपीस

          उधर मसीही असुर हैं इधर जेहादी दैत्य
         मध्य भूमि में घिरे हैं सुर मन्दिर औ"चैत्य

            पहुँच गये जाने बिना,थाने की औकात
             अर्जी रक्खी रह गयी, खाये जूता लात

                   शिवबहादुर सिंह भदौरिया
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