गुरुवार, 20 मई 2021

समकालीन दोहाकार उर्मिलेश जी तीसरी कड़ी प्रस्तुति मनोज जैन

तीसरी कड़ी
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समकालीन दोहा की तीसरी कड़ी में आज कवि उर्मिलेश जी के दस दोहे 

                      चर्चित कवि उर्मिलेश जी पर,समकालीन दोहा की तीसरी कड़ी प्रस्तुत करते हुए मुझे महापण्डित राहुल सांकृत्यायन का एक कथन याद आ रहा है वे कहते हैं,- "हर एक आदमी अपने साथ एक वातावरण लेकर घूमता है,जिसके पास आने वाले अवश्य उससे प्रभावित होते हैं।" इस कथन की परिधि में हम में से हर एक है।अंतर सिर्फ समझ का है।
       
     उर्मिलेश जी अपने समय के अति व्यस्त और चर्चित कवि रहे हैं। उनकी पकड़ समानरूप से वाचिक परम्परा और पत्र पत्रिकाओं में रही है।
                              वह समकालीन दोहा के सन्दर्भ में अपनी बात कहते हुए एक छोटा सा किन्तु महत्वपूर्ण कथन जोड़ते हैं, -" भले ही उर्दू कई वर्षों तक भारत की राजभाषा रही हो और उर्दू ग़ज़ल को व्यापक जन- स्वीकृति मिली हो, फिर भी हर काल में दोहा छंद अपने सार्थक उपस्थिति के कारण चर्चित और स्वीकृत रहा है। भारतीय जीवन के सामाजिक , सांस्कृतिक, धार्मिक ,दार्शनिक, साहित्यिक और नैतिक स्तर को सुधारने- सँवारने में भी दोहा छन्द ने अपना अप्रतिम प्रदेय दिया है। आज भी कबीर, तुलसी, रहीम आदि के दोहे नज़ीरों के रूप में हिन्दी प्रदेश की जनता की जुबान पर बरबस आ जाते हैं। 
               मैंने अपनी बात राहुल सांकृत्यायन जी के कथन से आरम्भ की थी। मित्रों से कहना चाहता हूँ, कि मेरी रुचियों में, कविता करने से ज्यादा कविता पर चर्चा करना, कराना और कविता के वातावरण की निर्मिति में सहयोग करना आरम्भ से ही शामिल रहा है। 
                     मैं अपने आस-आप न सिर्फ कविता का वातावरण बनाता हूँ बल्कि आप जैसे बड़े और स्थपित लोगों को कविता प्रसार के इस अनुपम कार्य से प्रभावित भी करता हूँ।
                    अन्त में एक कथन उन मित्रों के नाम जिन्हें कॉपी ,कट और पेस्ट से चर्चा में आई पोस्ट से जरूरत से ज्यादा हैरानी और परेशानी है। उन से संकेत में सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि मेरा काम,आपके घरों में दीमक चाटती उस लाइब्रेरी से (जिसकी कैद में हजारों पुस्तकें छटपटाकर दमतोड़ रहीं हैं।) ज्यादा सार्थक है। जिसकी तरफ आप परित्यक्ता की भाँति कभी मुड़ कर  देखने की भी जरूरत नहीं समझते।
     इस कड़ी में सिर्फ हमें उर्मिलेश जी के बेहतरीन दस दोहे चुनने थे हमारी यह असफल कोशिश कहाँ तक सफल हो सकी इसका निर्धारण तो सिर्फ आपको हो करना है।
आइए पढ़ते हैं समकालीन दोहों की तीसरी कड़ी में बदायूँ के कवि उर्मिलेश जी के दस समकालीं दोहे

प्रस्तुति टीप
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मनोज जैन
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चिड़िया पंखे से कटी पंछी हुए अधीर ।
कटा आदमी रेल से उठी न मन  में पीर ।।
शब्द सिपाही अर्थ हैं तोप और बन्दूक 
कर प्रयोग इनका सही वर्ना होगी चूक।।
मुर्गे क्या समझें भला राजनीति की चाल।
इन्हें लड़ाते जो वही, करते इन्हें हलाल ।।
सुबह जगाते जो हमें,देकर अपनी बाँग।
उन मुर्गों की शाम को, हमीं चबाते टाँग।।
केसरिया हिंदू हुआ,हरा हुआ इस्लाम।
रंगों पर भी लिख गया,जाति-धर्म का नाम।।
भूखे प्यासे नागरिक,फिरते रहे उदास।
नगर-पिता लेटे रहे, नगर-वधू के पास।।
राजनीति में आ गये,कैसे नीम -हकीम।
चाहे कोई रोग हो, देते सिर्फ अफीम।।
थाली बदली प्लेट में ,हुआ कटोरा तंग ।
सभी बरतनों पर चढ़ा, नयी सदी का रंग।।
सूरज-मालिक क्रोध में,रहा मुठ्ठियाँ भींच।
पेड़ -श्रमिक  नत हो खड़े,अपनी आँखें मींच।।
१०
एक पृष्ठ है भूमिका,एक पृष्ठ निष्कर्ष।
बाकी पृष्ठों पर लिखा सिर्फ सतत संघर्ष।।

डॉ●उर्मिलेश
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