सोमवार, 10 मई 2021

रमेश रंजक जी के दो नवगीतों पर चर्चा

प्रस्तुत हैं रमेश रंजक जी के दो गीत : (१) जुड़े करोड़ों से (२) गीतों के पटवारी 
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                आज की वैचारिकी में प्रस्तुत हैं, रमेश रंजक जी के एक गीत संग्रह ' धरती का आयतन ' से साभार दो गीत। दोनों गीत अपनी-अपनी जगह अनूठे हैं । पहले गीत में कवि के आत्मविश्वास और स्वाभिमान की झलक खुलकर देखी जा सकती है, तो वहीं दूसरे गीत में कवि ने स्वाभाविक मानवीय प्रवृर्तियों पर करारा व्यंग्य किया है ।
दोनों गीत वैचारिक धरातल पर बहुत प्यारे हैं।
                      एक दिन किसी चर्चा के दौरान हमनें अपनी वॉल पर एक टिप्पणी जोड़ी थी, जिसमें सिर्फ यह लिखा था कि " रमेश रंजक जी के बिना नवगीत का पूरा चेप्टर इनकम्प्लीट " यही बात आज हम फिर दोहराना चाहते हैं । हाल ही में हमने अपने चर्चित फेसबुक समूह 
~।।वागर्थ।। ~ पर रंजक जी के नवगीतों पर चर्चा आयोजित की थी। उस दिन रंजक जी के नवगीतों पर उनके चाहने वालों ने लगातार पूरे चार दिन अपनी टिप्पणियाँ वागर्थ में जोड़ी।
           कल एक ऑन लाइन काव्य पटल के पोस्टर पर एक शब्द लिखा था माँ तुझे सलाम नफरत और ईर्ष्या की डाह में उलझी छिछली मानसिकता के लोगों को इस सलाम शब्द से भी एतराज़ है !
                         देखने में यह भी आया कि विचारधारा के स्तर पर लोग  'प्रणाम' और 'सलाम' जैसे शब्दों के लिखने पर खेमेबाजी पर उतरने लगते हैं,जबकि अच्छे लिखे को आत्मसात करने की जरूरत है और भाव को अक्षरशः ग्रहण करने की।
              समूह वागर्थ में हमारी कोशिश सिर्फ यही होगी कि जो भी गीत /नवगीतकार वहाँ प्रस्तुत हो वह लेखन के मापदण्ड पर खरा हो वागर्थ के लिये आप भी अपने स्तरीय नवगीत हमें प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं साथ ही उन नवगीतकारों की सामग्री भी हम तक भेजें जिन पर पर्याप्त चर्चा गुटवाजी के चलते नहीं हो सकी है ।

        प्रस्तुति
      मनोज जैन
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जुड़े करोड़ों से
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रत्ती भर भी मोह नहीं है 
छूटे मोड़ों से 
तुम से टूटे ,रहे अकेले
 जुड़े करोड़ों से 

मौसम ने अपने रंगों में 
जो कुछ लिखा पढ़ा 
जब -जब अंधकार गहराया 
फाड़ दिया जबड़ा 

काफी दूरी रखी 
कहकहे बाज हँसोड़ों से 

फाट नदी का जैसे तैसे फैले
वैसे फैल गये
जुड़े कथा में दुबले-पतले 
क्षेपक नये-नये

जीवन महाकाव्य 
होता है पथ के रोड़ों से 

गीतों के पटवारी 
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हल्दी की गाँठ मिली पंसारी हो गये
पंसारी होते ही सरकारी हो गये 

इसका ले ,उसका ले 
चुपके से खिसका ले 
दे अपनी नाम मोहर
जहां मिले जिसका ले 
लिखवा कर शोध ग्रंथ गिरधारी हो गये 

हथियाये गीतों के 
तीन अंश तोड़कर 
फिर उसके वाजू में 
दो बिंदी जोड़कर 

गीतों के गाँवों के ,पटवारी हो गये 

रमेश रंजक
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