वागर्थ प्रस्तुत करता है : मालिनी गौतम जी के दस नवगीत
डॉ मालिनी गौतम
मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल झाबुआ में जन्मी डॉ. मालिनी गौतम का बचपन आदिवासियों के बीच बीता। उज्जैन एवं इंदौर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सन1994 में वे गुजरात के सुदूरवर्ती आदिवासी अंचल संतरामपुर में आ बसीं। मालिनी संतरामपुर के महाविद्यालय में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं । एक प्राध्यापक के रुप में वे जीवन का एकमात्र लक्ष्य इन बच्चों को शिक्षण के साथ-साथ दुनिया जहान की जानकारी देकर, बच्चों के सर्वांगीण विकास के द्वारा उन्हें मुख्य धारा में लाना मानती है ।
मालिनी विभिन्न एन जी ओ के साथ मिलकर सन्तरामपुर के दूर-दराज के गाँवों में आयोजित कार्यक्रमों में अंधविश्वास, बेटी-बचाओ, कन्या भ्रूण हत्या जैसे ज्वलंत विषयों पर व्याख्यानों के द्वारा जागृति फैलाने के कार्य में सक्रिय हैं ।
वे यहाँ के अंतरिम गाँवों में जाकर सफाई-स्वच्छता, साक्षरता, अंधविश्वास, व्यसन-मुक्ति जैसे कार्यक्रमों में लगातार शिरकत करती हैं अंग्रेजी भाषा की प्रोफेसर मालिनी गौतम हिंदी की अनुरागी हैं । वे कविता के साथ-साथ ग़ज़ल, नवगीत, एवं अनुवाद विधाओं में भी कार्य करती हैं । उनकी कविताएं, गजलें, नवगीत समकालीन भारतीय साहित्य,कथादेश, नया ज्ञानोदय, पाखी,वागर्थ, आजकल,अक्षरा, इंद्रप्रस्थ भारती, बया, सदानीरा, हंस, निकट, दोआबा, बहुवचन, पूर्वग्रह, साक्षात्कार, लोकमत समाचार, जनसत्ता, मंतव्य, युद्धरत आम आदमी सहित लगभग सभी महत्वपूर्ण पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकीे हैं।
अभी तक मालिनी गौतम के दो कविता संग्रह बूँद-बूँद अहसास (गुजरात हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा अनुदानित), एक नदी जामुनी-सी प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा एक ग़ज़ल संग्रह दर्द का कारवाँ, एक नवगीत संग्रह चिल्लर सरीखे दिन प्रकाशित हो चुका हैं।
मालिनी गौतम की कविताओं का गुजराती, अंग्रेजी, मराठी, मलियालम, उर्दू, नेपाली, पंजाबी, बांग्ला आदि भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है।
मालिनी गौतम को दो बार गुजरात साहित्य अकादमी पुरस्कार (वर्ष 2016 एवं 2017) , परम्परा ऋतुराज सम्मान (दिल्ली, 2015) वागीश्वरी पुरस्कार (मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल,2017) तथा जनकवि मुकुटबिहारी सरोज स्मृति सम्मान(सरोज स्मृति न्यास ग्वालियर, 2019) से नवाजा जा चुका है ।
मालिनी गौतम ने अनुवाद के क्षेत्र में भी काम किया है । हाल ही में उन्होंने गुजराती दलित कविताओं के हिन्दी अनुवाद का एक महत्वपूर्ण कार्य पूर्ण किया है ।
इन दिनों वे कहानियाँ भी लिख रही हैं । उनकी कहानियाँ पाखी, निकट, समावर्तन आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं ।
आइए पढ़ते हैं
डॉ मालिनी गौतम जी के नवगीत
प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल
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1
बादल हुए पिता
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धूप-छाँव का तान चंदोवा
बादल हुए पिता
इच्छाओं की माटी में
चिंता के बैल चले
चाहत की फसलों ने अपने
सूखे हाथ मले
सुख के पौधे-पेड़ सींचने
छागल हुए पिता ।
खुशियों की राहों में उगती
नागफनी की भीत
उत्सव के होठों ने गाये
विपदाओं के गीत
दबी उमंगों को खनकाने
माँदल हुए पिता ।
रातों के सायों में फैली
उजियारे की पाँख
चिंता की बस्ती में घर-घर
नींद बाँटती आँख
थिगड़े जैसे जीवन में भी
मलमल हुए पिता ।
2
घायल हैं साये
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मुखपृष्ठों के हुए नहीं
किरदार अभी हम
जाल रेशमी
धूप बुन रही है
खिड़की पर
सीली इच्छा
तोड़ रही दम
मन के भीतर
खोलें मन की गाँठ
नहीं हैं इतने सक्षम ।
दुख के सिल-बट्टे
पर पिसते
सुख के अवसर
अंध-कुओं से
कैसे फूटें
पानी के स्वर
लोक-लाज का ओढ़ कफ़न
करते हम मातम ।
क़दम-क़दम पर
अपनों ने ही
जाल बिछाये
अफ़वाहों के
मौसम में
घायल हैं साये
चीख-चीखकर हुए
हाशिये भी हैं बेदम ।
3
चिल्लर सरीखे दिन
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हाथ में हैं शेष
कुछ चिल्लर सरीखे दिन ।
हड़बड़ाती ज़िन्दगी
इक रेल-सी गुज़री
चाहतों के स्टेशनों पर
चार पल ठहरी
उम्र के खाली कपों में
घूँट-से पल-छिन ।
कसमसाती ख़्वाहिशों ने
जब निचोड़ी प्यास
ठूँठ वृक्षों पर उगी
इक जलतरंगी आस
बेबसी लेकिन चुभोती
हर ख़ुशी में पिन ।
जेब-ख़र्चे को मिले थे
कुछ उनींदे पल
गुल्लकों में रख दिये
जो काम आयें कल
कट रही है उस्तरे पर
ज़िन्दगी कमसिन ।
4
एक मधुर संवाद
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एक मधुर संवाद कर रहे
धरती और किसान ।
नेह-भरे हाथों ने जब
माटी के चरण छुए
कुछ सपने आँखों में उगकर
सुर्ख़ पलाश हुए
गदराये बादल ने बाँधा
ऊँचा एक मचान ।
बैलों के घुँघरू खनकाते
आशाओं के गीत
धरती के सीने से लगकर
बीज निभाते प्रीत
मेड़ों पर बैठे पंछी भी
जाते सुख-दुख जान ।
नयी-नवेली दुल्हन-सी जब
धरती हरी हुई
ख़ुशियों के दाने खनके
आँखें थी भरी हुई
अँगड़ाई ले मचल गये
जाने कितने अरमान ।
5
घण्टा बजाओ
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वक़्त कब से कैद है
कब तलक सोओगे तुम
अब उठो, घण्टा बजाओ ।
झूठ की इस भीड़ में
सच तिरोहित हो गया
इस गहन चिंता तले
दिन सिमट कर सो गया
सो रहे रक्षक सभी
चोर अब मुस्तैद है
जागकर इस नींद से
अब उठो, घण्टा बजाओ ।
दंश की पीड़ा लिये
उम्र पल-पल जागती
एक नीली चोट भी
मुँह छुपाये भागती
इस सुबकते वक़्त में
दर्द ही अब वैद है
मत डरो इस वैद से
अब उठो, घण्टा बजाओ ।
6
ताले खुशियों के
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दु;ख की चाबी से खुलते कब
ताले खुशियों के ।
चाहत की
तस्वीरें थीं
फ्रेमों में मढ़ी हुई
ज़ख्मों की
हरियाली थी
यादों में कढ़ी हुई
बुनते रहे बहारों को भी
धागे सुधियों के ।
इच्छाएँ कुछ
उड़तीं थीं
सेमल के फाहों-सी
मौसम के
गालों पर ठहरी
सिसकी आहों-सी
अते-पते ही बदल गये सब
मन की गलियों के
बर्फ़ हुई
बातें तपतीं
यादों के चूल्हे पर
पके-पके मन से
टपके हैं
मोती अंजुरि-भर
आँसू औ’ अवसाद खिले बस
अपनी बगियों में ।
7
ट्रैफिक जाम हुआ
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खुशियों के रस्तों में अक्सर
ट्रैफिक जाम हुआ ।
अवसादों की रेल खचाखच
गम से भरी रही
पीड़ा के सिग्नल देखे
आँसू की भीड सही
सरे राह दुख के नर्तन का
मंज़र आम हुआ ।
ठूँठ हुए मन पर जब उगते
यादों के जंगल
लूला-लँगड़ा मौसम भी तब
करे वार पल-पल
चाहत का हर इक पन्ना
चिंता के नाम हुआ ।
धर्म-जात के तमगे पहने
खड़े रहे दरबान
साँसों के फंदों पर झूले
अपनों के अरमान
पंखहीन उम्मीदों पर
उड़ना ही काम हुआ ।
8
एक चिंतित भोर
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गूँजते हैं कुछ सुलगते
प्रश्न चारों ओर ।
स्वार्थ की
काई जमी है
आचरण पर
नींद भारी
पड़ रही है
जागरण पर
है प्रतीक्षा में कभी से
एक चिंतित भोर ।
देह पीली
इस सदी की
हो गयी है
सर्द रातों-सी
सिमट कर
सो गयी है
कान पर बजता नहीं
ख़ामोशियों का शोर ।
ग्राफ़ छल का
रात-दिन
ऊपर चढ़ा है
पर न सच का
वृत्त बिल्कुल भी
बढ़ा है
त्रिभुज में उलझी हुई है
एक कपटी डोर ।
मन-जुलाहा
लच्छियों को
खोलता है
रंग यादों के
क्षितिज पर
घोलता है
जल रही अवसाद की कंदील
चारों ओर ।
9
रेत–सी संवेदनाएँ
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प्यास ने जब-तब निचोड़ी
रेत-सी संवेदनाएँ ।
चाह के खाली कटोरे
भर न पायें
नेह के बादल निठोरे
खार खायें
मौन की सूली चढ़ी हैं
कुछ सिसकती-सी व्यथाएँ ।
ज़िन्दगी घूँघट उठाए
ताकती है
नववधू-सी पालकी से
झाँकती है
पीर के खेतों पड़ी हैं
अधपकी-सी वेदनाएँ
आस की उंगली पकड़कर
साँस चलती
चाहतों की भित्तियों पर
साँझ ढलती
कह रही है उम्र गुमसुम
अनमनी-सी कुछ व्यथाएँ ।
10
हत्या का अभियोग
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बरगद के सायों पर लगता
हत्या का अभियोग ।
सुख के पौधे
पनप न पाये
अँधियारों में
धूप रोकते
दुख के जाले
गलियारों में
इच्छाओं की अमर बेल पर
सूखेपन का रोग ।
मोर-मुकुट
चिंता के जब
खुशियों ने पहने
आहत मुस्कानों
पर थे
चुप्पी के गहने
चाहत की उजड़ी मज़ार पर
लाचारी के भोग।
दहशत के
बेताल टँगे
मन की डाली पर
आशंका की
बेल चढ़ी
सच की जाली पर
अनुबन्धों के भी सूली पर
चढ़ने के संजोग ।
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मालिनी गौतम
574, मंगलज्योत सोसाइटी
संतरामपुर-389260
जिला-महीसागर, गुजरात
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