रविवार, 4 जुलाई 2021

कवि यश मालवीय के दस नवगीत प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग


कवि यश मालवीय के दस नवगीत
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1

शाम है औ' पार्क भी है पर यहाँ बच्चे नहीं हैं

शाम है औ' पार्क भी है
पर यहाँ बच्चे नहीं हैं
लौट जाएँ आप भी,
हालात कुछ अच्छे नहीं हैं

फिसलपट्टी पर उदासी डोलती,
सुनसान झूले
दिख रहे हैं,एक दो चेहरे
कि जैसे राह भूले

बादलों में सनसनी है,
धूप के लच्छे नहीं हैं

डूबता सूरज निहारें,
खिड़कियों से बड़े-बूढ़े
हर कहीं सम्वाद के हैं,
दर्द से दुखते मसूड़े

बात भी अब क्या करें,
जो बात के कच्चे नहीं हैं

सुबह हो या शाम,
पत्ते शाख पर हिलते नहीं हैं
रास्ते भी अनमने हैं,
मोड़ पर मिलते नहीं हैं

है हवा भी डरी-सहमी,
फूल के गुच्छे नहीं हैं।

2


गीत की दिहाड़ी

जिस तरह जुलाहा-मन
बुनता है साड़ी
सारा दिन करता हूँ,
गीत की दिहाड़ी

छंद-छंद कसता हूँ
रंग-गंध कसता हूँ
कथ्य को हवा जैसा
मंद-मंद कसता हूँ

रचता हूँ नदी-झील,
टेकरी-पहाड़ी

शिल्प शिथिल करता हूँ
सृष्टि निखिल करता हूँ
देहरी पर दिया बाल,
फिर झिलमिल करता हूँ

फूल सा खिलाता हूँ,
घर-आँगन-बाड़ी

बिका-ठगा रहता हूँ
जगा-जगा रहता हूँ
समय को सजाने में,
सिर्फ़ लगा रहता हूँ

रोज़ ही पकड़ता हूँ,
सुबहों की गाड़ी।

3


एक चाँद ईद का

खिला-खिला चेहरा है
दिल की उम्मीद का
चार चाँद लगा गया,
एक चाँद ईद का

लोच कौन लिख पाया
हरी देह शाखों का
मौन झिलमिलाता है
दीपदान आँखों का

रोशनी नहाई है,
मत पूछो दीद का

फूलों की साँसों में
गंध कसमसाई है
घर के कोने-अतरे,
किरन की रसाई है

खिड़की से देखो तो
आँगन ख़ुर्शीद का

मेरे हित अपना भी
तुम्हें ख़्याल रखना है
कश्ती में हवा,
हवा बीच पाल रखना है

देखना असर हमको,
अपनी ताक़ीद का।

4
 

हमें अपना वही एहसास होगा

यक़ीनन ये धरा,आकाश होगा
हमें अपना,वही एहसास होगा

मिलेंगे लोग चेहरे और क़िस्से
मिलेंगे रोज़ इससे और उससे

उजाले लौट आएँगे सुबह के
हमारा घर,हमारे पास होगा

धुआँ होगा,ये मौतों का धुआँ फिर
जगेंगे नींद से मस्ज़िदें-मंदिर

खिलेगी ज़िन्दगी फिर पास अपने
कि फिर ज़िंदा वही इतिहास होगा

कि फिर से बतकही का दौर होगा
गली में आम का फिर बौर होगा

तुम्हें फिर रोज़ देखेंगे नज़र भर
नहीं फिर आँख का उपवास होगा

कि लौटेगा समय फिर क्यारियों में
नहीं होगा कोई बीमारियों में

हँसेंगे फूल मुरझाए हुए से,
महकती साँस में मधुमास होगा।

5


आसमानों पर कहीं,कर्फ्यू नहीं है


लाल नीले हरे रंगों में,
समय को लिख रही हैं
बहुत दिन पर,आसमानों पर,
पतंगें दिख रही हैं

दहशतों को,वहशतों को,
कर किनारे
कौन है, आवाज़ दे,
ख़ुद को पुकारे?

आँख में ही स्वप्न सी,
बेमोल देखो बिक रही हैं

इंद्रधनु का जोड़ क्या,
कोई, कहीं है?
आसमानों पर कहीं,
कर्फ्यू नहीं है

दिन कठिन है और
अपने आप पर ही टिक रही हैं

चलो हम तुम आस्था की
इक सुनहरी डोर थामें
छत हमारी,बीत जाएँगी,
यहीं पर सुबह-शामें

आँच धीमी है,
हमारी साँस सी ही सिक रही हैं।

6

कागज़ पर ऑक्सीजन , साँस में धुआँ 

कागज़ पर ऑक्सीजन 
साँस में धुआँ 
रहनुमा सारे करते 
बस हुआ - हुआ 

केंद्र राज्य पर छोड़े , 
राज्य केंद्र देखे 
देश मर रहा,मुखिया
बस जुमले फेंके

क़दम-क़दम पर मिलता,
मौत का कुआँ

अपना ही ख़ून पी रहीं,
अपनी साँसें
भगवा पहने मंत्री,
कर रहा तमाशे

आँखों से रह-रह,
तेज़ाब है चुआ

सत्ता के सब दलाल,
नोंच रहे बोटी
जल रही चिताओं पर,
सेंक रहे रोटी

खाना है शायद,
बंगाल में पुआ

चल रही दवाओं की
कालाबाज़ारी
गली-गली अट्टहास,
करे महामारी

मरते ताऊ-चाचा,
मर रही बुआ

सड़कों पर ख़ून,
कब तलक फेंके जनता?
मंदिर बन रहा,
अस्पताल काश बनता!

लाशों पर खेल रही,
सल्तनत जुआ।
7

क़िताबों की दुनिया

क़िताबों की दुनिया,क़िताबों की दुनिया
ये काँटों में खिलती क़िताबों की दुनिया

यहाँ जागने के तरीक़े मिलेंगे
कठिन ज़िन्दगी को सलीक़े मिलेंगे
यहाँ बोलने की रवायत पुरानी,
यहाँ लोग क्यों होंठ सी के मिलेंगे

ये सच्चों की दुनिया,ये ख़्वाबों की दुनिया

यहाँ अच्छे-अच्छे ठिकाने मिलेंगे
कहानी मिलेगी,तराने मिलेंगे
जिन्हें जानना है निहायत ज़रूरी,
वो रस्ते बहुत से अजाने मिलेंगे

ये दुनिया नहीं है,ख़राबों की दुनिया

यहाँ पर तसव्वुर के ऊँचे क़िले हैं
यहाँ आ के गौतम से गाँधी मिले हैं
यहाँ बह रही इल्म की गीत-गंगा
अजब सिलसिले हैं,गजब सिलसिले हैं

ज्ञान की छलछलाती शराबों की दुनिया

यहाँ हर उमर के खिलौने मिलेंगे
ज़मीनें मिलेंगी,बिछौने मिलेंगे
शिखर छू रहे से कथानक मिलेंगे,
यहाँ वामनों जैसे बौने मिलेंगे

ये बचपन,बुढ़ापे,शवाबों की दुनिया

यहाँ हैं मशालें भी चेहरों सरीखी
यहाँ पर हैं चेहरे मशालों से जलते
जुलूसों के सँग-सँग हैं झरने उछलते,
यहाँ पर सवेरे नहीं आँख मलते

ये नंगी नहीं,है जुराबों की दुनिया

ये दुनिया हमारी तुम्हारी रही है
यही मीर तुलसी बिहारी रही है
वो ग़ालिब के क़िस्से,निराला की बातें,
यहाँ प्रेमचंद जी की क्यारी रही है

सवालों से उगती जवाबों की दुनिया।
क़िताबों की दुनिया,क़िताबों की दुनिया।

8

गाली नई बनानी होगी
जमकर उसे सुननी होगी

शब्द नए ईज़ाद करेंगे
गुलशन फिर आबाद करेंगे

अपनी मौत मरेगा हिटलर,
फिर से वही कहानी होगी

पूरे भारत का मालिक है
चेहरा देखो कापालिक है

राजा फेंक रहा है पाँसा,
पहले जान बचानी होगी

आज ज़रूरत है जुनून की
लहर रही है नदी ख़ून की

जिसपर है सामान मौत का,
भारी नाव डुबानी होगी

कुशल क्षेम फ़िलहाल लिख रहा
कोई अपना नहीं दिख रहा

इस अमित्र होते मौसम में,
फिर'मित्रो मरजानी' होगी।

9

देश की गर्दन पे रखकर पाँव उपदेशक बना

ख़ुद मलाई काटता,
जनता को लोहे का चना
देश की गर्दन पे रखकर पाँव,
उपदेशक बना

मुल्क में गहरा अँधेरा,
चमक आँखों की बढ़ी
मूर्ख भक्तों को पढ़ाता,
दर्द की बाराखड़ी

सुने जय-जयकार ,
सुन सकता नहीं आलोचना

स्वयं रावण राम के,
आदर्श की बातें करे
बेचता है देश,
भारतवर्ष की बातें करे

रक्त में जनतंत्र के,
क़िरदार है सारा सना

दृष्टि बदले नहीं,
चश्मा रोज़ ही बदला करे
कर रहा व्यापार डर का,
सच बिलखता सा डरे

पहनकर नरमुंड देखो,
कर रहा है प्रार्थना।

10

गीत लिखा औ ' शाम हुई 

दुपहर भारी भारी थी 
गीत लिखा औ' शाम हुई 
तबियत ही बेचारी थी 
गीत लिखा औ' शाम हुई 

सारे जलते लमहों को 
हमने गीत बना डाला 
सूनेपन में ख़ुद को ही 
पक्का राग सुना डाला 

ख़ुद की ख़ुद से यारी थी 
गीत लिखा औ ' शाम हुई 

घड़ी घड़ी सन्नाटे को 
घड़ी घड़ी जाँचा - परखा 
तोड़ा किए एकरस सा 
दिनचर्या वाला चरखा 

हर तलवार दुधारी थी 
गीत लिखा औ' शाम हुई 

रफ़ी लता आशा का यूँ 
दिन - दिनभर का साथ किया 
हुए रूबरू शीशे के 
अपने से ही बात किया 

कब यूँ मानी हारी थी ?
गीत लिखा औ ' शाम हुई

यश मालवीय




यश मालवीय 
जन्म :  18 जुलाई 1962 
          इलाहबाद विश्वविद्यालय से स्नातक 
सम्प्रति :  ए.जी. ऑफ़िस इलाहबाद ,उत्तर प्रदेश में कार्यरत 
पिता :   उमाकांत मालवीय
सम्पर्क : "रामेश्वरम ,ए - 111 मेंहदौरी कॉलोनी , इलाहबाद -211004 
            मो.-09839792402
प्रकाशित :  कहो सदाशिव , उड़ान से पहले ,एक चिड़िया अलगनी पर एक मन में ,बुद्ध मुस्कुराए , एक आग आदिम , कुछ बोलो चिड़िया , रोशनी देती बीड़ियाँ , नींद कागज की तरह (सभी नवगीत संग्रह ),कृतियां   चिनगारी के बीज ( दोहा संग्रह ) ,इण्टरनेट पर लड्डू कृपया लाइन में आएँ,सर्वर डाउन है ( सभी व्यंग संग्रह ), रेनी डे ,ताकधिनाधिन (दोनों बालगीत संग्रह ). 
पुरस्कार :दो बार उ.प्र. हिन्दी 
संस्थान का निराला सम्मान , संस्थान का ही उमाकांत मालवीय पुरस्कार और सर्जना सम्मान। मुंबई का मोदी कला भारती सम्मान , नई दिल्ली से परम्परा ऋतुराज सम्मान ,शकुंतला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार। भारत रंग महोत्सव ,नई दिल्ली में नाटक ' मैं कठपुतली अलबेली , का मंचन। उदय प्रकाश की कहानी पर बनी फ़िल्म ' मोहनदास ,कर लिए गीत लेखन। 
                   पिछले साढ़े तीन दशकों से दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से रचनाओं के प्रसारण के अतिरिक्त ,राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन। स्तम्भ लेखन। नवगीत के प्रमुख कवि।

3 टिप्‍पणियां:

  1. यश मालवीय आज के समय के सशक्त नवगीत कवि हैं।सर्वप्रथम मैं उनके पिताश्री प्रातःस्मरणीय स्व उमाकांत मालविय जी को जानता था।तब से जब वे होशंगाबाद आते रहते थे। और मैं आदरणीय गुरुवर माहेश्वर तिवारी व गुरुवर विनोद निगम के पीछे पीछे घूमा करता था।उन दिनों लेखन की ए बी सी डी सीख रहा था।कुछ वर्षों के बाद यश जी को देखने पढ़ने का अवसर आया।यश जी ने पिता की विरासत को सही मायने में अर्थ दिया है।
    उन्होंने नवगीत को नया आसमान दिया है।
    नये बिम्ब नई कहन और नवल शिल्प के साथ नवगीत के स्वरूप को अगले सोपान तक लाने में वे मील का पत्थर साबित हुए हैं।
    आज वागर्थ में प्रस्तुत उनके सभी नवगीत एक से बढ़कर एक हैं।उनका अपना शिल्प और शैली उन्हें एक अलग पहचान देती है।यश जी के बेहद खूबसूरत नवगीतों को प्रस्तुत करने के लिए वागर्थ पटल साधुवाद का पात्र है।
    ©श्याम सुंदर तिवारी, खण्डवा, मप्र.

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  2. यश मालवीय के गीतों का क्या कहना। हर पद सांचे में ढला हुआ। उनके नवगीत कथ्य और लय दोनो में मजबूत हैं तथा नवगीत के नए कथ्य के संवाहक भी दिखते है। विचारधारा के स्तर पर इस कवि अपना माथा किसी सत्ता की चौखट पर नही टेका, न पद्मश्री के लिए छद्म श्री वाली मुद्राएं अपनायीं।

    यश अपनी पीढ़ी के समर्थ कवि है। नवगीत की यह इलाहाबादी कलम अनूठी है। यहां सभी कविताएं उत्तम हैं।

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