रविवार, 18 जुलाई 2021

कवि जयराम जय के ग्यारह नवगीत प्रस्तुति : वागर्थ

1
भाग रहे हैं लोग
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महा नगर की
दौड़ धूप में भाग रहे हैं लोग

क्वॉरे मौसम का 
पागलपन सीख रहा छलना
चली हवा बदचलन 
यहॉ पर संभल संभल चलना
स्नेहिल बन करके 
कपटी बम दाग रहे हैं लोग

रोज़ी रोटी के जुगाड़
 में  गुमसुम  हुआ  सुआ
खालीपन है बहके 
सपने मन  शैतान  हुआ
मज़बूरी में क्या 
करते बन काग रहे हैं लोग

अर्थशास्त्र का पाठ
 पढाकर तिल का ताड़ बनाते
इसकी टोपी उसके 
सर पर रोज़-रोज़ पहनाते
जीवन यापन 
स्वार्थ रज़ाई  ताग  रहे हैं लोग

कितने दिन तक 
और चलेगा यूॅ मन को बहलाना
नींद न आये रात न भाये
बस सपने  सहलाना
अपनी अपनी
 मज़बूरी में जाग रहे हैं लोग

कौन चलाये उनकी 
बातें उनकी बात निराली
ऊपर से हैं भरे-भरे 
पर  भीतर  से  खाली
पानी देने वाले 
पानी मॉग रहे हैं लोग

महानगर की 
दौड़ धूप में भाग रहे हैं लोग

2

    वादे भूले जैसे हैं
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प्रगति हुई 
कुछ गाँव हमारे
बस वैसे के ही वैसे हैं

छप्पर वही 
वही कोठरियाँ
इधर-उधर 
लटकी पोटलियाँ
बातें रहे
बनाते हरदम
वही कहानी वाली परियाँ

नयी योजना
फिर लाए हैं
आ सकते शायद पैसे हैं

जाँचे हुईं 
'कमीशन'लेकर
खुश कर देते पट्टे देकर
खाना-पूरी 
करके केवल
ग्राम सभा वटवाए ऊसर

लागत भर 
पैदा मुश्किल हो
मूढ़ बने जैसे-तैसे हैं

बस वादों के 
हैं आवर्तन
युग सापेक्ष हुए परिवर्तन
धेला भर का 
काम न करते
झूंठ-मूठ के महा प्रलोभन

सत्तासीन 
हुये हैं जबसे
सब वादे भूले जैसे हैं 

3

भाव दाल का
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कैसे हाल बतायें हम
बेहाल हाल का

महगाई की चाबुक खाकर 
बैठे हैं घर में
नहीं बचा है शेष रुपइया
गया सभी कर में
धरे हाथ पर हाथ टटोलें 
शिकन भाल का

डीजल,पेट्रोल,कैरोसिन 
ने खीशैं है बाई
और सिलेण्डर ने झट से
तीली है सुलगाई
गया निशान नहीं है
थप्पड़ जडे़ गाल का

नून तेल लकड़ी का देखो 
हाल बेहाल हुआ
उधड़ गई है खाल,खानगी
मँहगा माल हुआ
आसमान छू रहा आज है
भाव दाल का

वादे हुये खोखले सब
नेता दाँत निपोरे
लगा नये कर जनता की 
जुल्मी आँत निचोरे
इनपे असर न कोई
ये पशु मोटी खाल का

राजा बैठा है गद्दी पर 
धारण मौन किये
कान बंद है आँख न खोले
मद की सुरा पिये
मंत्री सारे काम कर रहे 
सिर्फ ढ़ाल का

कैसे हाल बतायें हम
बेहाल हाल का
         
 4

घूम रहे मुह बाये
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प्रेमचन्द के 
पात्र अभी तक 
घूम रहे मुह बाये

परिवर्तन का 
ढोल पीटते 
थके नहीं अभिनेता
कलयुग को भी 
बात-चीत में 
बता रहे हैं त्रेता

झूठ बोल करके 
ही सबका
मन कब से बहलाये

कहते तो हैं 
गाँव-गाँव में
प्रगति हुई है भारी
फिर क्यों 'होरी' का 
झोपड़िया में
रहना है जारी

रात-रात भर 
नींद न आये
पटवारी हड़काये

बोझ कर्ज का 
लदा पीठ पर
आँख दिखाये बनिया
मज़बूरी में 
मज़दूरी सँग
बेच रही तन 'धनिया'

आँसू पी-पीकर 
जीवन का
दर्द स्वयं सहलाये

कागज़ पर ही 
दौड़ रही है
खूब योजना उजला
'घूरू' के घर 
कई दिनों से 
चूल्हा नहीं जला

कैसे पाले पेट 
सभी का 
कहाँ जाय मर जाये

प्रेमचन्द के पात्र 
अभी तक 
घूम रहे मुह बाये     
 
5

कौन तोडे़गा ?
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मंच पर छाने 
लगे हैं चुटकुले
कौन तोडे़गा ये पथरीले किले ??

हो गयीं 
दुर्योधनी हैं कामनायें
अनवरत धृतराष्ट्र 
जैसी भावनायें
जिनको अपना 
साथ देना चाहिये था
वह चले हैं गैर का 
परचम उठाये
सूर्य के वंशज भी तम से जा मिले

रख दिया गाण्डीव 
अर्जुन ने किनारे 
यह मेरा परिवार 
इसको कौन मारे
द्रोण के संग भीष्म भी 
बैठे सभा में
सर झुकाये और 
हठकर मौन धारे
चल रहे फूहड़ यहाँ जो सिलसिले

शारदा सुत आज
अर्थार्थी हुये
छन्द पिंगल 
तोड़कर भर्ती हुये
तालियों के मोंह में
निज कर्म तज
जोकरों के वे भी 
अनुवर्ती हुये
काव्य के श्रोता को ये शिकवे-गिले

मंच पर छाने
लगे हैं चुटकुले 
कौन तोडे़गा ये पथरीले किले ??

6

बतियाना छोड़ दिया
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गाँवों की चौपालों ने
बतियाना छोड़ दिया
इसीलिये तो खुशियों ने
मुसकाना छोड़ दिया

तोता मैना राजा रानी
जलते हुये अलाव
दुर्लभ हैं सब यहाँ बताओ
कहाँ नेह का भाव

रचे बसे त्योहारों ने 
घर आना छोड़ दिया

लिपे पुते चेहरों की रौनक 
दिखती है अब गुम
हम दिल वाले राजी हैं तो 
क्या कर लोगे तुम

दूल्हन ने घूघट करना 
शरमाना छोड़ दिया

राग नहीं अनुराग नहीं है 
कोई आँगन में 
आँख का पानी सूख गया है 
प्रिय मनभावन में

भाभी ने हँसी- ठिठोली
हड़काना छोड़ दिया

दरवाजे का पेड़ पुराना 
गुमसुम रहता है
कोई आये कुछ कह जाये
सब कुछ सहता है

रूठ गयी गौरैया
आबो-दाना छोड़ दिया

बहुत दिनों से खोज रहा है 
खुशिया चौकीदार 
अधरों पर मुसकानें क्यों हैं 
चिपकी हुई उधार

मिल के घर बनवाना 
छप्पर छाना छोड़ दिया

गाँवों की चौपालों ने 
बतियाना छोड़ दिया
इसीलिये तो खुशियों ने 
मुसकाना छोड़ दिया

7

लौट गई है रात
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अभी-अभी अपना सा मुंह ले
लौट गयी है रात
भौंरे लगे समझने फूलों के 
कोमल जज्बात

अम्मा मुंह अधियारे उठकर
गाने लगी प्रभाती
हुड़क रही है बछिया कब से
गइया खूब रम्भाती
चिडी़-चिरौटा पंख पसारे 
करें प्रीति की बात

नई बहूरिया जगी रात भर
खेल किया नकटौरा
एक हाथ का घूंघट काढे़
झाड़ रही है चौरा
बबुआ पूंछ रहे अलसाये
क्या हो गया प्रभात

अलगू भइया गये हार हैं 
हल कांधे पर धारे
खून पसीना एक किये हैं
कैसे प्रगति पधारे
पकी फसल है मन में शंका
बदला करे न घात

धूल भरा गलियारा गुम है
गुम बम्बे की पटरी
पाट दिया है तारकोल से
दौड़ रही अब छकडी़
मुखिया दाढ़ लगाये देता 
बात-बात में मात

 8

संबंधो का हाल
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आंखें खुली खुली रह जाती 
संबंधों का हाल देख कर 

पतझड़ के पीले पातों सा 
अरमानों का हश्र हो गया 
पाल पोस कर जिसे बढ़ाया 
ताड़ बना और वक्र हो गया 

भीतर बाहर आग लगी है 
मौसम को बेहाल देखकर 

शकुनी ही शकुनी दिखते हैं 
चौसर चारों ओर बिछाए 
ताक रहे कब नज़र हटे और 
बगुला फिर से काम लगाए 

तोता असमंजस में बैठा 
बंद आंख की चाल देखकर 

चेहरों पर हैं लगे मुखौटे 
करते सदा दोमुही बातें 
दिखने में गौरैया जैसे 
चीलों वाली करते घातें  

अब तो बया उदास हो गया 
कपि के फूले गाल देखकर

बाबा बैठे हैं चौखट पर 
दो रोटी की आस लगाए 
अपने में हैं व्यस्त सभी जन
उन पे  कोई नजर न जाए 

मन ही मन में दुखी बहुत हैं 
अपनी सेयी पाल देखकर 

आंखें खुली खुली रह जाती 
संबंधों का हाल देख कर
   
9

राजा बड़ा शिकारी है
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इस जंगल का 
राजा भइया
बड़ा शिकारी है
उल्टा-सीधा पाठ पढ़ाकर
बाजी मारी है

मद में डूबा 
रहता हरदम 
पीकर मद प्याला
जिसने भी 
मुंह खोला उसके 
जड़ देता ताला

परजा जंगल की उसकी
चालों से हारी है

बड़े प्यार से 
बतियाता है
वह दुलराता है
ज़हर घोलता है
आपस में
खूब लड़ाता है

रहता साथ मगर वह रखता 
साथ कटारी है

गिरगिट जैसे
रंग बदलता
कलाकार धाँसू
झूठ-मूठ के
ढरकाता है
घड़ियाली आँसू

रग-रग में तो भरी हुई 
उसके मक्कारी है

समझ गये 
सब धीरे-धीरे
ढोंगी की गलती
शुरू हो गई है 
ज़ुल्मी की
अब उल्टी गिनती

अब विरोध में उसके दिखता
जनमत भारी है
         
10

कण्ठ भर आए
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है यहां प्रतिकूल मौसम 
क्या किया जाए 
थक गयी श्रद्धांजली अब
कण्ठ भर आए

हर दिशा बहने लगा है
पवन जहरीला
सांस अटके और ऑखो 
को करे गीला

पत्थर हुई संवेदना 
मरसिया गाए

'आक्सीजन' के बिना
जिंदगी बेचैन है 
'एम्बुलेंस'चीखती,सांत्वना
दिन-रैन है 

बे वजह ही हम इधर से
उधर तक धाए

अस्पतालों शवगृहो में
भीड़ है भारी
जिंदगी पर मौत का पहरा 
कड़ा जारी

निर्दयी निष्ठुर, हमें हैं
सिर्फ भरमाए

दहकते श्मशान गुलज़ार
कब्रिस्तान हैं
मृत्यु को मिलता नहीं,अब 
उचित सम्मान है

'फेल' है परधान दुखिया
मुँह खड़ा बाए

11

   सबका  कौंन बाँटे 
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सब ने अपनी राह में हैं 
बो दिए  कांटे 
दर्द सबका कौन अब बांटे 

अमराई महकी आंगन में 
तरसे मन सूखे सावन में 
साथी मेरा इंटरनेट से 
टुकुर-टुकुर ताके 

लगते उजले दिन है काले 
यादें सॅग महुआ के प्याले 
वह नहीं हमारे पास तो फिर 
कौन अब डांटे 
दर्द सबका कौन अब बांटे

रात चांदनी बेला  महके 
टेसू मन पलाश बन दहके 
स्मृतियों की पुरवाई ने 
लगा दिए चाटे 
दर्द सबका कौन अब बांटे

 गंध हो गई टुकड़े -टुकडे 
 गीत हो गए मुखड़े-मुखड़े 
स्वार्थ तराजू चुंबक वाले 
लगा रहे घाटे 
दर्द सबका कौन अब बांटे

सब ने अपनी राह में हैं 
बो दिए  कांटे 
दर्द सबका कौन अब बांटे 
                  
~जयराम जय
प्रेमिका,11/1,कृष्ण विहार,कल्याणपुर 
कानपुर-208017(उ प्र)
मो नं  9415429104 ;9369848238
ई मेल-jairamjay2011@gmail.com


कवि परिचय




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साहित्यिक नामः- जयराम जय
पूरा नाम: - जयराम सिंह यादव
अवतरणः- 05जनवरी 1959
जन्म स्थान: - ग्राम व पोस्ट सुल्तानगढ़,जिला, फतेहपुर (उ.प्र.)
माता: - स्व. सुमित्रा देवी
पिता: - स्व. वंशी लाल यादव
पत्नी: - स्व. मधुलिका सिंह
शिक्षा: -परास्नातक हिन्दी(साहित्यरत्न)                          
            वास्तुविद्, एवम् पत्रकारिता
विधा: - गीत, नवगीत, गजल, छंद, आलेख,कहानी, स्वतन्त्र पत्रकारिता
प्रकाशन: - देश की स्तरीय पत्र पत्रिकाओं निरंतर वर्ष 1981 देश रचनाएं प्रकाशित एवम् साझा संकलनों में प्रकाशन

संपादन: - हमारा शहर मासिक, शेषामृत त्रैमासिक, धरती बचे प्रदूषण से त्रैमासिक पत्रिका।
               अभिब्यंजना,एवम् पंख तितलियों के संकलन

 पूर्व कवि प्रकाशन योजना के अन्तर्गतः- देवेन्द्र शास्त्री प्रतिनिधि संकलन तथा 
                                                         पं. प्रभात शुक्ल प्रतिनिधि संकलन

प्रसारण: - अकाशवाणी, दूरदर्शन, व विभिन्न चैनल्स में
             
सम्मान: - प्रतिष्ठित साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा जिनमें प्रमुखः- 
काव्यायन कानपुर साहित्य सम्मान 1987, 
मानस संगम समारोह-1989, 
इन्स्टीट्यूट ऑफ कोआपरेटिव एण्ड कार्पोरेट मैनेजमेंट, रिसर्च एण्ड ट्रेनिंग लखनऊ, उ प्र द्वारा'मानव संसाधन विकास एवं अभियांत्रिकी प्रबंधन का प्रमाणपत्र,
अभिब्यंजना काव्य कुमुद सम्मान-2008,
आयुक्त उ.प्र. आवास विकास परिषद, लखनऊ -2014, 
मानस मण्डल इन्दिरा नगर कानपुर काव्य भारती -2008, 
विकासिका प्रतियोगिता सम्मान-2008,
 अ.भा. वैचारिक मंच लखनऊ-2009, 
सिद्धार्थ पब्लिक सम्मान -2009, 
होरी तथा यू.एस.एम. पत्रिका सम्मान-2009, 
यदुनंदन्स सेवा संस्थान कानपुर का रचना धर्मिता सम्मान -2011, 
रवीन्द्र पाठक फाउण्डेशन कानपुर का साहित्य सेवा रत्न -2011,
 अ.भा. विद्यार्थी परिषद युवा सम्मेलन प्रतिभा सम्मान -2011, 
विमल साहित्य सदन महामाया नगर विमल पत्रकारिता गौरव-2012,
 स्व. मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्य श्री 2012,
 यदुनन्दन्स सेवा संस्थान कानपुर गौरव-20013,
 कानपुर रत्न2014, 
ओल्ड ब्वायज एसोसियेशन जी.सी.टी.आई. कानपुर सर जे.पी. श्रीवास्तव स्मृति सम्मान 2014, 
साहित्य मंदाकिनी कानपुर सृजन सम्मान -2014,
ख्वाहिस फाउण्डेशन, कानपुर सम्मान -2015,
 विश्व हिंदी संस्थान कनाडा अंतराष्ट्रीय ईपत्रिका प्रयास का साहित्य सम्मान 2015,
विकासिका प्रातिभ बिभूति सम्मान -2016,
 ओपेन बुक आन लाइन कानपुर साहित्य संबर्धन सम्मान -2016, 
निराला स्मृति संस्थान डलमऊ रायबरेली का मुल्ला दाउद सम्मान -2016,
 चित्रगुप्त गुप्त समिति कानपुर साहित्य साधना सम्मान -2017, 
माध्यम साहित्यिक संस्थान कानपुर श्रेष्ठ रचनाकार संम्मान -2017,
आचार्य पं. गोरेलाल त्रिपाठी स्मृति निधि कानपुर, का आचार्य गोरेलाल त्रिपाठीस्मृति सम्मान स्मृति सम्मान वर्ष -2017, 
संत रविदास सेवा समिति पंजी. अर्मापुर कानपुर' संत रविदास रत्न सम्मान वर्ष-2018, 
भारतीय बौद्ध महासभा उत्तर प्रदेश (पंजी.) शाखा कानपुर द्वारा 13अप्रैल2018 को नानाराव पार्क में बौद्ध धम्म अम्बेडकर संम्मान, वर्ष 2019,
 श्री रामनाथ भोला स्मृति संस्थान ग्राम जोजापुर, हड़हा जि. उन्नाव उ.प्र. द्वारा 15मार्च 2020 को साहित्य गौरव संम्मान,
राष्ट्रीय ब्राह्मण संघ, फतेहपुर उ प्र द्वारा दिनांक 16/02/2021, को साहित्यिक/समाजिक कार्यों के लिए सम्मान, 
छत्रपति प्रशिक्षण संस्थान(रजि)कानपुर, एवं रिक्तियाँ रोजगार समाचार प्रकाशन, कानपुर द्वारा नवसृजन कला प्रवीण अवार्ड से दि 01/05/2021 को सम्मानित किया।

संप्रति: - वास्तुविद् अभियंता उ.प्र. आवास एवम् विकास परिषद से सेवानिवृत।
वास्तुविदीय कार्य एवं साहित्य सेवा हेतु समर्पित।

2 टिप्‍पणियां:

  1. जयराम जय के ये नवगीत हमारे समकालीन समाज की वस्तुस्थिति को प्रकट करते हैं | इन रचनाओं का लोक कवि का निजि लोक प्रतीत होता है | मानवीय संवेदनायें इनके केन्द्र में है | कवि जयराम जी को बधाई और आपको साधुवाद |

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  2. हर गीत अपने आप मे सम्पूर्णता लिए हुए ,समयानुकूल शब्द-चित्रावली के आप कुशल चितेरे हैं। हार्दिक बधाई

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