मनीष बादल के समकालीन दोहे
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गन्ने से गुड़ बन रहा, गमका सारा गाँव।
दोना लेकर आ गये, बच्चे नंगे पाँव।।
पंचायत महुआ तले, हुक्का पीती जाय।
बेला है गोधूलि ये, लौटें घर को गाय।।
ओसारे खटिया पड़ी, लेटे पाहुन ख़ास।
सरहज पूड़ी तल रहीं, बेना झलती सास।।
समय-समय पर कीजिये, समय-समय की बात।
समय-समय की सीख से, समय सुधारें तात।।
अरुणोदय की रश्मियाँ, निशा न पाई रोक।
अतुल अरुण आभा करे, सकल जगत आलोक।।
हार नहीं है सोचता, नहीं सोचता जीत।
"बादल" चाहे तैरना, धारा के विपरीत।।
हार नहीं हरदम बुरी, जीत न हरदम नेक।
सीमा में अच्छे सभी, बुरा सदा अतिरेक।।
रिश्तों की तुरपाइयाँ, अब करता है कौन।
रिश्ते झीने क्या हुए, सब हो जाते मौन।।
जहाँ पनपता है नहीं, शक़ का छूआ-छूत।
रिश्तों की होती वहीं, बुनियादें मजबूत।।
अक्सर मारा वो गया, करता सच की बात।
विष का प्याला आज भी, पीता है सुकरात।।
बूँद ओस की कर रही, फूलों पर विश्राम।
सेज न उनकी तोड़िये, ले पूजा का नाम।।
आनन से पढ़ लीजिये, उसके मन को आप।
खुल कर कहता है नहीं, वो अपने संताप।।
सोच-समझ कर बोलिये, रहे न कोई खेद।
नाव डुबोने के लिये, एक बहुत है छेद।।
कोई चैती गा रहा, गाता कोई फाग।
सभी अलापे जा रहे, अपना-अपना राग।।
सतयुग-त्रेता में मिले, द्वापर-कलयुग संग।
हर युग में हमको दिखे, श्वेत- श्याम से रंग।।
युगों - युगों से देखिए, लोभ रहा बलवंत ।
प्रभु सांसें गिनकर दिए, ख़्वाहिश दिए अनंत।।
पूनम की है चाँदनी, कभी अमावस रात।
इससे ज़्यादा कुछ नहीं, जीवन की औक़ात।।
प्रतिभा का सम्मान से, दिखे नहीं अब मेल।
मुकुट उसे जो जीतता, साम-दाम का खेल।।
बादल से बूंदें लिया, लिया धरा से धूल।
वादी में फैला रहा, हर सूँ ख़ुश्बू फूल।।
"बादल" बादल से कहे, बादल हो तुम ख़ास।
बादल-बादल बूँद हो, बादल-बादल प्यास।।
छोटी - छोटी हार पर, मम्मी लेतीं "पेन"।
पर मुझको समझा रहीं, "बेटा ट्राय अगेन" ।।
बच्चों को हूँ डांटता, जब वो करते भूल।
बच्चे कहते आज के, "कम ऑन डैड, कूल"।।
विपदा में रखिए सदा, मति पर निज विश्वास।
कंकर, गागर डालकर, काग बुझाए प्यास।।
चाकू-खंजर से लगे, कभी किये हैं ख़ून।।
कभी नोच घायल किये, जिह्वा के नाखून।।
दिनकर के सँग आचरण, मानव करे विचित्र।
गर्मी भर दुश्मन कहे, सर्दी आते मित्र।।
आख़िर क्यों बदनाम वो, क्या उसमें है खोट।
छेनी तो मूरत गढ़े, ख़ुद पर खाकर चोट।।
छत भी जिनकी है नहीं, ऊनी वस्त्र न गात।
उनको हत्यारिन लगी, ठिठुरन वाली रात।।
दोहन दोनों कर रहे, ग्वाला - साहूकार।
दुग्धामृत दे एक तो, एक ब्याज की मार।।
उलट-पलट पढ़ते रहें, जीवन के अध्याय।
'निज अनुभव' ही श्रेष्ठ है, पुस्तक का पर्याय।।
सेहत से रोटी बड़ी, तभी रहा वो खाँस।
भर गुब्बारा बेचता, बूढ़ा अपनी साँस।।
नहीं जमेगी स्वार्थ की, दही कभी भी मीत।
मानवता - मथनी मथे, मिले नेह नवनीत।।
हिम्मत देती है बहुत, 'बादल' को ये सीख।
सत्य नहीं है माँगता, कभी समर्थन-भीख।।
ग़ज़ल लिखे, दोहे लिखे, मुक्तक या फिर गीत।
'बादल' ने जब भी लिखे, या आंसू या प्रीत।।
दोनों का व्यवहार ये, कितना है विपरीत।
युवा भविष्य जीता सदा, बूढ़ा सदा अतीत।।
झूठों का आदर यहाँ, झूठों की ही ठाठ।
हरियाली है झूठ से, सच है सूखी काठ।।
नयनों में ही झाँकिये, जब पढ़ना हो मौन।
नयन सदा सच बोलते, इनसे सच्चा कौन।।
मुस्कानों में खोजिए, उसके सारे घाव।
चेहरे पर वो लेपता, ख़ुशहाली के भाव।।
ख़ामोशी से कर लिया, मैंने सब स्वीकार।
हारा तो हारा हुआ, जीता तो भी हार।।
क्षिति जल नभ पावक हवा, पाँच तत्व हैं मूल।
इनसे देह मनुष्य की, जीवन के अनुकूल।।
निज भाषा, निज संस्कृति, निज सीमा, निज ज्ञान।
जो इनका सुमिरन करे, मानुष वही सुजान।।
मुश्किल ने फिर मान ली, उससे अपनी हार।
तुमको ये किस्मत लगे, कोशिश हमें अपार।।
लिखते-लिखते लिख गया, वो कुछ ऐसी बात।
मौन लगा फिर बोलने, शब्द - शब्द की मात।।
अंतर्मन में जब हुआ, अंधियारे का शोर।
आशा-किरणें आ गयीं, लेकर उजली भोर।।
सद्गुण सारे धुल गए, अहम् बिगाड़े काम।
ज्यों नींबू की बूँद भी, फाड़े दूध तमाम।।
फूलों से यारी रखो , मुझे न जाओ भूल।
मैं माटी तो क्या हुआ, मुझसे ही फल- फूल।।
सच को मैंने सच कहा, कहा झूठ को झूठ।
बस मुझसे मेरे सभी, गये तभी से रूठ।।
मुखिया बैठा सोचता, हुई कहाँ पर भूल।
मैंने बोया आम था, उपजे मगर बबूल।।
गंगा-जमुना का मिलन, दे ढोलक पर थाप।
बहनों से आकर मिलीं, सरस्वती चुपचाप।।
निष्ठावान नयन सदा, धरते दृश्य पुनीत।
नित-नित नायक लिख रहा, नेह-पूर्ण नवगीत।।
अतिशयता अच्छी नहीं, हो चाहत या रार।
सीमा में रखिये सदा, अपने सब व्यवहार।।
अंतस में जो घोलते, हैं पुस्तक के ज्ञान।
मनसा वाचा कर्मणा, मानुष हुए महान।।
सबसे ही मुश्किल रहा, अंतर्मन का युद्ध।
राम-लखन जानें इसे, या फिर गौतम बुद्ध।।
परिचय
परिचय
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नाम --- मनीष बादल
पिता --- श्री विभूति प्रसाद श्रीवास्तव (से.नि. मुख्य प्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक)
माता --- श्रीमती विमला श्रीवास्तव (से.नि. प्रधानाचार्या)
शिक्षा ---एम.बी.ए.
वर्तमान पेशा --- विगत चार वर्षों से व्यवसाय
अतीत पेशा --- वोडाफ़ोन मोबाइल कंपनी, भोपाल म.प्र. में रिटेल हेड और अन्य कंपनियों में अलग-अलग पदों और स्थानों पर कार्यरत
लेखन विधा --- मुख्यतः ग़ज़ल, दोहे, मुक्तक, गीत, पैरोडी, कहानी, संस्मरण
प्रकाशन --- साझा प्रकाशित पुस्तकें..
(1) "कोरोना काव्यांजलि"
(2) परवाज़-ए-ग़ज़ल -5
(3) काव्य प्रहरी।
(4) दो अन्य ग़ज़ल साझा संग्रह (प्रकाशनाधीन)
समय-समय पर देश की अग्रणी समाचार पत्रों/और अग्रणी पत्रिकाओं में प्रकाशन
प्रसारण ---- दूरदर्शन, आकाशवाणी एवं अन्य नेशनल/प्रादेशिक टीवी चैनलों पर समय-समय पर प्रसारण
प्रकाशन - हंस, छपते-छपते एवं अन्य विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं समेत सभी राष्ट्रीय और प्रादेशिक समाचार पत्रों में प्रकाशन
अन्य --- 1.भोपाल में आयोजित सभी काव्य गोष्ठियों में भागीदारी
2.राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों/मुशायरों में भागीदारी
प्रमुख उपलब्धि --- क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर पर लिखी सम्पूर्ण "सचिन चालीसा: द एंथम", मीडिया हॉउस - टी.वी. चैनल्स, समाचार पत्रों/ पत्रिकाओं/ एफ.एम. रेडियोज़ में प्रमुखता से साक्षात्कार के साथ प्रमुख स्थान
रुचि ---- लेखन के साथ-साथ लुप्तप्राय हो रहे "हवाइयन गिटार" बजाना, पुराने गाने गाना, चित्रकारी करना और समाज सेवा
वर्तमान पता --- फ्लैट न. टॉप - 3, नर्मदा ब्लॉक,
अल्टीमेट कैंपस, शिर्डीपुरम, कोलार रोड, भोपाल - 462042 म. प्र.
मूल निवास - वाराणसी, उ.प्र.
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