समूह वागर्थ के सम्पादक मण्डल ने नवगीत पर विचार आमन्त्रित किए थे।
प्रस्तुत हैं राजेन्द्र शर्मा अक्षर जी की नवगीत पर वैचारिकी।
प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल
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नवगीत जिज्ञासा
(--- राजेन्द्र शर्मा 'अक्षर' )
9893416360
नवगीत भी गीत का ही अंग है। अतः नव गीत पर चर्चा करने से पहले गीत के लक्षणों को जान लेना थोड़ा बहुत जरूरी है।
गीत के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं:-
1-आत्माभिव्यक्ति अर्थात् वैयक्तिकता की प्रधानता ।
2- एक ही भाव भूमि का निर्वाह अथवा निबंधात्मकता ।
3- संक्षिप्तता ।
4- स्वर गौण रहकर शब्दों की प्रधानता ( अर्थात् गीत में स्वर गुण और शब्दार्थ मुख्य होते हैैं जबकि शास्त्रीय संगीत में स्वर प्रधान होते हैं और शब्द गौण )
5-भाषा-( गीत की विशेषता उसकी भाषा में भी होती है ।गीत की भाषा और कविता की भाषा में थोड़ा सा अंतर होता है। जहां कविता में पेंच होता है वहीं गीत में स्पष्टता होती है ।कविता अपना सच आपको इतनी आसानी से नहीं बताती जितना कि गीत)।
नवगीत शब्द एक यौगिक शब्द है जिसमें 'नव' शब्द , गीत का विशेषण है अर्थात् है तो यह गीत ही किंतु इसमें कुछ नवता नवीनता या नयापन है ।
नव गीत में नवता या नवीनता का प्रमुख कारण इस प्रकार है :-
-देश -काल- परिस्थिति अर्थात् संकलन त्रय में परिवर्तन होना , विकास अथवा ह्रास होना ही नयेपन का मुख्य कारण है ।
--नवगीत में 'नव' शब्द संकलन त्रय के सापेक्ष है ।
--प्राचीनकाल ,आदिकाल , वीरगाथा काल, भक्तिकाल ,रीतिकाल ,
आधुनिक काल- इन सब में परिवर्तन, विकास अथवा ह्रास ही तो हुआ है।
--वस्तुत: प्रत्येक काल में एक छोटा-मोटा रीतिकाल विद्यमान रहता है। अधिकांश रचनाकार उस काल में प्राय: एक जैसी रचनाएं लिखते हैं ।इस बीच सीमा से आगे जाकर रचनाकार जो सृजन का प्रयास करते हैं वही नवीनता है ।
--विकास एक सतत प्रक्रिया है। विकास को रोका नहीं जा सकता। भौतिक विकास ,आध्यात्मिक विकास के साथ ही यह विकास भाषा में और साहित्य की विभिन्न विधाओं में भी होता है ।समय की समस्याओं के कारण कथ्य और शिल्प में भी परिवर्तन होता है।
--कहने का अभिप्राय यह है कि इस संकलनत्रय अर्थात् देश- काल- परिस्थिति में परिवर्तन के साथ ही -
अनुभव के प्रकार, संदर्भ ,शिल्प विधान, कथ्यआदि में भी बदलाव होता है ।साहित्यकार जब उनको रचनात्मक अभिव्यक्ति देता है तो उसे नया रचना विधान खोजना पड़ता है। यही नवीनता का प्रमुख कारण है ।
लोग बदल रहे हैं ।पीढ़ी ही बदल रही है ।यह बदलाव केवल साहित्य में ही नहीं ,गांवों- शहरों में और फिल्म, संचार ,संगीत, कला आदि के विविध क्षेत्रों में हो रहा है ।
गीत और नवगीत के बीज भारतेंदु काल में ही पड़ गए थे किंतु उस समय नवगीत जैसा नामकरण नहीं हुआ था। तब से आज तक गीत का विकास होता ही आया है। शुरुआती दौर में नवगीत में केवल सामाजिक विषमता ,विद्रूपता ,आक्रोश, सामाजिक विकृतियों को ही प्रधानता दी जाती थी किंतु आज नवगीत का क्षेत्र विस्तृत हो गया है और जीवन की समग्रता को इसमें व्यक्त किया जाने लगा है।
नव गीत की विशेषता:-
नव गीत की विशेषता यही है कि 1---इसमें बहुत सारी वर्जनाएं टूट जाती हैं ।आत्माभिव्यक्ति से आगे जाकर समष्टि के रूप में यह विस्तृत हो जाता है ।
2---शाश्वत विशेषताओं के साथ, सापेक्ष आवश्यकताओंकेअनुरूप, नएबिंबों,प्रतीकों,उपमाओं,नये नये प्रतिमानों के माध्यम से अभिव्यक्ति दी जाती है ।
-नया भाव बोध और नया शिल्प विधान इसकी विशेषता है ।
3--मिश्र छन्द -निराला जी के नव गीतों में मिश्र छन्द देखे जा सकते हैं ।नयी कहन,नयी लय नया छन्द विधान ,नये बिंब नये प्रतिमान इसकी विशेषताएं हैं ।
4---जहां तक लय का प्रश्न है, इसमें लय का बराबर ध्यान रखा जाता है और रखा जाना भी चाहिए । किंतु कुछ विद्वानों का कहना है कि नव गीत गाया नहीं जाकर भी गीत है , नवगीत की कथन शैली में ही उसका गीतत्व है ।कुछ विद्वान नई कविता अर्थात् गद्य कविता की तरफ झुकते प्रतीत होते हैं जिसमें कि लय टूट जाती है ।
मेरी विनम्र सम्मति में नवगीत भी लय धर्मी ही होना चाहिए।ं क्योंकि लय को श्रोता और पाठक स्वेच्छा से स्वीकार करते हैं। इससे मनोभावों में साम्य रहता है तथा अवरोध उपस्थित नहीं होता ।
लय -श्रोता को ग्रहणशील मन:स्थिति में ले आती है ।लय के अंतर्गत संवेगों का उत्थान -पतन होता है, और खास बात यह है कि
सौन्दर्यानुभूति लयधर्मी होती है।
नवगीत केवल साहित्य के क्षेत्र में ही नहीं अपितु ग्रामों के गीतों में ,फिल्मी गीतों ,धार्मिक गीतों आदि में सुनने को मिलते हैं ।
इस प्रकार नव गीत भी गीत का ही रूप है।
अलग अलग कथ्य होने के बावजूद प्रगीत,जन गीत , के अतिगीत आदि, प्रकारान्तर से नवगीत ही हैं ।
गीत के विकास की यह प्रक्रिया आगे भी गतिमान रहेगी।
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