गुरुवार, 3 जून 2021

बारहवीं कड़ी में विनय मिश्र जी के समकालीन दोहे प्रस्तुति वागर्थ समूह

12वीं कड़ी में 
प्रस्तुत हैं विनय मिश्र के 
समकालीन दोहे
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इन दिनों दोहे खूब लिखे जा रहे हैं और प्रकाशित हो रहे हैं लेकिन आज भी अधिसंख्य दोहाकारों के यहाँ बीते कल और आज के दोहों में अन्तर की जो स्पष्ट विभाजन रेखा है, उस समझ का घाल मेल है। आज का दोहा समकालीन संवेदनों और वैचारिकी से लैस है।
     नई कविता के मित्र भले ही दोहा छन्द को पुरातन और पिछली हुई विधा मानकर स्वयं को सबसे बड़ा प्रगतिशील मानते हुए अपनी पीठ ठोकते हों लेकिन दोहा आज भी युगीन सन्दर्भों को बखूबी अभिव्यक्त करने की पूरी ताकत रखता है। दोहे के सन्दर्भ में जरूरी बात है तो वह इतनी सी केवल मात्राएँ गिनकर तुकबंदी कर देने से दोहा नहीं लिखा जा सकता बल्कि दोहों की कसौटी पर खरा उतरने के लिए जरूरी है कथ्य का पूरा अध्याय वह भी कलात्मकता के साथ पूरी तरह सुसज्जित तब जाकर दोहा आकार लेता है। 
      कवि विनय मिश्र जी के समकालीन दोहे इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। 16 दिसम्बर 2016 को विनय मिश्र जी का संग्रह 'इस पानी में आग' मुझे पढ़ने और उपयोग करने के जिस निमित्त से भेजा था उसका सदुपयोग आज इन दोहों को आपके समक्ष प्रस्तुत करके इस संग्रह का सम्यक उपयोग कर पा रहा हूँ।

प्रस्तुत हैं विनय मिश्र जी के समकालीन दोहे
प्रस्तुति
वागर्थ
संपादक मण्डल
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दोहे
             सोना काटे कान
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1.
मैं अदना- सा आदमी,   मेरी कौन बिसात
फाकों में दिन कट गए, औ' आंँखों में रात

2.
हरदम रहती ज़िन्दगी , अपनों से हैरान
जूता  काटे पाँव को ,  सोना काटे कान

3.
दिन रूठे संवाद के ,  सूखी मन  की झील
 दरक रहे विश्वास की, सुनता कौन अपील 

4.
मेरी किस्मत में कहांँ, लिक्खा है आराम 
छुट्टी के दिन ही रहा, सबसे ज्यादा काम

5.
कैसे  होगा  झूठ  का, बोलो  परदाफाश
सच कहते ही पेड़ पर,टँग जाती है लाश

6.
हम दोनों हैं  एक ही,  कुनबे  के  इंसान 
उसको गीता याद है,मुझको याद कुरान

7.
इससे ज़्यादा कुछ नहीं, दौलत मेरे पास
 मज़हब है इंसानियत, ज़िंदा है एहसास

8.
जब तक जीवन में यहांँ,बची हुई मुस्कान
खूंँटी पर क्यों टांँग दें,  जीने    के  सामान

9.
रचना के जनतंत्र में, जिसमें जितना ताप 
तय करती है आग ये , कहांँ खड़े हैं आप

10.
तपते  रेगिस्तान में , एक  अकेला पेड़ 
वर्षों तक लेता रहा , सूरज से मुठभेड़

12.
तेरा मेरा है यही , सदियों का इतिहास 
पानी तेरा हो गया , मेरे  हिस्से   प्यास

13.
मेरे  घर के सामने , कुचल   गया  मासूम 
अगले दिन अखबार से, मुझे हुआ मालूम

14.
यादों में  तिरती  रही, जाने  कैसी बात
नींद बजाती वॉयलिन, सारी सारी रात

15.
दुखिया गलियों में करे,  जूठी  पत्तल साफ
 लेकिन लाखों में बिका, उसका फोटोग्राफ

16.
कुछ ऐसे हैं ध्यान में ,खुशियों का सामान
जैसे रहता था  कभी,  पनडब्बे  में   पान

17.
रहा जगाए इस कदर, बनपाँखी का शोर 
बटन नींद का टाँकते, यहांँ  हो  गई  भोर 

18.
मानो मीठी खीर हो, सुबह ओस का रूप 
चटखारे  लेती   हुई, खाती   जाए     धूप 

19.
तू ऐसे चलता रहा, मुझमें  अपने आप 
जैसे अपने मौन में, राह चले चुपचाप 

20.
एक दिलासा दे गया, जाने आकर कौन
 आंँखों में तिरने लगा, मेरे  मन  का मौन

21.
खामोशी में भी जिया, मैंने    इक   संवाद
मुझ से बतियाती रही, लौट लौट कर याद

22.
बहती थी तो ज़िन्दगी, बहती थी अविराम
 नदी अहिल्या हो गई , कब  आओगे  राम 

23.
एक समंदर तक चलूंँ, पकड़े तेरा हाथ
तू ठहरे तो ऐ नदी, मैं भी  हो  लूंँ  साथ

24.
दिन की थीं तैयारियाँ, लेकिन आयी रात
एक छलावा  हो गई, खुशहाली की बात

25.
जब से मेरे गाँव का , मुखिया  बना  बबूल
काँटों की मरजी बिना,खिला न कोई फूल

                विनय मिश्र

परिचय

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संक्षिप्त जीवन परिचय

विनय मिश्र
जन्मतिथि ‌:12 अगस्त 1966,देवरिया,उ.प्र.

        काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में 
        पीएचडी1996
कृतियांँ:

- ग़ज़ल संग्रह "सच और है" सन् 2012 में प्रकाशित

- गीत संग्रह "समय की आंँख नम है" सन् 2014 में प्रकाशित

- कविता संग्रह "सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा" सन् 2015 में प्रकाशित

- दोहा संग्रह "इस पानी में आग "सन् 2016 में प्रकाशित

- ग़ज़ल संग्रह "तेरा होना तलाशूँ" सन् 2018 में प्रकाशित

                 संपादन

- "दीप ज्योति" पत्रिका के तुलसी विशेषांक का सन् 2001 में संपादन

-"शब्द कारखाना" पत्रिका के समकालीन हिंदी ग़ज़ल पर केंद्रित विशेषांक का सन् 2007 में संपादन
- "पलाश वन दहकते हैं" स्वर्गीय मंजु अरुण की रचनावली का सन् 2009 में संपादन

- "जहीर कुरेशी : महत्व और मूल्यांकन" का सन् 2010 में संपादन

- "अलाव " पत्रिका के समकालीन हिंदी ग़ज़ल की आलोचना पर केंद्रित विशेषांक का सन् 2015 में विशेष संपादन सहयोग

- "बनारस की हिंदी ग़ज़ल" का सन् 2018 में संपादन

- वरिष्ठ कवि आलोचक नचिकेता द्वारा संपादित 8 प्रतिनिधि ग़ज़लकारों के महत्वपूर्ण संग्रह  "अष्टछाप" में शामिल

- वरिष्ठ जनधर्मी आलोचक डॉ. जीवन सिंह        की  पुस्तक "आलोचना की यात्रा में हिंदी ग़ज़ल" में प्रतिनिधि ग़ज़लकार के रूप में शामिल
- लब्धप्रतिष्ठ आलोचक डॉ जीवन सिंह द्वारा       दस प्रतिनिधि ग़ज़लकारों की संपादित पुस्तक  - - "दसखत "में शामिल
- डॉ लवलेश दत्त द्वारा  मेरी ग़ज़लों पर केंद्रित  "समकालीन ग़ज़ल और विनय मिश्र"   पुस्तक का संपादन

संप्रति राजकीय कला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अलवर (राजस्थान) के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत 

 वर्तमान पता-

 बी - 161
 हसन खाँ मेवाती  नगर ,
अलवर ,राजस्थान, पिन  301001

स्थायी पता- बी 1/134 , A-1, अस्सी, वाराणसी,उ.प्र., 221005

दूरभाष- 0144- 2730188 
मोबाइल- 0-9414810083

ईमेल- mishravinay18@gmail.com





प्राप्त टिप्पणियाँ

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर बिम्ब और प्रतीक से सजे हुए दोहे ।
    अर्थ पूर्ण ।
    वाहहह!!!

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  2. भाई विनय मिश्र जी एक अद्भुत और विलक्षण कवि हैं।बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. परंपरागत दोहे की शैली से हटकर यह दोहे वास्तविकता को बारीकी से प्रतिबिंबित करने के साथ मनोरंजक और तर्कसम्मत भी हैं। बहुत सुंदर। विनय मिश्र को बधाई

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  5. विनय मिश्र के दोहों में वैचारिक संजीदगी, सामाजिक यथार्थबोध, ज़िन्दगी की कटु वास्तविकताएं गहन संवेदन के साथ व्यक्त हैं। समकालीन हिन्दी ग़ज़ल,दोहा,नवगीत के विशिष्ट रचनाकार के रूप में विनय मिश्र अपनी पहचान बना चुके हैं।.....हार्दिक बधाई💐

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  6. विनय समसामयिक विषयों को न केवल बखूबी से उठाने है बल्कि सोचने पर मजबूर कर देते है। लेखन के क्षेत्र मे आपका महत्वपूर्ण योगदान है जीवन की सच्चाई को हूबहू उतार देना इनके कलम की विशेषता है। हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।

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  7. विनय समसामयिक विषयों को न केवल बखूबी से उठाने है बल्कि सोचने पर मजबूर कर देते है। लेखन के क्षेत्र मे आपका महत्वपूर्ण योगदान है जीवन की सच्चाई को हूबहू उतार देना इनके कलम की विशेषता है। हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।

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  8. समसामयिक कथ्य,खूबसूरत शिल्प तथा विचारों की सघनता के लिए ये दोहे जाने जाएँगे। मूर्त बिम्बों ने बड़ी सहजता से विसंगतियों व विरूपताओं पर उँगली रखा है, जो प्रभावकारी है। डॉ० मिश्र तथा वागर्थ परिवार को बहुत-बहुत बधाई। कुछ दोहों को तो चूम लेने का मन करता है।
    मांगन मिश्र " मार्त्तण्ड "

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