गुरुवार, 17 जून 2021

समकालीन दोहा की सोलहवीं कड़ी में युवा कवि मनमीत सोनी के बीस दोहे प्रस्तुति : वागर्थ

समकालीन दोहा की सोलहवीं कड़ी
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       समकालीन दोहे की दूसरे पड़ाव की छठवीं कड़ी में
प्रस्तुत हैं युवा कवि मनमीत सोनी के 20 दोहे
                        युवा कवि मनमीत पेशे से एडवोकेट हैं और स्वतंत्र रूप से कविता लिखते हैं वे भले ही मरू प्रदेश की मरू भूमि चूरू (राजस्थान) से आते हों परन्तु उनका दोहा रससिक्त है। सीकर राजस्थान में जन्में मनमीत का बचपन और किशोरावस्था कवियों और शायरों की संगत में बीता  मनमीत ने आठवीं कक्षा में कविता लिखने की पहली कोशिश की थी। फिर क्या था समय के साथ मनमीत का रुझान कविता में निरन्तर बढ़ता गया और बढ़ते बढ़ते यह जीवन का स्थायी-भाव बन गया ।
                       मनमीत को मूलतः हिन्दी की अतुकांत कविताएँ या नई कवियाएँ लिखना भाता है और उनका मन इन्हीं में ज्यादा रमता है लेकिन मनमीत को कभी कभार दोहे और ग़ज़लें लिखने से भी परहेज नहीं है। इस युवा कवि का यह मानना है कि बिना छंद की शिक्षा के कविता में कविताई का रस नहीं आता। इसलिए मनमीत सोनी अनेक विधाओं में अपने आपको अभिव्यक्त करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से फेसबुक सहित सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों से मनमीत सैकड़ों पाठकों तक पहुँचे हैं और इन्हें बहुत प्यार मिला है। एडवोकेट के रूप में काम कर रहे मनमीत कविता के भी एडवोकेट हैं साथ ही जनसरोकारों के पक्षधर भी!
                                असंगतियों और दुरभिसंधियों के खिलाफ निरन्तर अपनी आवाज़ बुलन्द करते हैं फिर चाहे नई कविता हो या समकालीन दोहा मनमीत का सृजन पाठकों का ध्यान खींचता है।
     प्रस्तुति
      वागर्थ
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1
पहले सिस्टम का हुआ, सौ-सौ बारी रेप।
तब जाकर पैदा हुई, इन दुष्टों की खेप।।
2
अम्मा तेरे देस में, चुन-चुन खाए माँस।
ऐसा कर तू कोख में, घुट जाने दे साँस।।
3
धरती माँ किससे कहे, दो सदियों का सोग?
मेरे मौसम मार कर, हँसते देखे लोग।।
4
तेरे - मेरे मुल्क़ की, जानें हैं अनमोल।
आपस में लड़कर भला, क्या पाएँगे बोल।।
5
औलादों ने कह दिया, तुम लगते हो कौन?
माँ तो फिर भी रो पड़ी, पिता रहे बस मौन।।
6
छाती पर रखने पड़े, पत्थर कई हुज़ूर।
तब जाकर आया कहीं,आँसू में यह नूर।।
7
हम तो दिलबीती लिखें, वो जगबीती ठेठ।
हम गाँवों के छोकरे, वो दिल्ली के सेठ।।
8
जीवन जैसे दीप है, धरती जैसे चाक।
ढल जाए तो रोशनी, ढह जाए तो राख।।
9
जाने क्या अपराध था, मिला हमें यह शाप?
जल की भाँति खौलना,लिखना होकर भाप।।
10
आँख उठाकर देखिए, कहाँ छुपे हैं आप?
किलकारी की लाश को, कंधा देता बाप
11
इस धरती का कर दिया, हमने बेड़ा ग़र्क।
मठ तो खोले स्वर्ग के, काम लिए ज्यूं नर्क।।
12
धरती को बूढ़ी करे, आदम करे जवान।
स्वारथ तेरी लैब का, यह सनकी विज्ञान।।
13
दुख की मिट्टी के लिए, पानी ही है आग।
आँसू-आँसू फूल है, मुखड़ा-मुखड़ा बाग।।
14
छोटी-सी इक चोट पर, ढहनी है दीवार।
मन की मन में रह गई, मरना था दो बार।।
15
कुहरे तेरा शुकरिया,  ठहरा इतनी देर।
मैंने नंगी आँख से, सूरज लिया तरेर।।
16
जाने हम आबाद हैं, या फिर हैं बरबाद।
हमको तनहा छोड़कर, सैटल है औलाद।।
17
ना गाड़ी का शौक़ था, ना बंगले की चाह।
बीच किताबों में मिली, मुझको अपनी राह।।
18
बुर्का ख़ुद ही हट गया, घूँघट हुआ पतंग।
यह बरखा की धूम है, यह सावन का रंग।।
19
बादल जब खाने लगे, हद से ज़्यादा भाव।
हमने सूखी रेत पर, तैरा दी इक नाव।।
20
सीधी-सी यह बात है, हम ठहरे चितचोर।
आप अगर सुल्तान हैं, लाख करें इग्नोर।।

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मनमीत सोनी


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