रविवार, 13 जून 2021

डॉ अजय जनमेजय जी के नवगीत : प्रस्तुति समूह वागर्थ

वागर्थ प्रस्तुत करता है डॉ अजय जनमेजय जी के नवगीत
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                                            डॉ अजय जनमेजय जी पेशे से प्रख्यात बाल रोग विशेषज्ञ हैं और ख्यात बाल साहित्यकार हैं। डॉ साहब से परिचय नया नहीं बहुत पुराना है। यह बात और है कि इस बात की भनक उन्हें कभी लगने ही नहीं दी। एक फार्मा कम्पनी ने डॉ साहब की  बेटियों पर केंद्रित एक रचना को पोस्टर साइज की सीनरी में डिजाइनिंग  और फ्रेमिंग करने के उपरान्त पूरे देश के नर्सिंग होम्स में डिस्ट्रीब्यूट किया था। कविता सन्देशप्रद और प्रभावी थी परिणामस्वरूप अधिकांस चिकित्सकों ने इसे अपने चेम्बर्स में, इस पोस्टर को ऐसी जगह चस्पा कर रखा था, जहाँ से पेशेंट इसे पढ़ सकें।   
                                यह रही जनमेजय जी से परिचय की पहली कड़ी। अब जोड़ता हूँ दूसरी और तीसरी कड़ी भोपाल के एक समारोह में इनकी सहजता के दर्शन करने का अवसर मिला। तीसरी मुलाकात फेसबुक पर हुई और मैंने किसी पोस्ट में बिना सोचे समझे  इस क्षीण एक तरफा मुलाकात के आधार पर डॉ अजय जनमेजय जी को टैग कर किया। फिर क्या था इस टैगिंग क्रम का सिलसिला जारी रहा और डॉ साहब की तरफ से हर पोस्ट पर  प्रभावी और विनम्र टिप्पणियाँ मिलने लगी यह बात और है कि डॉ अजय जनमेजय नवगीत लिखने का श्रेय वागर्थ समूह को देते हैं।
           इस सच के साझेदार तो वह स्वयं ही हैं। हाँ, डॉ साहब बहुत अच्छे पाठक हैं, मैं इतना तो वागर्थ और मेरी अपनी निजी वॉल के आधार पर कह ही सकता हूँ। सोशल मीडिया के महत्व और उसकी उपयोगिता के सार्थक उपयोग को लेकर भी आज डॉ साहब पर यह टीप और उनके नवगीत वागर्थ के सुधी पाठकों तक पहुँचा कर समूह स्वयं गौरवान्वित है।
                 आइए पढ़ते हैं डॉ.अजय जनमेजय जी के दस नवगीत
प्रस्तुति
वागर्थ
संपादक मण्डल
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1

अब बातों का उपमानों का 
असर नहीं होता
धीरे-धीरे, हुए मगर हम
चिकने घड़े हुए

खडे हुए बाजार में हम भी
कीमत नहीं लगी
हम भी करने में निष्फल थे
खुद से रोज ठगी
इसीलिए बाज़ार में
अब तक
बिका  नहीं  
वो हार कि जिसमें
हम  थे जड़े हुए

दिल पूरब कहता था तो
दक्षिण ओर चले
हम दिमाग की बात मानकर
पूरी उम्र पले
दिल दिमाग़ में रही बराबर 
यूँ ही तनातनी
खुद ही खुद में 
टूटे बिखरे
कितने धड़े हुए

खुद को सोचा खुद को गाया 
बस एकांग हुए
हाथ-पैर साबुत सोचों से 
हम विकलांग हुए
एक ज़माना 
बीता अब तो 
खुद से लड़े हुए।।

2
                       

आँखों आँखों 
उतर गया है 
धन दौलत का
आज मोतियाबिंद 

सबसे पहले मैं आता है
मैं आ जाता है जब पूरा
फिर तो तुम का शब्द ही शायद
शब्द कोश से मिट जाता है
रोग मानसिक है ये ऐसा
कोई मदद नहीं कर सकता
अगर कृपा हो सके तो केवल 
भली करें गोविंद

बिना पिए ही चढ़ जाती है
धन की ये हाला है ऐसी
बात सही जो जो करते हैं
दुश्मन लगते सभी हितैषी 
घूम रहे हैं अलग नशे में 
चाल ढाल भी 
अलग तरह की
अलग तरह के रिंद

अलग हैं इनके तौर-तरीके
अलग है इनका तबका
नहीं यहाँ क़ानून है कोई
ऊपर वाले रब का
देख ग़रीबी 
रक्त चाप बढ़ जाता इनका
दुश्मन के मानिंद 

3

एक धुरी पर 
घूम रहे हैं 
फिर भी ख़ुशियाँ 
चूम रहे हैं
हम कोल्हू के बैल

कहाँ पहुँचते
डगर न कोई
कहाँ चल रहे
ख़बर न कोई
भाग्य हमारे 
ऐसे खोटे

बाँध आँख पर 
चले अंधौते
दिन भर चले 
थके तब जाकर
खाने को है 
सूखा भूसा
सोने को खपरैल

चिह्न प्रश्न वाचक हैं मन में 
बड़े हुए जो पलते
लघुशंका भी 
करनी पड़ती 
क्यों कर चलते-चलते
चलें अनवरत हम 
फेरे में 
बाँध दिए ऐसे 
घेरे में
अब कोई क्यों 
समय गँवा कर
चले हमारी गैल

 4       

कितना मुश्किल से जीती है 
सड़क किनारे घास

आपा धापी 
के ट्रैफ़िक 
में खुद की जान
बचाए रखना
प्रतिपल उड़ते धूल धुएँ में 
उखड़ी साँस 
बचाए रखना
इन प्रतिकूल परिस्थितियों 
में भी 
होती नहीं निराश

अपनी जड़ से जुड़कर रहना
मई जून में 
बिन पानी के
प्रतिकूल थपेड़े
पल-पल सहना 
मौसम की मनमानी संग में 
चाहे कुछ हो 
ज़िंदा रखती है
जीने की आस

इसी हाल 
मुफलिस जीता है
कड़वे घूँट मिले जीवन से 
बिना शिकायत 
बिना ना -नुकुर 
पल-पल हँसकर ही पीता है
उसको घास सदा देती है 
जीने का विश्वास

5
                       
किसने दी आज़ादी इनको 
किसने दी ये ढील 
गाँव-गाँव में 
आज बिटोडों पर 
बैठी  हैं चील

भेड़चाल  सा आगे-पीछे 
जीवन भाग रहा
अलसाया सा
जिसको देखो 
वो ही जाग रहा
मंज़िल किधर 
किधर है जाना
ध्येय सभी का 
अनजाना है
किसने देखा चल पाए हम
अब तक कितने मील

नज़र झुकाकर
चलो रास्ता
घटना से मत 
रखो वास्ता
यहाँ धार से उल्टा चलना
राजद्रोह के 
अन्तर्गत है
जिसने कोशिश की चलने की
ठुकी पाँव में कील

हत्यारों पर
न्याय की कुर्सी 
करती आई 
मातमपुर्सी
न्याय टिका है 
उनके काँधे
रहें आँख जो
पट्टी बाँधे
अँधे बहरे राजतंत्र में 
सुनता कौन दलील ।।

   6
                    
साँसों की 
लक्ष्मण रेखा के सब
अनुबंध जिए
यूँ तो लाख 
मुसीबत आईँ 
पर निर्द्वंद्व जिए—

कब निकलेगा सूर्य 
कहाँ पर 
उसे चमकना है
चमक रहे
जो यहाँ राजपथ
वहीं दमकना है
हमने ऐसे कठिन दौर के
सारे फंद जिए—

प्यार की सारी 
शर्तें मानी
जितनी मिली यहाँ
तभी मिलीं कुछ
शाम सुहानी
अच्छा लगा जहाँ
औरों के
अनुभव से सीखे
हो
पाबंद जिए—

यहाँ रात को दिन
कहना था
झुठलाकर चंदा 
साँसों को था यहाँ जरूरी
गर्दन में फंदा
‘अजय’ कहो क्या थी मजबूरी
क्यों प्रतिबंध जिए

7
                   

मेरे घर से 
अब के बारिश की
यारी नहीं छनी
मेरी दीवारों पर कोई
आकृति नहीं बनी

बादल आए
गरजे- तरजे
बिन बरसे चले गए
हम बस्ती के पिछवाड़े की
छोटी पोखर 
फिर से छले गए
बड़ी झील पर जाकर बरसे
हम छोटे थे यूँही तरसे
छोटों से बडों की जाहिर  
रिश्तों में तनातनी

बूँदों से स्नान करें जब
पत्ते हिल-डुलकर
मानो नाच रहे मस्ती में 
सारे मिल जुलकर 
अबके बारिश नहीं पड़ी तो
शायद ग़ुस्से में 
अबके पौधों पर थोड़े भी
फूल नहीं आए
रूठी- रूठी रही कई दिन
कमरे की बालकनी 

हम मरुथल की रेत
हमें तो पल-पल उड़ना है
क़िस्मत में भी नहीं लिखा ये 
हमको रुकना है 
गर्म चपेटे लू के सन-सन
और हमारी उससे यारी
साँप नेवले जैसी हममें 
हरदम रही ठनी

   8
                 
रोज नाचना खुद के हाथों 
ऐसे रहे मदारी हम
गोटें पिटती रहीं हमारी 
हारे हुए जुआरी हम

संयम नियम और मर्यादा 
लाँघ चुके कब की 
मैं इतना बढ़ गया कि चिंता 
कौन करे रब की
इस दुनिया में आकर कैसी  
सीख गए हुश्यारी हम 
गोटें पिटती रहीं हमारी 
हारे हुए जुआरी हम

भ्रष्ट हुए ऐनक के शीशे 
गाँधी साफ़ करें
जज क़ातिल तो कोर्ट कचहरी 
क्या इंसाफ़ करें
राज व्यवस्था मधुमक्खी सी
ज़ख़्मी हुए शिकारी हम

गोटें पिटती रहीं हमारी 
हारे हुए जुआरी हम

उम्मीदों की एक तराजू 
दीमक चाट गई
बहरे लगे बजाने ढोलक 
अंधी हाट गई
कहने को तो पुरखों वाली
पाए हैं मुख्तारी हम   
गोटें पिटती रहीं हमारी 
हारे हुए जुआरी हम

रोज समय के दाँत कर रहे
बुनियादें खोखी
संबंधों में ज़हर घोलती 
दुनिया है चोखी
फिर भी जो कुछ मिला है हमको
रहे सदा  आभारी हम
गोटें पिटती रहीं हमारी 
हारे हुए जुआरी हम

   9        

नहीं ज़रा भी नमी बची है 
इक मरुथल की भाँति
रिश्तों में बस आह बची है
इक दुर्बल की भाँति

ख़त्म हुआ सब आना-जाना
टूट गया है ताना-बाना
छूछक, तीज, वायना भूले
भूले प्रेम भाव जतलाना
रिश्ते ढूँढ रहे हैं सिगनल 
मोबाइल की भाँति

दुनिया को पूरी पाने में
अपना ही मैं मैं गाने में 
सम्बन्धों में धन आने से 
और प्यार में तन आने से
दर्द टीस रिश्तों में शामिल
इक घायल की भाँति

मैं की ख़ातिर लड़े रोज ही
बात-बात में अड़े रोज ही
अलगावों की फ़सल काटते
घर दीवारें रोज बाँटते
रिश्ते दर-दर भटक रहें हैं
इक पागल की भाँति

अब रिश्तों में कहाँ नमी है
जिधर देखिए धूल जमी है
नदी प्यार की थमी-थमी है
शंकाओं की गाद .जमी है
रिश्ते हैं सूखी सी नदियाँ
अब निर्जल की भाँति 

10

कहने को भी नहीं बचा है
थोड़ा सा अब प्रेम

बची कहाँ है 
अब गरमाई
नहीं जरा है 
अब नरमाई
बचे हुए हैं 
वो ही ज़िंदा 
रिश्ते थे 
जो जो हरजाई 
रिश्तों में दरकार यहाँ है
बस इक फ़ोटो फ़्रेम 

कहने को भी नहीं बचा है
थोड़ा सा अब प्रेम

आना जाना 
कौन कर रहा
कौन किसी के 
लिए  मर रहा
सुबह मोरनिंग
शाम ईवनिंग 
हाय हेलो के 
मैसेज  प्रतिदिन
माँग रहे हैं क्षेम

कहने को भी नहीं बचा है
थोड़ा सा अब प्रेम

दोनों को इस बात 
का है भय
घर का कौन प्रधान 
नहीं तय
घर मेरा है 
घर मेरा है
भूल गए हैं शब्द हमारा
और इसी चक्कर में रिश्ता
घूम रहा है मारा-मारा
बचा हुआ केवल रिश्तों में 
इक दूजे पर ब्लेम

जबसे हक़ 
मुँहजोर हुआ है
बंधन
ये कमजोर हुआ है
रिश्तों की मर्यादा भूले
भूल गए हैं सभी नजाकत
सबको ही ज़िंदा रखनी हैं 
अपनी-अपनी सभी आदत
कोर्ट कचहरी में जा जाकर 
माँग रहे है क्लेम

कहने को भी नहीं बचा है
थोड़ा सा भी प्रेम

                   
परिचय
_______

डॉ॰ अजय जनमेजय
 
 ग़ज़लकार, व्यंग्यकार, कहानीकार पेशे से बालरोग विशेषज्ञ, डॉ॰ अजय जनमेजय की साहित्य यात्रा ग़ज़लों से शुरू होकर दोहों से होती हुई शनैः-शनैः बाल साहित्य की ओर अग्रसर हुई है। इसका श्रेय उनकी बाल शुलभ प्रवृत्ति, उनकी बाल मनोविज्ञान एवं बाल समस्याओं पर गहरी समझ ही है, आज उन्होंने बाल साहित्य की हर विधा- कहानी, दोहे, गीत, शिशुगीत, नाटक, बाल-ग़ज़ल, लोरियाँ, प्रभाती गीत,  के साथ- साथ मुक्तक, कुण्डली से लेकर नवगीत, यात्रा संस्मरण आदि सभी में अपना सार्थक योगदान दिया है। यूँ डॉ.जनमेजय सामाजिक सरोकारों, यथा- कन्या भ्रूण हत्या, पर्यावरण, बेटियाँ, नदियाँ आदि पर लगातार लिखते रहे हैं, किन्तु हिन्दी साहित्य में बेटियों पर लिखा एवं प्रकाशित मुक्तक संग्रह ‘बेटियाँ’ नदी-पीड़ा पर केन्द्रित नदी-गीत ‘नदी के जलते हुए सवाल’ एक अलग ही पहचान रखते हैं। आपकी पुस्तकों का अंग्रेजी, सिंधी, उड़िया, उर्दू , मराठी, पंजाबी एँव तमिल में भी अनुवाद हो चुका है तथा आपकी अनेक रचनाएँ पाठ्यपुस्तकों में संकलित कर विद्यालयों में पढ़ाई जा रही हैं।
 
जन्म- 28 नवम्बर 1955, हस्तिनापुर, (उ.प्र.)
शिक्षा- बी.एस.सी., एम.बी.बी.एस., डी.सी. एच.
विधा— ग़ज़ल, कहानी, बाल कविता, बाल नाटक, गीत, दोहे, मुक्तक, हाइकू, नवगीत आदि।
कृतित्व
ग़ज़ल- 1. सच सूली पर टँगने हैं, सन् 1995
2. तुम्हारे बाद, सन् 1998
3. मेरी एक सौ ग्यारह ग़ज़लें, सन् 2013
बाल साहित्यः
1. अक्कड़ बक्कड़ हो हो हो (गीत) सन् 1998
2. हरा समुन्दर गोपी चन्दर (गीत) 2003
3. निंदिया सबसे प्यारी तू (लोरी) 2009
4. नन्हे पंख ऊँची उड़ान (कहानी) 2005
5. तिरंगा प्यारा (कहानी) 2009
6. कमरे में रेल (कहानी) 2009
7. चिड़िया खुश है उड़ने में, (नाटक) 2009
8. पूरा हिन्दुस्तान तिरंगा (ग़ज़ल) 2012  
9. प्यारे शिशुगीत, 2012
10. दादा जी क्या और लिखूँ (ग़ज़ल) 2014
मुक्तक संग्रह- बेटियाँ, 2014
गीत संग्रह -नदी के जलते हुए सवाल, 2016
दोहा संग्रह- माँ तो माँ है, 2017
सम्पादन
1. ईचक दाना बीचक दाना (बाल काव्य)
2. बाल सुमनों के नाम (बाल कविता संकलन)
3. सफ़र साठ साल का
4. हिन्दी ग़ज़ल यात्रा भाग-1,2
5. हिन्दी की चर्चित ग़ज़लें
6. पिछले दशक की सर्वश्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य कहानियाँ
7. समय की शिला पर (दोहा संकलन)
8. ग़ज़ल एकादशी- 2008, 2010 एवं 2013
प्रकाशनाधीन-
1. छुट्टी के दिन टुम्मक टू  (बाल गीत संग्रह)
2. माँ (काव्य संग्रह)
4. तम भागा (हाइकू संग्रह)
5. गाओ बूझो जानो (पहेली गीत संग्रह)
6. नये नये अकुंराए गीत (नव गीत संग्रह)
7. नदी आज निर्जल न होती (ग़ज़ल संग्रह)
8. खुद की खोज (555 कुडलिया छंद संग्रह)
9. यात्रा संस्मरण संग्रह
पुरस्कार-सम्मान-
1. अलकनन्दा गायकवाड़ बाल साहित्य पुरस्कार म.प्र.  
2. दुष्यन्त अवार्ड, नजीबाबाद (बिजनौर) उ.प्र.
3. पं.सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार, राजस्थान
4. शकुन्तला सिरोठिया बालसाहित्य पुरस्कार, इलाहाबाद (उ.प्र.)  
5. समन्वय सृजन सम्मान, सहारनपुर (उ.प्र.)
6. श्रीमती रतन शर्मा स्मृति बाल साहित्य पुरस्कार, देहली
7. स्व रामसिंहासन सहाय ‘मधुर’ स्मृति बाल साहित्य पुरस्कार, बलिया (उ.प्र.)
8. केशवनाथ खत्री स्मृति सम्मान एवं पुरस्कार, कानपुर (उ.प्र.)
9. स्वतन्त्रता सेनानी चौधरी हीरासिंह चाहर स्मृति काव्य सम्मान एवं पुरस्कार,    जोधपुर (राजस्थान)
10. सरल जैन स्मृति पुरस्कार, भोपाल (म.प्र.)
11. विभूति राज स्मृति बालचेतना सम्मान, जयपुर (राजस्थान)
12. राष्ट्रधर्म सम्मान एवं पुरस्कार, लखनऊ (उ.प्र.)
13. पं. भूपनारायण दीक्षित बालसाहित्य पुरस्कार, हरदोई (उ.प्र.)
14. रामश्री देवी शिशुगीत पुरस्कार, दिल्ली
15. पं. हरप्रसाद पाठक बाल साहित्य पुरस्कार, मथुरा (उ.प्र.)
16. स्व. दुर्गावती बालसाहित्य शिखर सम्मान, खटीमा (ऊ.सिं.न.) उ.ख. 2010.
17. बाबू महाराजसिंह सारस्वत सम्मान, सहारनपुर (उ.प्र.) 2011
18. स्व. मानकलाल शिवहरे बालसाहित्य सम्मान, जबलपुर (म.प्र.) 2011
19. स्व. श्री भूरालाल पारीक स्मृति बाल वाटिका पुरस्कार, भीलवाड़ा (राजस्थान) 2011
20. स्व. आयुष स्मृति अनुराग बाल साहित्य सम्मान एवं पुरस्कार, लालसोट
  (राजस्थान) 2012
21. मायाश्री बाल साहित्य पुरस्कार, इन्दौर (म.प्र.) 2012
22. श्रीमती कपूरी वर्मा साहित्य सृजन सम्मान, सहारनपुर (उ.प्र.) 2012
23. हिमाद्री रत्न सम्मान, कोटद्वार (उत्तराखण्ड) 2012
24. श्री जे.प्रसाद स्मृति बाल साहित्य सम्मान, भोपाल (म.प्र.) 2012
25. नूर खाँ स्मृति सम्मान, भुवनेश्वर (उड़ीसा) 2013
26. उत्कल साहित्य सृजन सम्मान, राउरकेला (उड़ीसा) 2013
27. कृपालसिंह पंवार स्मृति साहित्य सम्मान, काठमांडू (नेपाल) 2013
28. परिधि सम्मान, सागर (म.प्र.) 2013
29. स्वतंत्रता सेनानी ओंकार लाल शास्त्री स्मृति बाल साहित्य पुरस्कार,
   सलूम्बर (राज.) 2013
30. शांति प्रहरी सम्मान, बिजनौर (उ.प्र.) 2013
31. डॉ.वीरेन्द्र कुमार मिश्र स्मृति बाल साहित्य सम्मान, अल्मोड़ा (उ.ख.) 2014
32. वाणी सम्मान, नजीबाबाद, (उ.प्र.) 2014,
33. श्री लक्ष्मण प्रसाद अग्रवाल बाल साहित्य सम्मान, सिंगापुर, 2014
34. स्व. मोहिनी वैंस, कुन्दन लाल जग्गी हिन्दी साधक सम्मान, इनाल्को विश्वविद्यालय, पेरिस, 2016
शोध- 1. डा. अजय जनमेजय एवं उनका बाल साहित्य, 2004,
सम्पर्क- एस.डी.पुरम, द्वार नं. 1, मकान न० 1
नजीबाबाद रोड,
बिजनौर-246701 (उ.प्र.)
340-गोविन्दपुरी, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)

मो. 9412215952
E-mail   drajanmejay@gmail.com

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