आज कीर्तिशेष नवगीतकार महेश अनघ जी का प्रयाण दिवस है।
एक साहित्यकार के रूप में अनघ जी ख्यात और चर्चित रहे हैं।आइये जानते हैं अनघ जी की पुत्री शेफाली श्रीवास्तव जी से उनके पारिवारिक अछूते सन्दर्भों को यह पूरा लघु आलेख शेफाली जी का है मैं सिर्फ इस आलेख को उनके सौजन्य से यहाँ रख रहा हूँ।वह जल्द ही इस आलेख को संस्मरण के रूप में प्रस्तुत करेंगी।
प्रस्तुति
मनोज जैन
घर बेटियों, बहु-बेटा,पोता -पोतियों से खिलखिलाता रहे-महेश अनघ
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पापा हमेशा ही हमारे लिए पापा ही रहे।महेश अनघ नही थे।खासतौर से मेरे लिए तो वो मेरे गुरु एवं मार्गदर्शक,प्रेरणा भी है।मुझे उन्होंने साहित्य की समझ दी,भारतीय दर्शन पढ़ाया और जीवन दर्शन समझाया।जीवन मूल्यों को,संस्कारों को कैसे सिखाया जाना चाहिए यह हमने उनसे ही सीखा है।अपना भरपूर समय दिया है हम तीनों को उन्होंने।मम्मी की अपेक्षा पापा के साथ हम ज्यादा रहना चाहते थे।आपको शायद विश्वास नही होगा लेकिन मुझे सबसे पहले खाना बनाना भी पापा ने ही सिखाया।लोग मुझसे कहते है कि तुम बहुत आशावादी हो और मैं मन मे गर्व करती हूं कि मैं अपने पापा की बेटी हूँ। पापा कहते थे कि कोई ऐसा नही होता जिसमे एक भी गुण न हो।यदि व्यक्ति में 99 अवगुण है और एक गुण है तो हमे उसका वो एक गुण ही देखना चाहिए।मुझे याद कि जब शादी के बाद बहुत दिनों तक यदि मैं घर नही जा पाती थी तो वो मुझे बहाने से बुलाया करते थे ...बहाने भी विचित्र....जैसे मेरे पेन की रिफिल खत्म हो गयी है। (जबकि ये तो कोई भी ला सकता था),मुझे कुछ पत्र लिखवाने है,कंप्यूटर में शायद कुछ गड़बड़ है फॉन्ट सही नही आ रहा हैऔर ऐसे ही अनेक।उन्हें कंप्यूटर मैने ही सिखाया था,जिसमें बाद में बहुत ही व्यवस्थित रूप से गीत टाइप किए गए।हर काम बहुत ही व्यवस्थित होता था पापा का।घर बेटियों से,बहु से,हँसता खिलखिलाता रहे वो बहुत खुश होते थे।मेरी बेटी को जब पहली बार गोद मे लिया था तो उनको देखकर मैं उस खुशी का अनुमान लगा सकी थी जो मुझे पहली बार गोद मे उठाकर उन्हें हुई होगी।सोनू(शिरीष)का बेटा हुआ बहुत खुश थे,जैसे सब मिल गया हो।उनके गीत,कहानियां तो बहुत बाद में समझ आये,पहले जो समझ आया वो ये कि वो सबसे अच्छे पापा है।उनकी सोच,दृष्टिकोण सब ऐसा जिस पर आँख बंद करके विश्वास कर लूँ।किसी बात को समझाने का तरीका ऐसा की आप ज़िन्दगी भर न भूल सको। फिर चाहे वो फिजिक्स के सिद्धांत हो या किसी कविता की व्याख्या।
टूटते हुए हमने उन्हें कभी नही देखा या शायद उन्होंने देखने नही दिया।जैसा कि हर परिवार में होता है मुश्किल समय आता है यहाँ भी हमेशा पापा ने औरों की परवाह न करते हुए हमेशा वो निर्णय लिए जो हम लोगो के लिए ठीक थे हमारी खुशीके लिए थे जिसके लिए शायद कई बार उन्होंने अपनो का भी विरोध सहा।
हमारी दादी,बाबा बुआ ताऊ जी सभी को बहुत याद करते थे शायद अपनी जड़ों से दूर होना कही चुभता होगा जो उनके गीतों में झलकता है। जिन्होंने हमें अपने समय की कभी कमी नही होने दी वो पापा अपने अंतिम दिनों में शायद बहुत अकेला महसूस करने लगे थे।
शेफाली श्रीवास्तव
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