शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

संत कुमार मालवीय जी की कृति पर चर्चा

संत कुमार मालवीय "संत" :खुशियों को बचाये रखने की पुरजोर कोशिश !

प्रवाह 
~~~
अति प्रवाह
दे जाता है, हमें 
एक संदेश ।
सामर्थ्य से अधिक पा लिया 
और ,न कर पाए सदुपयोग 
तो,ले जाएगा बहाकर 
एक दिन 
सभी को,  उस पार।
चाहे, वह जल हो 
वह धन हो
अथवा ज्ञान।
संत कुमार मालवीय "संत"
मध्यप्रदेश के छोटे से कस्बे सांची में जन्मे संत कुमार मालवीय संत जी पिछले कई वर्षों से भोपाल शहर में निवासरत है ।
कस्वाई संस्कृति में पले बढ़े श्री मालवीय जी को,आज भी, शहरी संस्कृति जरा भी न छू सकी। 
मैंने अपने जीवन में बहुत कम लोगों को यथा नाम तथा गुण की युक्ति पर खरा उतरते देखा है। पर यह बात मित्र संत के व्यक्तित्व पर जरूर लागू होती है!
संत होने के लिए कतई जरूरी नहीं है कि, घर छोड़कर जंगल में जाकर धूनी रमा ली जाय! गार्हस्थ्य जीवन में जो अपने भीतर बैठे मनुष्य को मनुष्य बना रहने दे,मेरी दृष्टि में वही संत है। भरत जी घर में ही वैरागी की तर्ज पर मैंने मित्र संत मालवीय जी के जीवन को बहुत निकट से देखा है इनके सुख दुख में निरन्तर भागीदारी की है।
कर्मठता इनके व्यक्तित्व का विशेष गुण हैं ।
  कछुए की तरह मंथर गति से निरन्तर चलते हुए मेरे इस मित्र ने अनेक उपलब्धियों को अपनी कर्मठता के बूते ही अपने खाते में दर्ज किया है ! जिनमें मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी का 1.श्री कृष्ण सरल सम्मान रेलवे बोर्ड का 2.मैथिली शरण गुप्त सम्मान 3. तुलसी साहित्य अकादमी का तुलसी शिखर सम्मान के साथ अन्य सम्मान भी नई कविता की इनकी बहुचर्चित  पुस्तक "बची हुई खुशियाँ" के नाम पर दर्ज है।
                       लेखन में विविधता ,स्वभाव में सरलता, व्यवहार में कुशलता,बोली में मिठास,जीवन में कर्मठता, मित्रों के सहयोग में तत्परता, के इस अनूठे समुच्चय का नाम संत कुमार मालवीय 'संत' के अतिरिक्त अन्य दूसरा हो ही नहीं सकता।
सरल और सहज कविताओं के माध्यम से अपने आपको अभिव्यक्त करना इनकी अन्यतम ख़ूबी है।इनकी पुस्तक बची हुई खुशियाँ की कविताएँ प्रेरणा का अद्भुत संचार करती अपने समय की जरूरी कविताएँ हैं जो निराशा के इस माहौल में हौसला देती है।
 पढ़ते हैं 
 खुशियों के अलाव 
सुलगाते रहे 
उनकी खातिर
सदैव हम
अपनी खुशियों के अलाव।
वे सेंकते रहे 
अपने तन मन और धन को
हम जलाते रहे 
लकड़ियां
प्रीत की रीत की 
ईमानदारी और भाईचारे की 
कभी नहीं पूछा उन्होंने 
आखिर 
इतनी सारी लकड़ियां
तुमने 
कहां से 
और कैसे 
एकत्रित कीं।
प्रस्तुत है संग्रह की दो-एक और सहज और सरल कविताएँ!
      यद्धपि कवि का जुड़ाव किसी विशेष विचारधारा से नहीं है ,पर कविधर्म के निर्वहन के लिए वह विषय विशेष को अपने अनूठे अंदाज में अभिव्यक्ति देते हैं।
द्रष्टव्य है आम जन की पैरबी करती उनकी सफलता शीर्षक से एक सुन्दर रचना।
सफलता 
अजीब परिदृश्य रहा 
हड़ताल और बंद के दौरान 
गरीब के घर 
चूल्हे नहीं जले 
मजदूर के बच्चे 
भूखे ही सोए 
हां 
आंदोलन कारी 
और सुखी संपन्न नेता गण 
बंद सफल का 
समारोह मनाते दिखे।
     विषय वैविध्य की बात की करें तो संग्रह में अलग अलग विषयों पर कुल जमा 60 कविताएं हैं ।कवि ने पर्यावरण, प्रकृति भूमण्डलीकरण,बाजारवाद,ग्रहरति, तीज-त्योहार,राजनैतिक-परिदृश्य ,कार्यस्थल,दर्शन-बोध,छरण होते मानवीय सम्बन्धों को अपनी कविताओं का विषय बनाया है।
प्रतीकों में नवीनता और भाषा में सहजता और सरलता है। संग्रह की एक कविता अपेक्षा शीषक से कवि मन की सहजता को सहज ही टटोला जा सकता है।आइये थाह लेते हैं कविता के माध्यम से कवि मन की।
 अपेक्षा
मुझे भय नहीं 
अपनी निंदा का 
न ही शर्मिंदा हूं ,अपने स्वभाव से ,
तलब गार भी नहीं 
क्षणिक सम्मान 
और झूठी प्रतिष्ठा का 
बनाना भी नहीं चाहता 
किसी की आह के ऊपर 
अपनी वाह के महल
हो चुका हूँ अभ्यस्त
स्वाभिमान की झोपड़ी में चैन पाने का 
हां ,जीवन पथ पर 
स्वजनों से अपेक्षा 
और ईश्वर से यही अभिलाषा 
कि, देर सवेर स्पष्ट हो जावे 
निज कर्म, धर्म और मर्म 
जनता जनार्दन के समक्ष 
ताकि, 
हो सके विदाई 
उनके समाज से 
बिना किसी गिले-शिकवे के।

सार संक्षेप में कहें तो कुल मिलाकर संग्रह बचे "हुई खुशियाँ" बार-बार पठनीय है।

टिप्पणी
मनोज जैन मधुर
बची हुई खुशियां 
कवि:संत कुमार मालवीय
प्रकाशक संदर्भ प्रकाशन 
संस्करण प्रथम 2016

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