वागर्थ में आज
एक और अनूठी प्रस्तुति
पहले पहल
ख्यात समालोचक परमानन्द श्रीवास्तव जी के दो नवगीत
प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल
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1
हवाएँ न जाने
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हवाएँ,
न जाने कहाँ ले जाएँ ।
यह हँसी का छोर उजला
यह चमक नीली
कहाँ ले जाए तुम्हारी
आँख सपनीली
चमकता आकाश-जल हो
चाँद प्यारा हो
फूल-जैसा तन, सुरभि-सा
मन तुम्हारा हो
महकते वन हों नदी-जैसी
चमकती चाँदनी हो
स्वप्न-डूबे जंगलों में
गन्ध डूबी यामिनी हो
एक अनजानी नियति से
बँधी जो सारी दिशाएँ
न जाने
कहाँ...ले...जा...एँ ?
2
हिलती कहीं
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हिलती कहीं
नीम की टहनी !
भूल गईं वे बातें कब की
सब जो तुम को कहनी ।
गन्ध वृक्ष से छूटी-छूटी
चलीं हवाएँ कितनी तीखी
मार रही हैं कैसे ताने
कहती हैं-
कैसी-अनकहनी !
हिलती कहीं
नीम की ट-ह-नी !
परिचय
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परमानंद श्रीवास्तव
परिचय
जन्म : 10 फरवरी 1935, बाँसगाँव, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
भाषा : हिंदी
विधाएँ : कहानी,कविता, आलोचना
मुख्य कृतियाँ
कविता संग्रह : उजली हँसी के छोर पर, अगली शताब्दी के बारे में, चौथा शब्द, एक अनायक का वृत्तांत
कहानी संग्रह : रुका हुआ समय, नींद में मृत्यु, इस बार सपने में तथा अन्य कहानियाँ
डायरी : एक विस्थापित की डायरी
आलोचना : नई कहानी का परिप्रेक्ष्य, हिंदी कहानी की रचना प्रक्रिया, कवि कर्म और काव्य भाषा, उपन्यास का यथार्थ और रचनात्मक भाषा, जैनेंद्र और उनके उपन्यास, समकालीन कविता का व्याकरण, समकालीन कविता का यर्थाथ, शब्द और मनुष्य, उपन्यास का पुनर्जन्म, कविता का अर्थात
संपादन : आलोचना, साखी (पत्रिका), समकालीन हिंदी कविता, समकालीन हिंदी आलोचना
सम्मान
साहित्य भूषण सम्मान, द्विजदेव सम्मान, व्यास सम्मान (के.के. फाउंडेशन, नई दिल्ली), भारतभारती सम्मान (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान)
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