गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

सन्तोष तिवारी के संग्रह पर अभिमत प्रस्तुति : वागर्थ


रहिमन धागा प्रेम का 
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        टिप्पणी
"रिश्ते में से मन के"
     मनोज जैन
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हम सब में लगभग सभी ने रहीम के इस दोहे को अपने जीवन में सैकड़ों बार शब्दशः दोहराया तो होगा लेकिन दोहे के ताप को शायद ही किसी ने महसूस किया हो जिस ताप से खण्डवा के मेरे प्रिय आत्मिक संतोष तिवारी ने इस दोहे को जिया है। 
                  जहां तक मैं अपने मित्र को समझ पाया हूँ यह कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं के वे इस दोहे के सच्चे अर्थों में पर्याय हैं। Santosh Tiwari संतोष जी की कृति "रिश्ते- मन से मन के" की 75 कड़ियों से गुजरते हुए उनकी जिस संवेदना के आस्वाद का पता लगता है वह अपने आप में ही अनुकरणीय है।
    प्रस्तुत कृति में रिश्तों के ताप को गहरे तक महसूस किया जा सकता है।जहाँ तक मैंने संतोष जी के लेखक मन को समझने की कोशिश की उसे आधार मानते हुए यदि सार संक्षेप में कहूँ तो लेखक ने सारी घटनाएँ व कथानक अपने।विपुल जीवनानुभव व लेखन की अपनी विशिष्ट शैली से ख़ूबसूरत अंदाज़ में सँजोये हैं। कथानक के केंद्र में स्वयं लेखक ही हैं।
      वे अपने इर्द-गिर्द संवेदना के ताने-बाने से रिश्तों का रेशमी संसार बुनते हैं,जिनका आरम्भ भले ही सामान्य घटनाओं से हो,लेकिन समापन फेवीकौल की भाँति रिश्तों के मजबूत जोड़ पर ही होता है। 
       प्रकारान्तर से कहा जाए तो रिश्तो का अनंत संसार रचना में संतोष जी को महारत हासिल है वह भी ऐसे समय में जहां रिश्तो का क्षरण पल पल और निरंतर हो रहा हो।
       थोड़ी चर्चा कृति पर भी लाजमी है।'रिश्ते -मन से मन के 'कई कारणों से अहम कृति  साबित होती है, यह मैं अपने स्तर पर दावे से कह सकता हूँ।यों तो लेखक की पूरी की पूरी छः दर्जन कड़ियाँ ही पठनीय और उल्लेखनीय एवं संग्रहणीय हैं।
लेकिन मैं यहाँ चौपनवीं कड़ी का उल्लेख करना चाहूंगा। चूंकि लेखक पेशे से शिक्षक हैं,और एक आदर्श शिक्षक का काम ही प्रेरणा देना या प्रेरित करना होता है इस नाते से भी इस कृति को मैं सफल मानता हूँ, 'तिरछी नजर जिन्दगी की' शीर्षक के पूरे एपिसोड में लेखक ने अपने निजी प्रयासों के बूते रिश्तों पर जमी बर्फ को हटा दिया और पिता-पुत्री के बीच कई वर्षों से अकारण उपजे अबोलेपन /संवाद हीनता जो कि अपने आप में ही किसी मूक यातना से कम नहीं होती,को सौहार्द में बदल दिया।इस प्रसंग पाठकों को प्रेरणा नही तो और क्या है!अनुकरणीय तो है ही!
      कृति से एक संवाद कस अंश यहाँ प्रस्तुत करता हूँ
"रिश्तों पर जमी बर्फ जब पुरानी और सख़्त हो जाती है तो ये आसानी से नहीं पिघलती नसीम"!तब केवल आँसुओं की गर्माहट ही उसे पिघला सकती है।समझीं कुछ?" पूरे संग्रह में इस तरह के अनेक शेड्स हैं तस्वीरें हैं और पूरे केनवास पर अलग अलग रंग हैं जिन्हें लेखक ने संवेदनाओं की तूलिका से खूबसूरती से जगह जगह उकेरा है।
     छोटी सी टिप्पणी का समापन अपनी इस बात से करना चाहता हूँ कि रिश्ते जीवन का सत्य हैं, असली पूँजी है। रिश्तों की सौंधी सौंधी गन्ध धरती की कोख से जीवन का गीत अंकुरित करती है।....... और इस सद्प्रयास  में संतोष जी पूरी तरह सफल हुए हैं। एतदर्थ उन्हें और उनकी कृति 'रिश्ते -मन से मन के'के लिए मेरी हार्दिक मंगलकामनाएँ!
 मनोज जैन

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