बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

गोविंद अनुज की कृति आँगन बात नहीं करता पर टीप

यथार्थ के धरातल से उपजे गीतों का खूबसूरत गुलदस्ता:
"आंगन बात नहीं करता"
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टिप्पणी
मनोज जैन
                                                    26,जनवरी 1960 कोलारस,जिला शिवपुरी में जन्मे श्री गोविंद बल्लभ श्रीवास्तव जिन्हें स्थानीय साहित्य जगत में गोविंद अनुज Govind Shrivastava Anuj जी के नाम से जाना जाता है।
                  2018 में,शिल्पायन से प्रकाशित "आंगन बात नहीं करता" संग्रह को गोविंद अनुज जी ने अपनी जीवन संगिनी कान्ता श्रीवास्तव जी की मधुर स्मृतियों के चित्रों को चिर स्थायी बनाये रखने के उद्देश्य से 69 खूबसूरत गीतों को उन्हीं के लिए समर्पित किया है।

                                           संग्रह में गीतधर्मा कवि गोविंद अनुज की गीत/नवगीत विषयक समझ स्पष्ट और साफ तौर से दिखाई देती हैं।अच्छे और पुष्ट नवगीत लिखने के बावजूद अनुज जी गीत-नवगीत के झमेले से अपने को बड़ी सूझबूझ से बाहर निकाल ले जाते हैं।इस कथन को समझने के लिए उनके आत्म कथ्य के एक अंश को यहाँ उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया जा सकता है।
                    बकौल गोविंद अनुज "'गीत' के सम्बन्ध में कुछ कहना चाहता हूँ,गीत के बारे में कुछ समय से अनेक बातें सुनी और पढ़ी जाती रही हैं-कभी उसके विषय के बारे में कभी उस के नामकरण के बारे में -और कभी उसके अस्तित्व के बारे में-मेरा मानना है कि गीत को सिर्फ गीत रहने दिया जाए-एक अच्छा गीत अपने आप में इतनी ताकत रखता है कि उसके अस्तित्व को निगलने वाले के पेट को चीरता हुआ पारे की तरह बाहर निकल सकता है।"
                          उक्त कथन पूरी तरह गीत के पक्ष में अपनी जोरदार वकालत प्रस्तुत करता है।फिर भी संग्रह के दो तिहाई गीतों को समझा जाए तो,वे पूरी तरह नवगीत के विधान को देखें तो,नवगीत के कथ्य और शिल्प की कसौटी पर,सौ फीसदी खरे उतरते हैं।संग्रह के सभी गीत पाठक के मन तक बड़ी आसानी से पहुँचते हैं।
              तीखे तेवरों के नवगीतों में बिम्ब और प्रतीक विधान अभिनव है,नूतन हैं।नवगीत लिखने की अनुज जी की अपनी यूनिक स्टाइल को संग्रह में देखा और परखा जा सकता है।कवि जो कहना चाहता है वह पाठकों तक पूरी तरह अभिव्यंजित होता है,चाहे गीत हो या नवगीत अनुज जी का छंद कसा हुआ और पुष्ट  है।
          कवि ने जो कुछ भी रचा वह सब अपने आसपास के परिवेश से ही प्राप्त किया यही कारण है वह "तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा"की तर्ज पर अपने अवदान को गीतों की शक्ल में यहीं का यहीं,समाज को लौटाने के लिए प्रतिबद्ध है।
                        खूबसूरत गीतों की बेहद ख़ूबसूरत भूमिका वरेण्य कवि मयंक श्रीवास्तव जी ने लिखी है। मयंक जी ने भूमिका में कवि के साथ पूरा न्याय करते हुए
संग्रह के गीतों की लयात्मकता,ध्वन्यात्मकता के साथ साथ सम्प्रेषणीयता की बात अनुज जी के गीतकार के पक्ष में की है।
              साथ ही कवि की गीत प्रतिभा के लिए जी भर सराहा है।साथ ही अनुज जी को अनूप अशेष नईम विद्यानन्दन राजीव जी महेश अनघ जी की श्रेणी में लाकर प्रतिष्ठित किया है।मैं उनकी दृष्टि सम्पन्नता की पूरे संग्रह को पढ़कर सराहना करता हूँ।
                                    संग्रह के गीतों को सामाजिक सरोकारों,प्रकृति और पर्यावरण,आत्मरति,प्रणय निवेदन के साथ संयोग और वियोग विषयक शीर्षकों में विभक्त किया जा सकता है।एक बात बड़ी दिलचस्प लगी जिस पर मेरा ध्यान गया और मैं भी इस पर बात करने से अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूँ
         यह बात वैसे यहाँ होनी तो नहीं चाहिए थी,पर देखने में आये इस जातीय समीकरण से अनुज जी बच सकते थे।भूमिका लेखक चित्रगुप्त,कवि चित्रगुप्त,फ्लैप में भी कलम-दवात।
                    1.भूमिका 2.फ्लैप और 3.कवि के इस त्रिकोण के हर कोण में विराजमान,चित्रगुप्त महाराजों को नमन प्रेषित करता हूँ।
          मयंक श्रीवास्तव जी Mayank Shrivastava जी की भूमिका और अनुज जी के गीतों की,जिन दो सबल भुजाओं से,जो कोण बनता,वह तो और भी खूबसूरत और असरदार होता!
                  खैर,जो भी है! जो है सो है!
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खूबसूरत संग्रह के लिए अनुज जी को हार्दिक बधाइयाँ।
     टिप्पणी
    मनोज जैन
106,विट्ठल नगर
 गुफामन्दिर,रोड़ लालघाटी
       भोपाल
     462030

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