मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

कैलाश गौतम जी के नवगीत प्रस्तुति वागर्थ सम्पादक मण्डल

वागर्थ में आज 
कैलाश गौतम जी के पाँच नवगीत



प्रस्तुति
मनोज जैन 

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रामधनी की दुलहिन
मुँह पर
उजली धूप
पीठ पर काली बदली है |

...रामधनी की दुलहिन
नदी नहाकर निकली है |

इसे देखकर
जल जैसे
लहराने लगता है ,
थाह लगाने वाला
थाह लगाने लगता है ,

होठों पर है हँसी
गले
चाँदी की हँसली है |

गाँव-गली
अमराई से
खुलकर बतियाती है ,
अक्षत -रोली
और नारियल
रोज़ चढ़ाती है ,

ईख के मन में
पहली-पहली
कच्ची इमली है |

लहरों का कलकल
इसकी
मीठी किलकारी है ,
पान की आँखों में
रहती
यह धान की क्यारी है ,

क्या कहना है परछाई का
रोहू मछली है |

दुबली -पतली
देह बीस की
युवा किशोरी है ,
इसकी अँजुरी
जैसे कोई
खीर कटोरी है ,

रामधनी कहता है
हँसकर
कैसी पगली है |

00

सिर पर आग
पीठ पर पर्वत
पाँव में जूते काठ के
क्या कहने इस ठाठ के ।।

यह तस्वीर
नई है भाई
आज़ादी के बाद की
जितनी क़ीमत
खेत की कल थी
उतनी क़ीमत
खाद की
सब
धोबी के कुत्ते निकले
घर के हुए न घाट के
क्या कहने इस ठाठ के ।।

बिना रीढ़ के
लोग हैं शामिल
झूठी जै-जैकार में
गूँगों की
फ़रियाद खड़ी है
बहरों के दरबार में
खड़े-खड़े
हम रात काटते
खटमल
मालिक खाट के
क्या कहने इस ठाठ के ।।

मुखिया
महतो और चौधरी
सब मौसमी दलाल हैं
आज
गाँव के यही महाजन
यही आज ख़ुशहाल हैं
रोज़
भात का रोना रोते
टुकड़े साले टाट के
क्या कहने इस ठाठ के ।।

00

दस की भरी तिजोरी / कैलाश गौतम
 कैलाश गौतम »
सौ में दस की भरी तिजोरी नब्बे खाली पेट
झुग्गीवाला देख रहा है साठ लाख का गेट ।

बहुत बुरा है आज देश में
लोकतंत्र का हाल
कुत्ते खींच रहे हैं देखो
कामधेनु की खाल
      हत्या, रेप, डकैती, दंगा
      हर धंधे का रेट ।

बिकती है नौकरी यहाँ पर
बिकता है सम्मान
आँख मूँद कर उसी घाट पर
भाग रहे यजमान
      जाली वीज़ा पासपोर्ट है
      जाली सर्टिफ़िकेट ।

लोग देश में खेल रहे हैं
कैसे कैसे खेल
एक हाथ में खुला लाइटर
एक हाथ में तेल
      चाहें तो मिनटों में कर दें
      सब कुछ मटियामेट ।

अंधी है सरकार-व्यवस्था
अंधा है कानून
कुर्सीवाला देश बेचता
रिक्शेवाला ख़ून
      जिसकी उंगली है रिमोट पर
      वो है सबसे ग्रेट ।

00

जैसी नेतागिरी है जी वैसी अफ़सरशाही है
सिर्फ झूठ की पैठ सदन में सच के लिए मनाही है
चारों ओर तबाही भइया
चारों ओर तबाही है ।

संविधान की ऐसी-तैसी करनेवाला नायक है
बलात्कार अपहरण डकैती सबमें दक्ष विधायक है
चोर वहाँ का राजा है
सहयोगी जहाँ सिपाही है ।

जो कपास की खेती करता उसके पास लँगोटी है
उतना महँगा ज़हर नहीं है जितनी महँगी रोटी है
लाखों टन सड़ता अनाज है
किसकी लापरवाही है ।

पैरों की जूती है जनता, जनता की परवाह नहीं
जनता भी क्या करे बिचारी, उसके आगे राह नहीं
बेटा है बेकार पड़ा है
बिटिया है अनब्याही है ।

जैसी होती है तैय्यारी वैसी ही तैय्यारी है
तैय्यारी से लगता है जल्दी चुनाव की बारी है
संतो में मुल्लाओं में
भक्तों की आवाजाही है ।

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स्वयं विचरते रहे सदा स्वच्छन्द दिशाओं में
हम सबको उलझाए रक्खा नीति-कथाओं में ।

हर पीढ़ी में छले गए हम
गुरुओं-प्रभुओं से
जीए भी तो इनके ही
खूँटे पर पशुओं से
घुट-घुट कर रह गई हमारी चीख़ गुफ़ाओं में ।

इन्हीं महंतों-संतों ने
कठघरा बनाया है
पाप-पुण्य औ स्वर्ग-नरक
इनकी ही माया है
अपने रहते प्रावधान से ये धाराओं में ।

हम होते हैं हवन
और ये होता होते हैं
कान फूँकते जहाँ
वहाँ हम श्रोता होते हैं
जनम-जनम यजमान सरीखे हम अध्यायों में ।

जैसे गोरे वैसे काले
कोई फ़र्क़ नहीं
सुनते जाओ करते जाओ
तर्क-वितर्क नहीं
कभी नहीं बर्दाश्त इन्हें अपनी सुविधाओं में ।

कैलाश गौतम / परिचय
___________________
कैलाश गौतम की रचनाएँ
जन्म - ८.१.१९४४
स्थल -जनपद वाराणसी अब चंदौली
शिक्षा - एम.ए. बी. एड.

प्रकाशित रचनाएँ -
सीली माचिस की तीलियाँ (कविता संग्रह)
जोड़ा ताल (कविता संग्रह)
तीन चौथाई आंश (भोजपुरी कविता संग्रह)
सिर पर आग (गीत संग्रह)

शीघ्र प्रकाश्य -
बिना कान का आदमी (दोहा संकलन)
चिन्ता नए जूते की (निबंध-संग्रह)
आदिम राग (गीत-संग्रह)
तंबुओं का शहर (उपन्यास)

9 दिसंबर 2006 को देहावसान

काव्य प्रेमियों के मानस को अपनी कलम और वाणी से झकझोरने वाले जादुई कवि का नाम है 'कैलाश गौतम'। जनवादी सोच और ग्राम्य संस्कृति का संवाहक यह कवि दुर्भाग्य से अब हमारे बीच नहीं है। आकाशवाणी इलाहाबाद से सेवानिवृत्त होने के बाद तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने कैलाश गौतम को आजादी के पूर्व स्थापित हिन्दुस्तानी एकेडेमी के अध्यक्ष पद पर मनोनीत किया। एकेडेमी के अध्यक्ष पद पर रहते हुए इस महान कवि का ९ दिसम्बर २००६ को निधन हो गया। कैलाश गौतम को अपने जीवनकाल में पाठकों और श्रोताओं से जो प्रशंसा या खयाति मिली वह दशकों बाद किसी विरले कवि को नसीब होती है। कैलाश गौतम जिस गरिमा के साथ हिन्दी कवि सम्मेलनों का संचालन करते थे उसी गरिमा के साथ कागज पर अपनी कलम को धार देते थे। ८ जनवरी १९४४ को बनारस के डिग्घी गांव (अब चन्दौली) में जन्मे इस कवि ने अपना कर्मक्षेत्र चुना प्रयाग को। इसलिए कैलाश गौतम के स्वभाव में काशी और प्रयाग दोनों के संस्कार रचे-बसे थे। जोड़ा ताल, सिर पर आग, तीन चौथाई आन्हर, कविता लौट पड ी, बिना कान का आदमी (प्रकाशनाधीन) आदि प्रमुख काव्य कृतियां हैं जो कैलाश गौतम को कालजयी बनाती हैं। जै-जै सियाराम, और 'तम्बुओं का शहर' जैसे महत्वपूर्ण उपन्यास अप्रकाशित रह गये। 'परिवार सम्मान', प्रतिष्ठित ऋतुराज सम्मान और मरणोपरान्त तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने कैलाश गौतम को 'यश भारती सम्मान' (राशि ५.०० लाख रुपये) से इस कवि को सम्मानित किया। अमौसा क मेला, कचहरी और गांव गया था गांव से भागा कैलाश गौतम की सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाएं हैं।

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