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कविता वह जो
पढ़ने के उपरांत देर तक आपके साथ रहे,और मंथन करने को मजबूर करे ।राजधानी की सबसे पुरानी संस्था कला मन्दिर प्रकाशन से प्रकाशित एक दुर्लभ पुस्तक झील के स्वर हाथ लगी जिसका प्रकाशन सन 1981में हुआ इस कृति में उस समय के सभी चमकीले सितारे मौजूद हैं दुर्योग से उनमें से अधिकतर अस्त हो गए हैं।और जो हैं उनकी चमक आज भी बरकरार है आज प्रस्तुत है देशभर में चर्चित राजधानी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ देवेंद्र दीपक जी की एक कालजयी रचना
प्रस्तुत कविता की विशेषता यह है कि यह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कल थी और आगे भी उतनी प्रासंगिक रहेगी।
प्रस्तुति
मनोज जैन मधुर
मेरा देश
मलूकदास का अजगर
मेरी पत्नी
मंहगाई की मार के कारण परेशान है,
मैं व्यवस्था की
असंगतियों के कारण परेशान हूँ,
हमारा बच्चा
हम दोनों की
परेशानी के कारण परेशान है।
भारत के हर घर की,
कुछ ऐसी ही कहानी है
परेशानी ही परेशानी है।
भारत में फिर भी
ऐसा कुछ नहीं होता
कि भारत
ठीक हो,
रफ़ीक कम से कम
मय्यत में तो
शरीक हो।
मेरा देश मलूकदास
का अजगर
या
झुम्मन कबाड़ी का
टीन कनस्तर!
मेरे देश में
पानी खौलता है खून नहीं खौलता।
देवेंद्र दीपक
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